उत्तराखंड के गांवों में जल रही हैं सामूहिक चिताएं, जांच रिपोर्ट आने में लग रहे हैं 7 दिन!

Covid 19उत्तराखंड के गांवों में जल रही हैं सामूहिक चिताएं, जांच रिपोर्ट आने में लग रहे हैं 7 दिन!

NEWSMAN DESK

उत्तराखंड के दूरस्थ और बद्रीनाथ धाम से तीन किलोमीटर आगे देश का अंतिम गांव माणा के प्रधान पितांबर मोलपा से जब हमने फोन पर बात की तो दूसरी ओर से उनकी आवाज में चिंता थी। उनकी चिंता उस फोटो से बढ़ गई थी, जो उन्होंने आज ही सोशल मीडिया पर देखी। ये फोटो उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले से सामने आई है, जिसमें कई चिताएं जलती हुई नजर आ रही हैं। उत्तराखंड में बीते 24 घंटे में 5654 संक्रमित मरीज सामने आए और 197 मरीजों ने दम तोड़ा है। वहीं, 4806 मरीजों को ठीक होने के बाद घर भेजा गया। कुल संक्रमितों की संख्या 283239 हो गई है। जबकि सक्रिय मामले 80000 पहुंच गए हैं।

गांव के लोग खेतों में ही सामूहिक चिंताओं को तैयार कर रहे हैं। इन चिताओं में गांव के उन लोगों के शव रखे जायेंगे, जो कोरोनो से जंग हार गये हैं। मोलपा बताते हैं कि पिछले साल हमने अपने गांव को कोरोना से पूरी तरह महफूज रखा था, लेकिन इस बार डर ज्यादा लग रहा है। वो कहते ​हैं कि हमने तय किया है कि हमारे गांव के जो भी लोग ग्रीष्मकालीन प्रवास पर बाहर से आयेंगे, उन्हें आरटीपीसीआर जांच करानी ही होगी। ऐसा न करने पर किसी को भी गांव में प्रवेश नहीं मिलेगा। ये तो थी गांव वालों की खुद की तैयारी, लेकिन प्रशासन की इन इलाकों में संक्रमण को रोकने और फैला तो उस पर काबू करने की क्या तैयारियां हैं! ये सवाल बेमानी है। पहाड़ों पर सामान्य बीमारियों का इलाज करने के लिये भी कई जगह डॉक्टर नहीं हैं, तब ये तो वो महामारी है जिसने सबके हाथ-पांव फुला दिए हैं।

पिछले साल कोरोना मैदानी जिलों तक ही ज्यादातर सिमटा रहा, लेकिन इस बार ये आतंक हिमालय के दुर्गम दर्रों तक पहुंच गया है। जोशीमठ में फौज ने 50 बेड का कोविड अस्पताल जरूर तैयार कर लिया है, लेकिन कई जगहों पर फौज ही नहीं है, तब वहां के क्या हाल होंगे आप खुद अंदाजा लगा लीजिये। पहाड़ों पर व्यवस्थाएं इस कदर मायूस करने वाली हैं कि सरकार नाम से भरोसा ही उठ जाए। गुरुवार को सांसद अजय टम्टा और कैबिनेट मंत्री बिशन सिंह चुफाल ने राज्य के सीमांत जिले पिथौरागढ़ में जिला अस्पताल और बेस अस्पताल का निरीक्षण किया। इस दौरान उन्होंने कोरोना संक्रमण उपचार, रोकथाम और मेडिकल व्यवस्थाओं का जायजा लिया। इस दौरान प्रशासन ने बताया कि पिथौरागढ़ में आरटीपीसीआर लैब का काम दो माह में पूरा हो जाएगा। ये चौंकाने वाली बात है। इस वक्त जब लैब को तैयार हो जाना चाहिए था, वो दो माह बाद तैयार होगी!

