हिमालय की चोटियां और उसके ठीक सामने ट्यूलिप के बगीचों में खिले फूलों से सराबोर तस्वीर को देखकर आपके मन में क्या आएगा! यही ना कि कश्मीर बेहद सुंदर हैं और वहां इन दिनों ट्यूलिप गार्डन में फूल खिले हुये हैं। सामने पर्वत राज हिमालय की पंचाचूली चोटियां और उसके सामने विशाल ट्यूलिप गार्डन! ...लेकिन यह जो तस्वीरें हैं वो कश्मीर से नहीं उत्तराखंड के उस दूरस्थ इलाके से सामने आई हैं, जहां से खबरें तक जल्दी से सामने नीं आ पाती हैं। यह इलाका है मुनस्यारी का और यह ट्यूलिप का बगीचा वहीं तैयार किया गया है।
मानों स्वर्ग उतर कर यहीं कहीं बस गया हो। उत्तराखंड के सुदूर सीमांत जिला पिथौरागढ़ के मुनस्यारी में वन विभाग की टीम ने बंजर जमीन पर खूबसूरत फूलों का बगीचा तैयार किया है। हाल ही में इस बगीचे को जब मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने देखा, तो वह भी इसकी खबूसरत बगीचे को देखकर खुश नजर आये। बगीचे की खूबसूरती का असर सीएम पर इस कदर छाया हुआ था कि उन्होंने न केवल पूरी टीम की हौसलाअफजाई की, बल्कि बल्कि ट्वीटर पर भी इस बगीचे के दर्शन लोगों को करवा दिये हैं। वन विभाग की टीम को अब कोरोना संक्रमण की इस लहर के जाने का इंतजार है, ताकि देश भर से पर्यटक यहां आ सकें और हिमालय की गोद में बने ट्यूलिप के इन खूबसूरत बगीचों का लुत्फ उठा सकें।
मुनस्यारी के जिस तीस एकड़ क्षेत्र में ये बगीचा बनाया गया है, वो इलाका पहले बंजर था और स्थानीय लोग अपने मरे हुये पशुओं को वहां पर दफनाते थे। हालांकि, अब यहां की स्थितियां पहले जैसी नहीं हैं और यह बंजर जमीन किस्म-किस्म के ट्यूलिप के खिलने की हर दिन गवाह बन रही है। महज एक साल की मेहनत से जिला वन अधिकारी डॉ.विनय भार्गव के नेतृत्व में जिला प्रशासन और स्थानीय लोगों की मेहनत से अब ये इलाका फूलों के रंगों से सराबोर है। डीएफओ डॉ. भार्गव बताते हैं कि टीम को यहां पर बगीचा बनाने में बेहद कठिनाई हुई।
हाई एल्टीट्यूड होने के चलते यहां पर जंगली घास उग गई थी, जिससे जमीन की गुणवत्ता लगभग खत्म हो गई थी। टीम ने पर्यावरण संरक्षण के जज्बे के चलते महज एक साल में ये काम किया, जिसके नतीजे आज सुखद आ रहे हैं। डॉ. भार्गव बताते हैं कि ट्यूलिप उत्तराखंड की ही फूलों की प्रजाति है, जो कि पांच से छह हजार फीट पर कई इलाकों में पाया जाता है।
इस काम में स्थानीय लोगों ने भी बहुत सहयोग दिया है। ट्यूलिप की खेती से स्थानीय लोगों के रोजगार को भी जोड़ा जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय बाजारों में ट्यूलिप की खूब मांग है। आश्चर्य की बात यह है कि पूरी परियोजना पर खर्च महज एक लाख 36 हजार रूपये आया है। डॉ. भार्गव कहते हैं कि उन्हें मौका मिले तो वो एक लाख ट्यूलिप को तीस से सत्तर हेक्टेयर के क्षेत्र में उगाना चाहेंगे। जिससे क्षेत्र को पर्यटन के लिहाज से भी समृद्ध किया जा सके। साथ ही ऐसे करने से स्थानीय लोगों की अजीविका के स्त्रोत भी बढ़ेंगे।
डॉ. भार्गव बताते हैं कि ट्यूलिप उत्तराखंड की कुमाऊं के हिमालय क्षेत्र से लगते हुये इलाकों में सबसे पहले पाई गई थी। ब्रिटिश भारत के फ्लोरा गेजेटियर में इसका उल्लेख है कि यह प्रजाति कुमाऊं की एक जंगली देशी प्रजाति है और इसका प्रयोग भी बहुत महत्वपूर्ण है। यह फूल हमारे पास आनुवंषिक संसाधन के रूप में मौजूद है। जिसका प्रयोग विविधता सुधार, हाइब्रिड सुधार और इंसानों में रोग-प्रतिरोध की दवा बनाने में काम आती है।
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