आपने अब तक समंदर की लहरों को सैकड़ों फीट उपर उठते ही देखा होगा, लेकिन फर्ज कीजिए कि ऐसा हिमालय पर हो तब क्या स्थिति होगी! हिमालय पर सूनामी आ जाएगी और ये कभी भी हो सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसा हिमालयी क्षेत्र में भूकंप आने के चलते होगा, जिससे हिमालय की झीलों में पानी की लहरें 50 मीटर तक ऊपर उठ सकता है।
असल में एक स्टडी बताती है कि हिमालय में अगर आठ रिक्टर या उससे ऊपर का भूकंप आया तो, वहां मौजूद लगभग दस हजार ग्लेशियर झील में बड़ी सूनामी आ सकती है। वैज्ञानिकों के अनुसार, बड़े भूकंप के झटकों से इन झीलों का पानी पचास मीटर तक ऊपर उठ सकता है और एक बड़ी तबाही की वजह बन सकता है। ये सभी झीलें सिस्मिक जोन पर हैं। इसका मतलब ये हुआ कि ये झीलें सबसे ज्यादा भूकंप आने वाले भूगर्भीय इलाकों में मौजूद है। ऐसा होता है तब भी ये कोई नई बात नहीं होगी, बल्कि इससे पहले 1934 में ऐसा हो चुका है। हालांकि, तब हिमालयी इलाकों में आदमी की पहुंच भी उतनी ज्यादा नहीं थी, जितनी कि आज है।
वाडिया हिमालय भूगर्भीय संस्थान के भौतिकीविद विभाग के अध्यक्ष और वरिष्ठ भूकंप वैज्ञानिक डॉ. सुशील कुमार बताते हैं कि शोध में सामने आया है कि 1503 के बाद से उत्तराखंड में आठ रिक्टर का भूकंप नहीं आया है। इसी तरह 1803 और 1905 में भी बड़े भूकंप आ चुके हैं। नब्बे के दशक में उत्तरकाशी और चमोली में बड़े भूकंप आये थे, लेकिन वो इतने बड़े भूकंप भी नहीं थे कि कहर बरपा सकें। हालांकि, जनसंख्या घनत्व ज्यादा होने के कारण जानमाल का नुकसान इन झटकों से भी ज्यादा ही हुआ था।
असल खतरा पिछले भूकंपों से ज्यादा बड़े स्केल पर झटके मिलने से होगा। वैज्ञानिकों के अनुसार, हिमालय में भविष्य में अगर कोई बड़ा भूकंप आया तो यह एक बड़ी सूनामी की वजह बनेगा। डॉ. सुशील कुमार बताते हैं कि हिमालय में इस समय लगभग दस हजार ग्लेशियर निर्मित झीलें हैं। ऐसे में अगर रिक्टर आठ का भूकंप आता है, तो इन झीलों में पानी पचास मीटर तक ऊपर उठ सकता है। ये लहरें इतनी तेजी से ऊपर उठेंगी कि आस-पास तबाही का मंजर दिखने लगेगा। ये सभी झीलें सिस्मिक जॉन पर है। इसका मतलब हुआ कि यह झीलें सबसे ज्यादा भूकंप आने वाली भूगर्भीय क्षेत्रों में मौजूद हैं। मतलब कि जहां टाइम बम रखा है, वहीं आस-पास पहले से पेट्रोल के बड़े-बड़े स्टोरेज टैंक हैं!
