अतुल सती ने पत्रकारिता की पढ़ाई की और फिर राजनीतिक कामों में मशगूल हो गये। हिमालय में होने वाली घटनाओं पर अतुल करीब से नजर रखते हैं और नियमित तौर पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लिखते रहते हैं। फिलहाल अतुल हिमालयी कस्बे जोशीमठ में रह रहे हैं।
उत्तराखंड एक दफा फिर से ग्लेशियर के टूटने और इस हादसे से लोगों के मारे जाने को लेकर चर्चाओं में है। इसी इलाके में रैणी में 7 फरवरी की आपदा को गुजरे हुये अभी ढाई महीने ही हुये हैं, लेकिन दोबारा आपदा ने एक बार फिर से दस्तक देकर निर्माण परियोजनाओं पर सवाल खड़े कर दिये हैं। दूसरी दफा फिर से आपदा उत्तराखण्ड की उसी घाटी में भारत-चीन सीमा के निकट आई है, जहां पहले ही तबाही का मंजर है। बार-बार आपदाओं की जद में आते लोग न केवल अतिसंवेदनशील उच्च हिमालयाी इलाकों में निर्माणाधीन परियोजनाओं के दौरान सुरक्षा के सवालों को धत्ता बता रहे हैं, बल्कि इस इलाके की इकाॅलाजी को तबाह करने का भी संकेत है। हैतरतनाक बात यह है कि बार-बार होते इन हादसों के बावजूद भी सरकार हिमालय में निर्माणाधीन परियोजनाओं को लेकर सकारात्मक और शोधपरक रवैया रखती नजर नहीं आती है।
23 अप्रैल की दोपहर को रैणी से लगभग 70-72 किलोमीटर आगे, जहां पिछली दफा 7 फरवरी को आपदा की शुरुआत हुई थी, वहीं पास ही सुमना में फिर से हिमस्खलन हुआ है । इस हादसे की चपेट में सीमा सड़क संगठन के मजदूरों का एक पूरा कैम्प आ गया, जिसमें 402 मजदूर मौजूद थे । हादसा दोपहर के वक्त हुआ, लिहाजा कई जानें बेमौत मारे जाने से बच गई। अब तक घाटी से जो सूचना सामने आई है, उसके मुताबिक 18 लोगों के शव बरामद किये जा चुके हैं, जबकि 8 मजदूर घायल हैं। इनमें 2 मजदूरों की हालत गम्भीर बताई जा रही है।
समाचारों में लगातार इस घटना को ग्लेशियर का खिसकना कहा जा रहा है। दरअसल यह हिमस्खलन अथवा एवेलांच की घटना है । यदि यह सच में ही ग्लेशियर के खिसकने की घटना होती तो हादसा बहुत बड़ा होता। हिमस्खलन ताजी कच्ची बर्फ के किसी तात्कालिक परिस्थिति से खिसकने की परिघटना है।
जहां यह हादसा हुआ है, वह एक पतली गार्ज नुमा घाटी है, जो सदियों का वक्त लेकर नदी के कटाव से बनती चली गयी है। यहां घाटी के दोनो ओर सीधी चट्टाने हैं, जिसे काटकर नदी के साथ-साथ चीन की सीमा तक सड़क बनाने का कार्य पिछले काफी लंबे समय से चल रहा है। जहां हांदसा हुआ वहीं नदी के ऊपर एक पुल है और यहीं एक पानी का स्रोत भी नजदीक ही मौजूद है। इसी के चलते मजदूरों ने यहां अपना कैम्प लगाया था। मजदूरों को शायद यही जगह सुरक्षित लगी होगी। एक बात और है और वह यह कि इस बार जाड़ों में उतनी बर्फवारी भी इस इलाके में नहीं हुई। लिहाजा लापरवाही के चलते हादसे वाली जगह को सुरक्षित मानने की भूल की गई, जबकि पूर्व में ऐसा ही एक बड़ा हादसा यहां हो चुका था। पूर्व में हुये हादसे में आईटीबीपी के जवान हिमस्खलन की चपेट में आये थे, लेकिन बावजूद इस घटना के सबक नहीं लिया गया।
यह भी पढ़ें: हिमालय की झीलों में उठेगा तूफान, तैयारी नहीं की तो तबाह हो जाएंगी बसावट!