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ऐसे ही पेयजल मंत्री और जिले के कोविड प्रभारी बिशन सिंह चुफाल जब झूलाघाट अस्पताल के निरीक्षण पर पहुंचे तो वहां लोगों ने उनसे एंबुलेंस न होने की बात कही, जिसपर मंत्री ने बीएडीपी योजना के तहत 24 घंटे एंबुलेंस तैनात होने का वादा कर महामारी से जंग में अपना अमूल्य योगदान दर्ज करवा दिया।

हिमालयी गांव जो  अभी तक महफूज समझे जा रहे थे, वहां भी अब मौतों का आकंड़ा लगातार बढ़ने लगा है। हिमालयी राज्यों में सबसे ज्यादा कोरोना मत्यु दर उत्तराखंड की हो चुकी है। हाल ये हो गये हैं कि गांव के खेतों में भी चिताओं के जलने के हदयविदारक दृश्य अब सामने आने लगे हैं। राज्य में हर दिन 150 से ज्यादा लोगों की मौतें हो रही हैं, जबकि 6000 लोग संक्रमित हो रहे हैं। ये मौत का आकंड़ा उनका है जो अस्पतालों में मरे हैं, जो घर पर मर रहे हैं, उनका कहीं कोई आकंड़ा नहीं है। वो बुखार-खांसी से ही मर जा रहे हैं और उसके बाद गांव कंटेनमेंट जोन के भुतहा साये की नीचे कैद कर दिये जा रहे हैं। इस छोटे से राज्य में अभी तक तीस हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।

कम्यूनिटी फाॅर सोशल डेवलमेंट के हालिया शोध के अनुसार, उत्तराखंड में प्रति लाख लोगों में मरने वालों की संख्या में 37 है। संस्था के संस्थापक अनूप नौटियाल बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में ये दर मात्र 8 है और हिमाचल में 28 है। उत्तराखंड में हालात चिंता जनक हो चुके है। उत्तराखंड में हालात चिंता जनक हो चुके हैं। राज्य के कई अस्पताल कोविड महामारी के दौरान सफेद हाथी साबित हो रहे हैं। वहां न डॉक्टर हैं न सुविधाएं। जहां डॉक्टर हैं भी, वहां उनके पास महामारी से जंग लड़ने के हथियार ही नहीं हैं और वो अपना प्रिय अस्त्र 'रेफर' का उपयोग कर 'जल्दी ले जाओ' के नारे के साथ चला दे रहे हैं। राज्य में अगर जल्द ही कोई ठोस एक्शन प्लान न बनाया गया तो ये छोटा सा राज्य इस बीमारी की गंभीर कीमत चुकायेगा।

पिछले साल जहां उत्तराखंड के सीमांत जिलों में कोरोना का खतरा उतना नहीं था, वहीं इस बार हिमालयी बेसिन के गांव में भी कोरोना पहुंच चुका है। जौनसार, टिहरी, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, चमोली, बागेश्वर, चंपावत और रूद्रप्रयाग में लगातार मामले बढ़ रहे हैं। यहां सरकार ने पूरी तरह से लाॅकडाउन लगा दिया है। सुबह दस बजे के बाद बाजारों में परिंदा भी नजर नहीं आ रहा है। लोग मुंह ढके हुए चुपचाप 'बहुत बुरी स्थिति है' कहकर ही दूर से सलाम ठोंक निकल जा रहे हैं।

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राज्य में कोरोना ने हाहाकार मचाया हुआ है, लेकिन इसके उलट पर्वतीय जिलों में सबसे बड़ी दिक्कत दूरस्थ गांवों में कोविड जांच की आ रही है। जांच हो भी जा रही है तब सात दिन में रिपोर्ट मिल रही है। इतने वक्त में संक्रमित कई लोगों को संक्रमण दे चुका होता है।