ऊंचा ही नहीं बल्कि दक्षिण की तरफ भी खिसक रहा है हिमालय
वाडिया संस्थान ने इस शोध के लिये कुमाऊं- गढ़वाल और नेपाल हिमालय (तिब्बत से उत्तराखंड वाला भूभाग) में नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनजीआरआइ) व अन्य संस्थानों के साथ मिलकर जीपीएस स्टेशन स्थापित किए हैं। जब रिपोर्ट आई तो कई दिलचस्प खुलासे भी हुए। अध्ययन से पता चला कि यहां का हिमालयी भूभाग प्रतिवर्ष 18 मिलीमीटर की दर से दक्षिण की तरफ खिसक रहा है, जबकि शेष हिमालयी क्षेत्र में यह दर 12 से 16 मिलीमीटर के बीच ही है। जमीन के नीचे मची उथल-पुथल के चलते लगातार और अधिक सक्रियता के साथ निरंतर भूकंपीय ऊर्जा उत्पन्न हो रही है। जो कभी भी बडे भूकंप के रूप में सामने आ सकती है। वैज्ञानिक जिस खतरे का अंदेशा जता रहे हैं, उससे हिमालयी क्षेत्रों में लगातार हो रहे निर्माण पर कोई असर नजर नहीं आ रहा है, जिसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं।
छोटे छोटे भूकंप भविष्य के बडे संकेत
वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान ने उत्तराखंड और हिमाचल में इन छोटे झटकों को पकड़ने वाले उपकरण सिस्मोग्राफ और एक्सलरोग्राफ लगाये है। इन उपकरणों से रीडिंग मिलने लगी है। जिसके बाद हिमालय क्षेत्र के लाखों लोगों को बचाने के लिए गहन शोध भी शुरू हो गया है। हिमालय में लगातार आ रहे भूकंप पर हो रहे शोध में ये भी सामने आया कि प्लेटस के आपस में टकराने से जो घर्षण हो रहा है, उसका असर व्यापक तौर पर दिखने लगा है। वैज्ञानिकों की भाषा में इसे मैन बाउंड्री थ्रस्ट कहते हैं। हिमालय के नीचे उत्पन्न हुये मैन बाउंड्री थ्रस्ट के कारण 200 किमी दूर तक ट्रांसफर फॉल्ट विकसित हो रहा है।
इसके उलट इस टकराहट से जहां हिमालय की ऊंचाई हर साल 20 से 30 एमएम तक बढ़ती है और यही लगातार भूकंप की वजह भी बन रहा है। वरिष्ठ भूकंप वैज्ञानिक डॉ. सुशील बताते हैं कि पूरी दुनिया में हिमालयन रेंज से लगते देश भूकंप के लिहाज से बेहद संवेदनशील माने जाते हैं। इसकी वजह है इंडियन प्लेट और यूरेशिया प्लेट का लगातार टकराव। ये प्लेट्स एक-दूसरे के नीचे खिसक रही हैं। लिहाजा, हर दिन कहीं न कहीं छोटे भूकंप आते रहते हैं, लेकिन जब इन दोनों प्लेटों को टकराने के लिए ज्यादा गेप मिल जाता है तो टकराहट जोरदार होती है, जो बेहद तेज कंपन पैदा करती है। इसे आप नेपाल में आए भूकंप से समझ सकते हैं, जब बिल्डिंग्स ताश के पत्तों की तरह ढहकर जमीन पर गिर पड़ी थी। इससे ही आप अंदाजा लगा सकते हैं कि भविष्य में हिमालयी इलाकों के बाशिंदों को कितने बड़े संकट के लिए अभी से तैयार हो जाना चाहिए।
सब कुछ हवा में होगा
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के अनुसार पिछली शताब्दी के दौरान नेपाल, पाकिस्तान, भूटान और चीन में कम से कम 35 ग्लेशियल झीलों ने तबाही मचाई है, लेकिन ग्लेशियल झीलों के भूकंप के कारण टूटने से बढ़े हुए जोखिम पर शायद ही कभी चर्चा की गई। सुशील कुमार कहते हैं, इस तरह की आपदा बहुत संभव है। वो अपने दावे को मजबूत करने के लिए उन आंकडों का हवाला दे रहे हैं, जिन्हें लगातार वैज्ञानिक शोध कर दर्ज कर रहे हैं।
शोध में ये बात स्पष्ट रूप से सामने आ चुकी है कि इस क्षेत्र में बड़े भूकंप का खतरा लगातार बना हुआ है। भूकंप के केंद्र में एनर्जी इतनी ज्यादा होगी, कि सब कुछ हवा में होगा। इस झटके से चीजें स्थिर नहीं रह सकेंगी। ऐसे में स्वाभाविक है कि ग्लेशियल झीलों में भी पानी सुनामी की तरह रिएक्ट करेगा। विश्व बैंक और ग्लोबल फैसिलिटी फॉर डिजास्टर रिडक्शन एंड रिकवरी के साथ मिलकर आईसीआईएमओडी ने इस खतरे की पुष्टि की है। अब देखना दिलचस्प होगा कि हिमालयी राज्य भविष्य के इस न दिखने वाले दुश्मन से लड़ने के लिए खुद को कैसे तैयार करते हैं।
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