हादसे वाले दिन, पिछले तीन-चार दिनों से पहाड़ों पर लगातार हो रही बारिश और बर्फबारी के चलते मौसम बेहद खराब हो चुका था। ऐसे में अंदेशा जताया जा रहा है कि ताजी बर्फ की परत, पुरानी जमी बर्फ पर चढ़ती चली गयी होगी और बाद में यही बर्फ टूटकर अपने साथ नीचे आते हुये मिट्टी का मलवा साथ बहाते हुये इस तबाही की वजह बन गई। मजदूरों के अस्थाई कैम्प जो कि टिन शेड के बने हुए थे, इस मलबे के नीचे आकर ध्वस्त हो गए। जहां, हादसा हुआ वहां सुरक्षा के पैमानों का कितना ख्याल रखा गया था, इसकी अभी तक कोई जानकारी सामने नहीं आई है।
हादसे वाली जगह से ही कुछ दूरी पर भारतीय सेना का बेस कैंप भी मौजूद है। ये घटना दोपहर के वक्त हुई, जिससे मजदूर दौड़ कर तत्काल सेना के कैम्प में सहायता लेने के लिये आ गये, लेकिन हादसे का वक्त यदि रात होता तो मंजर कुछ और हो सकता था। सेना की ओर से तुरंत मिली मदद के चलते अधिकांश मजदूर बचा लिये गए। हालांकि, बचाव कार्य में खराब मौसम लगातार बाधा बना हुआ है। कुछ दिनों से ऊंचाई वाले इलाकों में हो रही बर्फबारी के चलते इस घाटी को जोड़ने वाला मुख्य सड़क मार्ग भी बंद पड़ा हुआ है, जिसके चलते हादसे वाली जगह पर जोशीमठ से सहायता पहुंचाना लगभग असंम्भव काम था । जोशीमठ से घाटी को जोड़ने वाला यह रास्ता अब भी बंद पड़ा हुआ है ।
#Rescue Op at Sumna, Joshimath
— BORDER ROADS ORGANISATION (@BROindia) April 24, 2021
A sudden glacial burst at Sumna yesterday 1600 h disrupted the normalcy in #Joshimath Region.
Army assisted @BROindia since last evening to rescue 291 labourers at Sumna. #Operations are on.@TIRATHSRAWAT @ukcmo @PMOIndia @RajnathSingh_in
सीमा सड़क संगठन के कमान अधिकारी का कहना है कि जोशीमठ से 70 किलोमीटर दूर मलारी से आगे रास्ते में जगह-जगह 20 से लेकर 25 फीट तक बर्फ जमा है, जिससे सुमना तक सड़क मार्ग से पहुंचना अभी सम्भव नहीं हो पा रहा है। हालांकि, पिछले शनिवार से मौसम थोड़ा साफ हुआ है, जिसके बाद से इस इलाके में हवाईमार्ग से राहत कार्य में तेजी लाई गयी है। यह भी बताया गया है कि करीब 378 मजदूरों को सेना ने अपने कैम्प में हादसे के बाद आश्रय दिया था, जिन्हें अब निचले इलाकों की ओर सुरक्षित जगहों पर शिफ्ट किया जा रहा है।
इस हादसे का एक पहलू यह भी है कि उच्च हिमालयाी इलाके में भारत सरकार के लिये काम कर रहे इन मजदूरों के लिए अभी तक सरकार की तरफ से किसी प्रकार के मुआवजे की घोषणा नहीं की गई है। सीमा सड़क संगठन के अधिकारी जरूर यह कह रहे हैं कि मजदूरों को उनकी उचित बीमा राशि व अन्य फंड दिए जाएंगे। बता दें कि मृतकों में अधिकांश मजदूर भारत के झारखंड राज्य से ताल्लुक रखते हैं। हालांकि, झारखंड सरकार की ओर से भी अभी तक इस हादसे को लेकर कोई बयान या संवेदना प्रकट नहीं की गयी है, जो कि सरकारों की संवेदनशीलता का प्रदर्शन करने के लिये पर्याप्त है।
दिल्ली विश्वविद्यालय में भूगर्भशास्त्र के प्रोफेसर डॉ. नरेश राणा इस घटना के संदर्भ में कहते हैं कि हिमालयी क्षेत्रों में यह सामान्य घटनाएं हैं, जो निरंतर चलती रहती हैं। यहां पूर्व में भी ऐसी घटनाएं होती रही हैं। यह एक तरह से भूस्खलन की तरह ही है। मानवीय क्षति होने से ऐसी घटनाएं जरूर गम्भीर हो जाती हैं। ऐसे में प्रोफेसर का ये बयान यह सवाल भी खड़ा करता है कि जब ऐसी घटनाएं सामान्य तौर पर चलती रहती हैं, तब सरकार किसी प्रोजेक्ट को ऐसे जोखिम वाले इलाकों में शुरू करने से पहले सुरक्षा मानकों और रिसर्च पर कितना ध्यान देती है। एक सवाल यह भी खड़ा होता है कि ऐसी संवेदनशील जगहों पर बर्फवारी के दौरान सरकार की ओर से क्या कोई अलर्ट जारी किया गया था, जवाब है नहीं। हिमालयाी इलाकों में स्थितियों को भांपने में सरकार लगातार असफल साबित हुई है।
यह भी पढ़ें: लाखों साल पुराना हिमालय, बीते सौ साल में ही कैसे बदल गया!
