त्रिपुरा एक बार फिर सुर्खियों में है, इस बार पुलिस के उठाए कदम के कारण. पुलिस ने बड़ी संख्या में सोशल मीडिया यूज़र्स पर यूएपीए क़ानून के तहत मामला दर्ज किया है। आरोप है कि इन लोगों ने कथित तौर पर 'फ़र्जी फोटो और जानकारियां ऑनलाइन अपलोड कीं जिनके कारण सांप्रदायिक तनाव बढ़ने का ख़तरा था। सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर कई भड़काऊ बातें लिखी गईं जिसके ख़िलाफ पुलिस ने सख़्त कदम उठाए हैं। इसके साथ ही राज्य भर से चार लोगों को गिरफ़्तार भी किया गया है।
त्रिपुरा हिंसा के ख़िलाफ़ लिखने वाले, बोलने वाले, फ़ैक्ट फाइंडिंग करने वाले सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील, पत्रकार इत्यादि तमाम लोगों के विरुद्ध त्रिपुरा पुलिस गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामले दर्ज कर रही है। कई लोगों को नोटिस जारी किया जा चुका है, जिसके बाद सरकार की यह कार्रवाई देशभर में चर्चाओं का विषय बन गई है। इसे लेकर राजनीतिक, सामाजिक और सिविल सोसायटी में गुस्सा भी नजर आ रहा है। इसके विरोध में 5 नवंबर को दिल्ली के त्रिपुरा भवन के सामने छात्रों, कार्यकर्ताओं और वकीलों के संगठनों ने प्रदर्शन किया। इसके अलावा सोशल मीडिया पर भी भारत के नामी लोग सरकार की कार्रवाई के खिलाफ पीड़ितों के पक्ष में मदद जुटाने में जुट गए हैं।
गौरतलब है कि एडवोकेट अंसार इंदौरी और एडवोकेट मुकेश चार सदस्यों की एक टीम के साथ 29 और 30 अक्टूबर को त्रिपुरा गए। इसके बाद उन्होंने "ह्यूमेनिटी अंडर अटैक इन त्रिपुरा" नामक रिपोर्ट जारी की, जिसमें त्रिपुरा की सांप्रदायिक हिंसा में अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय की कई मस्जिदों, दुकानों और घरों को नुकसान पहुंचाने का जिक्र किया गया है। इस रिपोर्ट ने राज्य की भाजपा सरकार पर कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं। मामला यहीं नहीं थमा बल्कि इस घटना को लेकर लेखकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, और पत्रकारों जिन्होंने आलोचना की है उन सबके खिलाफ यूएपीए जैसे कठोर कानून के तहत मामले दर्ज किए जा रहे हैं। इस मामले में ट्विटर तक को नोटिस दिया जा रहा है।
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त्रिपुरा पुलिस के कार्यकारी पीआरओ, एडिशनल एसपी ज्योतिस्मान चौधरी ने बताया, "हालात पिछले नौ दिनों से पूरी तरह से काबू में हैं, एक भी वाकया नहीं हुआ है, सिवाय कुछ सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर सांप्रदायिकता भड़काने की कोशिश के, लेकिन लोगों ने इनके बहकावे में नहीं आकर अपनी परिपक्वता का परिचय दिया है। हमने गैर कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत 101 सोशल मीडिया अकाउंट पोस्ट पर कड़ी कार्रवाई की है, इसमें 68 ट्विटर, 31 फ़ेसबुक और दो यूट्यूब अकाउंट शामिल हैं. हमने इन प्लेटफ़ॉर्म से कहा है कि वो अकाउंट चलाने वालों की जानकारी दें और आपत्तिजनक और फ़र्जी पोस्ट को हटाने के लिए कदम उठाएं।"
हालांकि, त्रिपुरा पुलिस की इस कार्रवाई का व्यापक स्तर पर विरोध शुरू हो गया है। इस विरोध में भाग लेने वाले संगठनों में ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा), स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई), क्रन्तिकारी युवा संगठन (केवाईएस), ऑल इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन फॉर जस्टिस (एआईएलएजे) और ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन्स (ऐक्टू) शामिल थे। प्रदर्शनकारियों ने असम भवन से त्रिपुरा भवन तक मार्च निकाला, त्रिपुरा में भाजपा सरकार और केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। कार्यक्रम स्थल पर सैकड़ों पुलिस कर्मी मौजूद थे, और त्रिपुरा भवन के सामने की सड़क को प्रदर्शनकारियों के पहुंचने से बहुत पहले ही पीले बैरिकेड्स द्वारा बंद कर दिया गया था।
देखते ही देखते कार्यकर्ता, छात्र, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता इन बैरिकेड्स के ठीक सामने जमा हो गए और अपना विरोध दर्ज कराया- पुलिस कर्मियों की भारी उपस्थिति उन्हें डराने या उनके उत्साह को कम करने में पूरी तरह असफल रही। पश्चिम अगरतला पुलिस ने पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) के दिल्ली स्थित मानवाधिकार वकीलों मुकेश और नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स (एनसीएचआर) के अंसार इंदौरी को नोटिस दिया, जिसमें कहा गया कि उनके सोशल मीडिया पोस्ट और बयानों पर यूएपीए की (गैरकानूनी गतिविधियों के लिए) धारा 13 के तहत मामला दर्ज किया गया है।
