सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार को साफ कह दिया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में 'अंड-बंड काम' नहीं चलेंगे!

सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार को साफ कह दिया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में 'अंड-बंड काम' नहीं चलेंगे!

NEWSMAN DESK

सुप्रीम कोर्ट ने आज एक अहम मामले में सुनवाई करते हुए इजरायली स्पायवेयर ‘पेगासस’ के जरिये भारतीय नागरिकों की कथित जासूसी के आरोपों की जांच के लिए बुधवार को विशेषज्ञों की एक समिति का गठन कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में निजता का हनन नहीं हो सकता है और इसे लेकर न्यायालय मूक दर्शक नहीं बना रह सकता। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उसका प्रयास ‘राजनीतिक बयानबाजी’ में शामिल हुए बिना संवैधानिक आकांक्षाओं और कानून के शासन को बनाए रखना है, लेकिन उसने साथ ही कहा कि इस मामले में दायर याचिकाएं ‘ऑरवेलियन चिंता’ पैदा करती हैं।

‘ऑरवेलियन’ उस अन्यायपूर्ण एवं अधिनायकवादी स्थिति, विचार या सामाजिक स्थिति को कहते हैं, जो एक स्वतंत्र और खुले समाज के कल्याण के लिए विनाशकारी हो। पीठ ने कहा, ‘सभ्य लोकतांत्रिक समाज के सदस्य निजता की सुरक्षा की जायज अपेक्षा रखते हैं। निजता (की सुरक्षा) केवल पत्रकारों या सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए चिंता की बात नहीं है। भारत के हर नागरिक की निजता के हनन से रक्षा की जानी चाहिए। यही अपेक्षा हमें अपनी पसंद और स्वतंत्रता का इस्तेमाल करने में सक्षम बनाती है।’ शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐतिहासिक रूप से, निजता के अधिकार लोगों पर केंद्रित होने के बजाय ‘संपत्ति केंद्रित’ रहे हैं और यह दृष्टिकोण अमेरिका और इंग्लैंड दोनों में देखा गया था।

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मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने अंग्रेजी उपन्यासकार ऑरवेल के हवाले से कहा, ‘यदि आप कोई बात गुप्त रखना चाहते हैं, तो आपको उसे स्वयं से भी छिपाना चाहिए।’ शीर्ष अदालत ने कहा कि कथित जासूसी विवाद की स्वतंत्र जांच कराए जाने की मांग करने वाली याचिकाएं यह ‘ऑरवेलियन चिंता’ पैदा करती हैं कि आप जो सुनते हैं, वह सुनने, आप जो देखते हैं, वह देखने और आप जो करते हैं, वह जानने के लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किए जाने की कथित रूप से संभावना है।

पीठ ने कहा, ‘यह न्यायालय राजनीतिक घेरे में नहीं आने के प्रति हमेशा सचेत रहा है, लेकिन साथ ही वह मौलिक अधिकारों के हनन से सभी को बचाने से कभी नहीं हिचकिचाया।’ पीठ ने कहा, ‘हम सूचना क्रांति के युग में रहते हैं, जहां लोगों की पूरी जिंदगी क्लाउड या एक डिजिटल फाइल में रखी है। हमें यह समझना होगा कि प्रौद्योगिकी लोगों के जीवनस्तर में सुधार करने के लिए उपयोगी उपकरण है, लेकिन इसका उपयोग किसी व्यक्ति के पवित्र निजी क्षेत्र के हनन के लिए भी किया जा सकता है।’

क्या है मामला
अंतरराष्ट्रीय मीडिया कंसोर्टियम ने पेगासस प्रोजेक्ट के तहत यह खुलासा किया था कि इजरायल की एनएसओ ग्रुप कंपनी के 'पेगासस स्पायवेयर के जरिये नेता, पत्रकार, कार्यकर्ता, सुप्रीम कोर्ट के अधिकारियों के फोन कथित तौर पर हैक कर उनकी निगरानी की गई या फिर वे संभावित निशाने पर थे। दुनियाभर में हुए खुलासों पर अलग-अलग देशों में जांच चल रही है। भारत से 'द वायर' अंतरराष्ट्रीय मीडिया कंसोर्टियम में शामिल था। इस कड़ी में 18 जुलाई से 'द वायर'  सहित विश्व के 17 मीडिया संगठनों ने 50,000 से ज्यादा लीक हुए मोबाइल नंबरों के डेटाबेस की जानकारियां प्रकाशित करनी शुरू की थी, जिनकी पेगासस स्पायवेयर के जरिये निगरानी की जा रही थी या वे संभावित सर्विलांस के दायरे में थे।