सीमा सड़क संगठन के पास बाॅर्डर से सटे हुये इन सीमांत क्षेत्रों में सड़क निर्माण की जिम्मेदारी है। उच्च हिमालयी ये इलाके सुरक्षा की दृष्टि से तो अति संवेदनशील हैं ही, साथ ही भौगोलिक दृष्टि से भी यह इलाका बेहद संवेदनशील है। जिस घाटी में हादसा हुआ वो पूरी घाटी बंदूक की नाल की तरह एक गार्ज की शक्ल में है। ऐसे में बड़े पैमाने पर इन इलाकों में मानवीय गतिविधियां कमजोर और लगातार विकसित होते हिमालयी विस्तार के साथ टकरा कर खतरनाक परिस्थितियों को जन्म दे रही हैं, लेकिन दूसरी ओर इन इलाकों में बड़ी परियोजनाओं पर लगातार काम चल रहा है।
भारत सरकार की महत्वाकांक्षी भारत माला परियोजना के तहत इस क्षेत्र में भी डबल लेन सड़क बनाई जा रही है। खबरों की माने तो इस सड़क को सरकार भविष्य में फोर लेन करने की तैयारी में है। यहीं से सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल भी उठने शुरू हो जाते हैं। वैज्ञानिक लगातर हिमालयी इलाकों में बड़ी परियोजनाओं का विरोध करते आ रहे हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि सरकारों को शोध से कोई खास लगाव नहीं है। सरकारें इन इलाकों में सड़कों की चैड़ाई को सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बता रही हैं, लेकिन इसके उलट हिमालय की संवेदनशीलता के सवाल को छिपा दे रही हैं।
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के सामने ऑल वेदर रोड की चैड़ाई का मामला सामने आया था, जिसके बाद ऑल वेदर रोड की चैड़ाई बढ़ाने पर रोक लग गई थी। यह फैसला तब आया, जबकि ऑल वेदर रोड के अधिकांश हिस्से बनकर तैयार हैं। ऑल वेदर रोड़ की चौड़ाई 7 मीटर हो या 10 मीटर इसे लेकर अब भी गतिरोध बना हुआ है। सड़क परिवहन मंत्रालय का 2018 में आया सर्कुलर कहता है कि पहाड़ी इलाकों में सड़क की चौड़ाई अधिकतम 5.50 मीटर ही रखी जाये, जबकि इसी सर्कुलर को खुद सरकार ने धत्ता बताकर ऑल वेदर रोड की चैड़ाई तकरीबन दोगुनी कर दी थी। अब सरकार इस सबसे बेपरवाह होकर नीति घाटी में नए सिरे से भूमि अधिग्रहण की तैयारी कर रही है, जिससे सड़क को फोर लेन में बदलने का काम शुरू किया जा सके।
हिमालय की मौजूदा स्थिति पर अपनी 2019 की रिपोर्ट में इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज, द्वारा पूर्वानुमान लगाया गया था कि ग्लेशियर आने वाले सालों में पीछे हट जाएंगे, जिससे भूस्खलन और बाढ़ आएगी। इस रिपोर्ट के बाद सरकार की ओर से क्या कदम उठाये गये, यह भी कहीं सरकारी फाइलों में ही दबा होगा।
इधर मानवीय हस्तक्षेपों के खिलाफ प्राकृतिक आपदाओं को विशेषज्ञ लगातार चेतावनी के रूप में देख रहे हैं, जिसमें जन-धन की हानि तो होगी ही, साथ ही हिमालय की पारिस्थितिकी काे भी जबरदस्त नुकसान पहुंचने का आंकलन है। बहरहाल, विकास व पर्यावरण के बीच इस द्वंद्व में संतुलन स्थापित किये बगैर, न तो इन घटनाओं से बचा जा सकेगा और ना ही इन कठिन परिस्थितियों में जीवन-बसर करते हिमालयी लोगों के जीवन को सुरक्षित रखा जा सकेगा।
Leave your comment