हालांकि, अगरतला पुलिस ने इस तरह की कार्रवाई 100 अधिक सोशल मीडिया पोस्ट लिखने वाले अन्य लोगों पर भी की है। इन सभी पोस्टों में त्रिपुरा हिंसा की निंदा की गई थी और सरकार की आलोचना की गई थी। परन्तु पुलिस ने सभी को भ्रामक और झूठा, धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के साथ-साथ विभिन्न धार्मिक लोगों को भड़काने वाला बताकर सभी लिखने और प्रसार करने वालों पर यूएपीए के तहत केस दर्ज़ किया है। ट्वीटर इण्डिया से भी लगभग 60 से अधिक हैंडल को हटाने करने के लिए कहा है। इसमें सामाजिक कार्यकर्ता और कुछ पत्रकार भी शामिल हैं।
वकीलों द्वारा मंगलवार, 2 नवंबर को दिल्ली में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर फैक्ट फाइंडिंग की रिपोर्ट जारी की गई थी, जिसे फेसबुक लाइव के माध्यम से स्ट्रीम किया गया था। इसके एक दिन बाद ही यह नोटिस दिया गया था। इस रिपोर्ट में विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल आदि जैसे गुटों की भूमिका पर भी ध्यान डाला गया है, जिन्होंने अपनी रैली में नफरत फ़ैलाने और भीड़ को उकसाने का प्रयास किया। यह रैली तथाकथित रूप से बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ हुई सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ रोष व्यक्त करने के लिए रखी गई थी। पर इस रैली से पानीसगर डिवीजन में मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ हिंसा करने के लिए आह्वान किया गया। 'मुस्लिम लाइव्स मैटर' हैशटैग के साथ इस रिपोर्ट में बताया गया था कि इस हिंसा में 12 मस्जिदों, नौ दुकानों और मुस्लिम समुदाय के लोगों के तीन घरों पर हुए हमला हुआ।
छात्र संगठन केवाईएस ने अपने बयान में कहा है कि इस टीम की आवाज़ को दबाने के लिए एडवोकेट अंसार इंदौरी और ऐडवोकेट मुकेश को यूएपीए के तहत नोटिस भेजा गया है। साथ ही साथ, उन पर भारतीय दण्ड संहिता (आईपीसी) की कई धाराएं लगाई गईं हैं। पुलिस और सरकार द्वारा उनको डराए जाने के प्रयासों के बावजूद दोनों वकील अपनी रिपोर्ट और सोशल मीडिया पर लिखे सार्वजनिक पोस्ट्स में कही बातों पर अडिग हैं। उन्होंने कहा कि यूएपीए और अन्य आतंक विरोधी कानूनों को अक्सर जनता के विरोध स्वर को दबाने के लिए इस्तेमाल किया जाना अब एक आम प्रक्रिया बन गई है। यह भयावह स्थिति है क्योंकि इन कानूनों का इस्तेमाल करके सरकार ऐसे सांप्रदायिक मामलों में खुद की मिलीभगत से जनता का ध्यान दूर खींचना चाहती है। हिंसा के लिए जिम्मेदार दोषियों को ढूंढ कर उन्हे कड़ी सजा देने के बजाय सरकार ने न्याय मांग रही लोकतांत्रिक आवाजों को ही चुप कराने का प्रयत्न किया है।
एसएफआई दिल्ली राज्य सचिव, प्रीतीश मेनन आज़ाद, जो विरोध प्रदर्शन में मौजूद थे। उन्होंने कहा, "जैसा कि हम सभी जानते हैं, बांग्लादेश में हुई घटनाओं के बाद, त्रिपुरा में हिंदुत्व समूहों द्वारा प्रतिशोध किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप संपत्ति और जीवन का नुकसान किया गया। जब हम एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक देश में होने की बात करते हैं, तो इस तरह की स्थितियां देश के नागरिकों के लिए अस्वीकार्य हैं, और सरकार के लिए भी ऐसा ही होना चाहिए।" उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करने के बजाय कि अल्पसंख्यक समुदायों से संबंधित लोग सुरक्षित रहे और उन्हें न्याय मिले, राज्य ने हिंसा के अपराधियों की रक्षा के लिए अपनी मशीनरी का इस्तेमाल किया है। जो इस सच्चाई को उजागर करता है उन्हें यूएपीए के तहत केस दर्ज़ कर डराया जा रहा है।
विरोध प्रदर्शन को संबोधित करते हुए, ऐक्टू की सुचेता डे ने कहा, "यूएपीए के आरोप में जिन दो वकीलों पर आरोप लगाया गया है, उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा है जिसका इस्तेमाल हिंसा भड़काने के लिए किया जा सकता है। उनके खिलाफ लगाए गए आरोप और कुछ नहीं बल्कि उन्हें चुप कराने के लिए राजनीति से प्रेरित प्रयास हैं। सरकार ने हमें दिखाया है कि भाजपा शासित राज्य में फैक्ट फाइंडिंग के लिए भी कोई जगह नहीं है। हालांकि, हम अपने देश में इस तरह की चीजें नहीं होने देंगे।"
ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन (AILU) ने भी त्रिपुरा पुलिस की कथित कार्रवाई की निंदा और विरोध करते हुए एक बयान जारी किया। उन्होंने पुलिस कार्रवाई को अत्यधिक अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक बताया। बयान में कहा गया है, "सांप्रदायिक हिंसा के बारे में रिपोर्ट करना और विरोध करना और लोकतांत्रिक अधिकारों है। ये एक राष्ट्र विरोधी या आतंकवादी गतिविधि नहीं है।"
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