पिथौरागढ़ जिले के बूंगाछीना गांव में रहने वाले धमेंद्र कुमार पांच मई को कोविड जांच करवाने जिला मुख्यालय गये थे। वो बताते हैं कि उन्हें आज तक जांच रिपोर्ट नहीं मिली है। कुछ ऐसा ही हाल चमोली जिले के जितेंद्र उनियाल भी बताते हैं। उन्होंने कहा कि सात दिन में रिपोर्ट मिल जा रही है, तब तक मरीज जिंदा रहता है तो उबरने की स्थिति में आ जाता है, वरना बुखार—खांसी मान ही उसका अंतिम संस्कार कर दिया जा रहा है। कमोबेश उत्तरकाशी में भी यही हाल है। यहां भी रिपोर्ट सात दिनों के इंतजार के बाद मिल रही है, जबकि इस जिले के कई गांवों में इन दिनों कंटेनमेंट जोन का पोस्टर प्रशासन चस्पा कर चुका है।

खेतों को ही बना दिया गया है शमशान घाट, भयानक है मंजर
अल्मोड़ा में कोरोना का कहर लगातार जारी है। पिछले कई दिनों से यहां कोरोना के कारण रोजाना करीब आधे दर्जन लोग दम तोड़ दे रहे हैं। ऐसे में कोरोना की इस भीषण त्रासदी का गवाह अल्मोड़ा का भैसोड़ा फार्म बना हुआ है। यहां रोजाना कई लोगो की एक साथ जल रही चिताओं का मंजर काफी डरावना है। दहशत इतनी है कि स्थानीय रिपोर्टर मौके पर भी नहीं जा रहे।

अल्मोड़ा नगर से पांच किलोमीटर दूर भैसोड़ा फार्म को प्रशासन ने कोरोना का श्मशान बनाया है। यहां कोरोना के कारण मर रहे लोगों की चिताएं जलाई जा रही हैं। यहां एक साथ आधे दर्जन के लगभग चिताएं जल रही हैं, जिसकी तस्वीरें लोगों को काफी विचलित कर रही हैं। उत्तराखंड के सुदूरवर्ती पहाड़ी क्षेत्रों में ऐसा मंजर पहली बार देखने को मिल रहा है, जहां कई चिताएं एक साथ जल रही हों। पिछले दिनों यहां एक साथ 7 लोगों की चिताएं जली, जबकि आज 4 लोगों का यहां एक साथ अंतिम संस्कार किया गया। जिले में अब तक कोरोना के कारण 109 लोगों की मौत हो चुकी है।

क्या है राज्य के दूरस्थ गांवों का हाल
गैरसैंण के दूरस्थ गांव भंडारीखोड के एक बुजुर्ग (66) की बुधवार को कोरोना से मौत हो गई। मृतक गांव के पास हिरूली बाजार में परचून की दुकान चलाता था। चार दिन पूर्व वह चौखुटिया अस्पताल में इलाज के लिए गया था, जहां कोरोना जांच के बाद पॉजिटिव आने पर उसे अल्मोड़ा के लिए रेफर किया गया था। अल्मोड़ा में डॉक्टरों ने उसका ऑक्सीजन लेवल ठीक होने और बुखार नहीं होने का हवाला देते हुए घर भेज दिया। वापसी में चौखुटिया के पास ही बुजुर्ग ने दम तोड़ दिया। हालात यह है कि लाशें उठाने के लिये परिजन तक नहीं आ रहे।

ग्रामप्रधान लीलाधर जोशी ने कहा कि मृतक के परिवार के लोगों को होम आइसोलेट कर दिया गया है। अब तक गांव में 12 से अधिक लोगों को होम क्वारंटीन किया गया है। दहशत इतनी है कि भंडारीखोड़ और कुनीगाड़ के प्रधान ने रामपुर से कुनीगाड़ को जोड़ने वाली सड़क को बंद करने की मांग की है, ताकि बाहर से आने वाले लोग पांडुवाखाल से बैरियर पर जांच करने के बाद ही कुनीगाड़ क्षेत्र में प्रवेश कर सकें।

