उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की जिंदगी में 115 दिन की चांदनी के बाद ही अंधेरी रात आ गई है। भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व के निर्देशों के बाद सीएम तीरथ सिंह रावत ने शुक्रवार देर रात राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को इस्तीफा सौंप दिया। इससे पहले दिल्ली में तीरथ ने सांविधानिक संकट का हवाला देते हुए खुद पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा को लिखे पत्र में पद छोड़ने की इच्छा जताई थी। डबल इंजन के नारे के साथ सूबे की सत्ता में आई बीजेपी ने इस राज्य को लगातार बहुत कम समय में दो दफा राजनीतिक संकट में डाल दिया है। तीरथ सिंह रावत को कोविड मिसमैनेजमैंट के साथ ही महिलाओं को लेकर बेहद सतही बयान के लिये ही याद किया जाएगा।
मुख्यमंत्री रावत ने रात करीब दस बजे प्रेसवार्ता कर सबको चौंका दिया था। अटकलें थीं कि सीएम तीरथ प्रेसवार्ता में अपने पद से इस्तीफे का एलान कर सकते हैं। लेकिन इस दौरान उन्होंने बाकी किसी भी राजनीतिक मुुद्दे पर बोलने की बजाय अपनी सरकार के काम गिनाए। अब शनिवार को देहरादून में बीजेपी विधायक दल की बैठक आयोजित की जाएगी। सभी भाजपा विधायकों को 11 बजे तक बैठक में पहुंचने के निर्देश दिए गए हैं।
तीरथ सिंह रावत ने इससे पहले भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को अपने इस्तीफे की पेशकश की । उन्होंने बीते 10 मार्च को त्रिवेंद्र सिंह रावत की विदाई के बाद मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की थी। शपथ लेने के 115 दिन बाद दो जुलाई को अब आखिरकार तीरथ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। ऐसे में देखें तो तीरथ ने बहुत कम दिनों के लिये मुख्यमंत्री रहने का नया रिकॉर्ड भी सूबे की राजनीति दर्ज कर लिया है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री @TIRATHSRAWAT ने राजभवन में भेंट कर मुख्यमंत्री पद से त्याग पत्र सौंपा। pic.twitter.com/Vd1tB9f3W1
— Baby Rani Maurya (@babyranimaurya) July 2, 2021
सूत्रों के अनुसार तीरथ सिंह रावत ने भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को दिए अपने खत में कहा है कि वे जनप्रतिधि कानून की धारा 191 ए के तहत छह महीने की तय अवधि में चुनकर नहीं आ सकते हैं। तीरथ सिंह रावत ने कहा, 'मैं छह महीने के अंदर दोबारा नहीं चुना जा सकता। ये एक संवैधानिक बाध्यता है। इसलिए अब पार्टी के सामने मैं अब कोई संकट नहीं पैदा करना चाहता और मैं अपने पद से इस्तीफे की पेशकश कर रहा हूं। आप मेरी जगह किसी नए नेता का चुनाव कर लें।'
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रेस में सबसे आगे सतपाल महाराज
तीरथ की विदाई के साथ ही उत्तराखंड में नए सीएम के तौर पर फिर से कई नामों की चर्चा है। पिछली दफा हालांकि पार्टी हाईकमान ने सबको चौकातें हुये तीरथ सिंह रावत को गद्दी सौंप दी थी, लेकिन इस दफा पार्टी ऐसे चेहरे पर ही दांव लगाने के मूड में हो, जिस चेहरे के भरोसे अगले चुनाव में भी पार्टी जा सके। इस बीच इस तरह की चर्चा भी है कि सतपाल महाराज को दिल्ली तलब किया गया है और पार्टी उनके चेहरे पर सूबे में दांव खेल सकती है। सूत्रों का कहना है कि संघ को भी महाराज के नाम पर आपत्ति नहीं है। संघ के एक पदाधिकारी की मानें तो सतपाल महाराज के हिस्से गद्दी आने की प्रबल संभावना बन रही है। महाराज का चेहरा गढ़वाल और कुमाऊं में तो जाना-पहचाना नाम है ही, इसके अलावा कई राज्यों में महाराज की अपनी 'भक्त मंडली' भी है।
महाराज तीरथ के मुकाबले मंझे हुये नेता हैं और वो सूबे में बीजेपी का चेहरा बनने पर आगामी विधानसभा चुनावों में भी पार्टी को फायदा पहुंचा सकते हैं। संघ के एक पदाधिकारी के मुताबिक पार्टी की ओर से पर्यवेक्षक नरेंद्र तोमर शनिवार को नये नाम की घोषणा कर सकते हैं। पदाधिकारी ने कहा कि नाम लगभग तय है और महाराज के नाम के सवाल पर उनका जवाब था- 'महाराज उत्तराखंड में कद्दावर नेता तो हैं ही, इसके अलावा देश के कई राज्यों में उनके अपने समर्थक भी हैं। वो चीजों को बेहतर समझते हैं।'
कहा तो यह भी जा रहा है कि तीरथ की ताजपोशी के तुरंत बाद ही पार्टी को इस बात का अहसास हो गया था कि उनके भरोसे अगला विधानसभा चुनाव नहीं जीता जा सकता और इसीलिये तीरथ सिंह को चुनाव ही नहीं लड़वाया गया। महाराज के अलावा राजनीतिक गलियारों में एक बार फिर से सीएम पद के दावेदारों में केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ.रमेश पोखरियाल निशंक और राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी का नाम भी उछाला जाने लगा है।
हरीश रावत ने ले ली चुटकी
इधर सूबे के राजनीतिक संकट पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने चुटकी लेते हुये एक वीडियो जारी करते हुये कहा- 'उत्तराखंड के सम्मुख एक गंभीर वैधानिक/संवैधानिक उलझन खड़ी हो गई है और भाजपा की समझ में यह नहीं आ रहा है कि वो किस ऑप्शन का चयन करें! राष्ट्रपति शासन या तीरथ सिंह रावत से इस्तीफा दिलवाकर या उनको फिर से मुख्यमंत्री बनाना। उसके विषय में भाजपा के नेतृत्व को शंका है कि कोर्ट शट डाउन कर सकता है कि क्योंकि कानून की भावना को निरस्त करने के लिए आप कोई कदम नहीं उठा सकते हैं, इसको कानून की मूल भावना को निरस्त करना माना जाएगा और तीसरा उपाय यह है कि आप विधानसभा भंग करें, लेकिन उसमें भी कोर्ट सामने आएगा। क्योंकि आप अपनी राजनैतिक उलझन से बचने के लिए पूरे राज्य को उलझन में नहीं डाल सकते।'
इतना ही नहीं अपनी पोस्ट में हरीश रावत ने आगे विपक्षियों पर तंज कसते हुये लिखा- 'मुख्यमंत्री जी लगातार दिल्ली में हैं, कुछ मौसमी तोते भी दिल्ली में आ गये हैं और राज्य के अंदर शासन व्यवस्था बिल्कुल ठप पड़ी हुई है। राज्य के लोगों की समझ में यह नहीं आ रहा है कि डबल इंजन की कैसी परिभाषा है और कैसी माया है?'
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