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एनएसओ ग्रुप यह मिलिट्री ग्रेड स्पायवेयर सिर्फ सरकारों को ही बेचता है। भारत सरकार ने पेगासस की खरीद को लेकर न तो इनकार किया है और न ही स्वीकार किया है। इस खुलासे के बाद भारत सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं करने के चलते एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, वरिष्ठ पत्रकार एन. राम, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी एवं गैर सरकारी संगठन कॉमन काज ने याचिका दायर कर मामले की स्वतंत्र जांच कराने की मांग की थी।

‘जीवन’ का अर्थ पशुओं की भांति मात्र जीने से नहीं 
सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, ‘जब इस न्यायालय ने अनुच्छेद 21 के तहत ‘जीवन’ के अर्थ की व्याख्या की, तो उसने इसे रूढ़िवादी तरीके से प्रतिबंधित नहीं किया। भारत में जीवन के अधिकार को एक विस्तारित अर्थ दिया गया है। वह स्वीकार करता है कि ‘जीवन’ का अर्थ पशुओं की भांति मात्र जीने से नहीं है, बल्कि एक निश्चित गुणवत्तापूर्ण जीवन सुनिश्चित करने से है।’ पीठ ने कहा कि इस तीन सदस्यीय समिति की अगुवाई शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश आरवी रवींद्रन करेंगे। उच्चतम न्यायालय ने विशेषज्ञों के पैनल से जल्द रिपोर्ट तैयार करने को कहा और मामले की आगे की सुनवाई आठ सप्ताह बाद के लिए सूचीबद्ध की।

बार एंड बेंच के मुताबिक, शीर्ष अदालत ने कहा, ‘केंद्र द्वारा स्पष्ट रूप से खंडन (पेगासस के इस्तेमाल के बारे में) नहीं किया गया है। इस प्रकार हमारे पास याचिकाकर्ता की दलीलों को प्रथम दृष्टया स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है और इस प्रकार हम एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त करते हैं, जिसका कार्य सर्वोच्च न्यायालय द्वारा देखा जाएगा।’ कोर्ट ने इस मामले में केंद्र के लचर रवैये पर नाराजगी जाहिर की और कहा कि उन्होंने उचित हलफनामा दायर नहीं किया।

न्यायालय ने कहा कि केंद्र सरकार को साल 2019 से पेगासस हमले को लेकर जानकारी साझा करने के लिए पर्याप्त समय दिया गया था, लेकिन उन्होंने सीमित हलफनामा दायर किया, जिसके कारण कोई खास चीज पता नहीं चल पाई। शीर्ष अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार इस मामले में सिर्फ इतना ही काम कर पाई कि वे तथ्यहीन और मनमाना आधार पर याचिकाओं को खारिज करते रहे। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि केंद्र हर समय जवाबदेही से बचने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ नहीं ले सकता है। उन्होंने कहा कि यदि वे ऐसा दावा करते हैं, तो इसे साबित करना होता है और इसके पक्ष में दलीलें देनी होती हैं। कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में निजता का हनन नहीं हो सकता हैं।

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सात बिंदुओं में जांच:  सुप्रीम कोर्ट ने  इस समिति को मुख्य रूप से सात बिंदुओं पर जांच करने का आदेश दिया है, जिनमें शामिल हैं ...

1- क्या भारतीय नागरिकों के फोन से डेटा, बातचीत या अन्य सूचना प्राप्त करने के लिए पेगासस स्पायवेयर का इस्तेमाल किया गया था?
2- इस तरह के स्पायवेयर हमले के शिकार लोगों या पीड़ितों में कौन-कौन शामिल हैं, इसका विवरण इकट्ठा करने के लिए कहा गया है.
3- साल 2019 में पेगासस स्पायवेयर के जरिये भारतीय नागरिकों के वॉट्सऐप हैक किए जाने की खबरें आने के बारे भारत सरकार ने इस संबंध में क्या कदम उठाए हैं?
4- क्या भारत सरकार या राज्य सरकार या भारत की किसी केंद्रीय या राज्य एजेंसी द्वारा पेगासस स्पायवेयर खरीदा गया है, ताकि इसे भारतीय नागरिकों के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सके.
5- क्या भारत की किसी सरकारी एजेंसी द्वारा नागरिकों पर पेगासस स्पायवेयर का इस्तेमाल किया गया है, और यदि ऐसा हुआ है तो वह किस कानून, नियम, दिशानिर्देश, प्रोटोकॉल या कानूनी प्रक्रिया के तहत किया गया था?
6- क्या किसी घरेलू व्यक्ति या संस्था ने भारतीय नागरिकों पर पेगासस का इस्तेमाल किया है, यदि ऐसा है, तो क्या इसकी स्वीकृति मिली हुई थी?
7- इसके अलावा समिति अपने जरूरत और सुविधानुसार इस केस से जुड़े किसी भी अन्य मामले पर विचार कर उसकी जांच कर सकती है.

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