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ग्रामीण क्षेत्रों में वायरल का प्रकोप भी इस बीच बढ़ा है। बणगांव में दो सप्ताह से कई लोग बुखार से पीड़ित हैं और बृहस्पतिवार को एक व्यक्ति की बुखार से मौत हो गई। इसके बाद कर्णप्रयाग की कनिष्ठ उपप्रमुख अनीता सेमवाल ने एसडीएम को ज्ञापन भेजकर इस संबंध में अवगत करवाया और क्षेत्र में मेडिकल टीम भेजने की मांग की। गांव के पास कोई अस्पताल नहीं है और लोग खुद ही मेडिकल स्टोर से दवाइयां लेकर जिंदगी और मौत की महीन रेख के पार जंग लड़ रहे हैं। इलाके के एसडीएम वैभव गुप्ता ने कहा कि बणगांव में जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई वह बुजुर्ग थे और ये सामान्य मृत्यु थी। उनका कहना है कि बुजुर्ग की मौत कोरोना संक्रमण से नहीं हुई है। ऐसा एसडीएम किस जांच के आधार पर कह रहे हैं, इसका जवाब तो वही दे सकेंगे।

इधर थराली तहसील के गांवों में एक सप्ताह से कई लोग बीमार हैं। यहां लोगों को जुकाम के साथ ही गले में खराश, बुखार और खांसी हो रही है। कुलसारी, ग्वालदम, चिडंगा, तलवाड़ी आदि क्षेत्रों में भी ग्रामीण बड़ी संख्या में बीमार हैं।

चंपावत जिले के ग्रामीण इलाकों में भी कोरोना संक्रमण रोकना स्वास्थ्य विभाग के लिए चुनौती बना हुआ है। विभागीय टीमें दूरस्थ गांवों में जाकर जांच कर रहीं हैं। जिले में 5000 से अधिक प्रवासी अब तक लौट चुके हैं। वह संस्थागत क्वारंटीन के बजाय घरों में आइसोलेट हैं। इस दौरान हुई लापरवाही के कारण गांवों में संक्रमण बढ़ गया है। कोविड-19 के नोडल अधिकारी एसीएमओ डॉ. इंद्रजीत पांडेय ने बताया कि जिले में 1816 लोग होम आइसोलेट हैं। इनमें से करीब 1500 लोग गांवों में रह रहे हैं।

जिले के कोविड अस्पताल, कोविड केयर सेंटरों और निजी अस्पतालों में 41 संक्रमितों का उपचार किया जा रहा है। जिले के सीमांत स्वांला में 47, बकोड़ा में 27, बेलखेत में 27, सौराई में 23, बचकोट में 21, चल्थी में 13 लोग होम आइसोलेट हैं। स्वास्थ्य विभाग की ओर से सभी संक्रमितों तक कोविड किट पहुंचाना चुनौतीपूर्ण है।

इधर उत्तरकाशी के मोरी ब्लाक में कोरोना संक्रमण के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। शुक्रवार को क्षेत्र के चार गांवों में 65 लोगों की कोरोना जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर स्थानीय प्रशासन ने चार नए कंटेनमेंट जोन बना दिए हैं।

शुक्रवार को मोरी ब्लाक के खन्ना गांव में 13, झोटाड़ी में 13, नानाई व जखोल में 26 लोगों की कोरोना जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आई, जिसके बाद स्थानीय प्रशासन ने सभी मार्ग सील कर इन गांवों को कंटेनमेंट जोन घोषित कर दिया है। एसडीएम सोहन सिंह सैनी ने बताया कि पॉजिटिव लोगों की निगरानी के लिए पीएचसी मोरी के चिकित्सकों को निर्देशित किया गया है। बृहस्पतिवार को यहां 28 लोगों की कोरोना जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर स्थानीय प्रशासन ने तीन नए कंटेनमेंट जोन घोषित कर आवाजाही प्रतिबंधित कर दी है।

बृहस्पतिवार को पुरोला ब्लाक के करड़ा गांव में 9, अंगोड़ा में 6 व मोरी ब्लाक के रमाल गांव में 13 लोगों की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई। ब्लाक के सौंदाड़ी गांव में 23, पोरा में 29, मोल्टाड़ी में 18, ढकाणा में 4, छानिका में 5 एवं नगर के वार्ड नंबर तीन में 5 लोगों की कोरोना जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आई, जिसके बाद स्थानीय प्रशासन ने उक्त इलाकों के सभी मार्ग सील कर इन गांवों को कंटेनमेंट जोन व पुरोला नगर के वार्ड नंबर तीन जल संस्थान कार्यालय के समीप वाले क्षेत्र को माइक्रो कंटेनमेंट जोन घोषित कर दिया है।

अब बच्चों पर आफत, प्रदेश के चार जिलों में 112 बच्चे कोविड संक्रमित 
प्रदेश के चार जिलों में 112 बच्चे कोरोना संक्रमित हुए हैं।  इनमें नवजात शिशु के साथ ही दो साल के बच्चे भी शामिल हैं। उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग की ओर से कोविड की तीसरी लहर से बच्चों को बचाने के लिए आयोजित वर्चुअल बैठक में स्वास्थ्य विभाग की ओर से यह जानकारी दी। संक्रमित होने वाले बच्चों में सबसे अधिक 44 बच्चे रुद्रप्रयाग जिले के हैं। उधर, श्रीनगर मेडिकल काॅलेज में एक माह की बच्ची की कोरानो से मौत हो गई है। ये राज्य में इतनी छोटी उम्र में हुई मौत का पहला मामला भी है। बच्चे को डिहाईड्रेशन था और बीपी लो हो रहा था। रुद्रप्रयाग निवासी परिजन उसे उपचार के लिए श्रीनगर लाए थे। बच्ची की मां भी पॉजिटिव आई थी। मेडिकल कॉलेज में कोविड अस्पताल के पीआरओ अरुण बडोनी ने बताया कि मक्कूमठ (रुद्रप्रयाग) की एक माह की नवजात बालिका को कोरोना होने पर 12 मई को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उसे डिहाईड्रेशन था और बीपी लो हो रहा था। साथ ही अंदरूनी ब्लीडिंग हो रही थी। 13 मई की सुबह बच्ची की मौत हो गई।

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65 मरीजों की मौत का खुलासा
हरिद्वार जिले के एक निजी अस्पताल ने कोरोना मरीजों की मौत की जानकारी छिपाए रखी। 19 दिनों के बाद अस्पताल में 65 मरीजों की मौत का खुलासा हुआ है। महामारी के इस दौर में निजी अस्पतालों की लूट ही नहीं बल्कि मनमानी भी मरीजों पर भारी पड़ रही है। प्रशासन के लिये भी ऐसे में व्यवस्थाएं बनाना भारी पड़ रहा है।

जेलों में बंद सात साल से कम सजा पाने वाले कैदी होंगे पैरोल पर रिहा
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कोरोना के खतरे को देखते हुये जेलों में बंद सात साल से कम सजा पाने वाले कैदियों को पैरोल पर रिहा करने के आदेश जारी किये हैं। आईजी जेल ने कोर्ट को बताया कि उत्तराखंड की जेल में करीब छह हजार कैदी बंद है। जिसमें से चार हजार कैदियों की सजा विचाराधीन है और दो हजार कैदियों को सजा मिल चुकी है। सरकार ने सभी कैदियों की जांच करवाई तो इनमें 59 पाॅजिटिव मिले, जबकि कुछ कैदियों में संक्रमण के लक्षण है।

बहरहाल उत्तराखंड़ के पहाड़ों पर कोरोना की दस्तक हो चुकी है, लेकिन इसके उलट व्यवस्थाओं के नाम पर अब भी कई इलाकों में सन्नाटा ही पसरा हुआ है। दूर-दराज के गांवों में लोग अब भी बुखार-खांसी के अपने पारंपरिक ज्ञान के सहारे ही महामारी से जंग लड़ रहे हैं और जब मौतें शुरू हो जा रही हैं, तब सिवाय सन्नाटे और गांवों के बाहर ड्यूटी पर ड़रे-ड़रे से बैठे हुए पुलिस के किसी जवान के सिवाय और कुछ नजर नहीं आता।

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