दुनिया का यूं तो कोई भी छोर लूट से अछूता नहीं है, लेकिन इस लूट के खिलाफ जहां जनता लड़ाइयां लड़ रही है, उन जगहों की बात दूर तक पहुंचनी चाहिए। प्राकृतिक संसाधनों की इस लूट का सिलसिला भारत के सरहदी राज्य उत्तराखंड में भी दिखता है। हालांकि, यहां लोग अपने हिस्से की लड़ाइयां भी लड़ रहे हैं। लूट के खिलाफ नागरिक विरोध भी दर्ज कर रहे हैं और अब इसी कड़ी में नैनीताल जिले के सतोली का नाम भी शामिल हो गया है। सतोली के आस-पास स्थानीय लोगों में पानी की लूट के खिलाफ रोष व्याप्त है और अब विरोध में लोगों ने अपने आंदोलन को बड़ा करने का निर्णय लिया है।
इस बड़े से लोकतंत्र में अपने संसाधनों को बचाने के लिए जब बड़ी लड़ाइयां ही जूझती दिख रही हैं, तब सतोली में पानी की लूट के खिलाफ लोगों की अपील को पढ़ा जाना चाहिए। रविवार को ग्रामीण अपने प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के लिए धरना देने जा रहे हैं। एक छोटे से पहाड़ पर लोगों ने अपने आस-पास के जल स्त्रोतों के संरक्षण के साथ ही बायोडायवर्सिटी को सुरक्षित रखने की लड़ाई भी छेड़ दी है। सतोली बचाओ समूह के तत्वाधान में ग्रामीणो ने सतोली में एक बोरवेल की खुदाई रुकवाने के लिए आंदोलन छेड़ दिया है। आरोप है कि इस बोरवेल का इस्तेमाल कमर्शियल एक्टिविटीज के लिए किया जा रहा है, जबकि अनुमति निजी प्रयोग के लिए ली गई थी। इससे भविश्य में न केवल इलाके के जल स्त्रोतों प्रभावित होंगे, बल्कि पानी के नए संकट भी खड़े हो जाएंगे।
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ऐसे वक्त में जब खुद सरकार जल जीवन मिशन के तहत ‘हर घर जल, हर घर नल’ का शिगूफा छोड़कर पानी के इंतजार में बैठी हुई है, तब पानी की लूट के खिलाफ लोगों की मांगों को सुनना जरूरी हो जाता है। सतोली में बोरवेल के खिलाफ इकट्ठा हुए ग्रामीणों का कहना है कि इस तरह की गतिविधियों का असर उनके आस-पास के पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ेगा। दस साल पहले दी गई अनुमति को लेकर अब बोरवेल की खुदाई ग्रामीणों को चिंतित कर रही है। इससे न केवल भूमिगत जल की स्थिति पर प्रभाव पड़ेगा, बल्कि बढ़ती बसावट नए संकट भी सामने लाएगी। सतोली वाइल्ड-लाइफ और बर्ड वाॅचिंग के लिए भी खासी मुफीद जगह है। ऐसे में जल संकट केवल इंसानों के लिए ही नहीं बल्कि इस इलाके के वन्य जीवों को भी झेलना होगा।
स्थानीय स्तर पर जब इस मामले की सुनवाई नहीं हो सकी, तब ग्रामीणों ने बोरवेल को रूकवाने के निए बिना किसी राजनीतिक नेतृत्व के अपनी लड़ाई खुद लड़ने की ठानी हैं। ग्रामीणों का कहना है कि बोरवेल और अनियंत्रित निर्माण से पहाड़ी ढ़लानो पर उपलब्ध प्राकतिक स्त्रोत सूखने लगेंगे, जिसका असर व्यापक पैमाने पर पड़ेगा। सतोली और आस-पास के इलाकों में पहले से ही सरकारी पेयजल आपूर्ति की स्थितियां खराब हैं। मांग के अनुरूप पानी की अनुपलब्धता के बाद अब ये नया संकट इस इलाके की बसावट को संघर्ष के नए मुहाने पर ले आया है।
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एक अपील पत्र में अपनी बात को समझाते हुए ग्रामीणों ने लिखा है- ‘कल्पना कीजिए कि आपके पास पहुंचने से पहले ही आपके इंटरनेट की उपलब्ध बैंडविड्थ का 80 फीसदी कोई अपने इस्तेमाल के लिए खींच ले। यह मामला सभी के हिस्से के पानी का है।’ ग्रामीणों ने पेयजल निगम के सचिव के मार्फत शासन को अपना मांग पत्र भेजा है। सतोली बोरवेल के खिलाफ पहाड़ के एक छोटे से टुकड़े पर रविवार को ग्रामीण धरना प्रदर्शन करने जा रहे हैं।
पानी की लूट के खिलाफ पहाड़ों को बचाने के लिए ग्रामीणों की इस लड़ाई को स्थानीय स्तर पर लोगों का खूब साथ मिल रहा है। इस आंदोलन के बुलावे में एक खास बात का भी जिक्र किया गया है। कोविड प्रोटोकाॅल को देखते हुए आयोजनकर्ताओं ने इस प्रदर्शन में शामिल होने वाले नागरिकों से कोविड प्रोटोकाॅल का पालन करने की अपील की है। बहरहाल, सतोली बोरवेल के बहाने ही सही लेकिन आस-पास के इलाके में अपने प्राकृतिक संसाधनों को बचाने की लड़ाइयां लोगों को जागरूक तो कर ही रही हैं। उत्तराखंड में विकास के नाम पर पहले ही तबाही चारों ओर नजर आती है जिसका असर पहाड़ी हिस्सों की छोटी बसावटों को भी भोगना होता है। सतोली की लड़ाई पानी को बचाने और अपने हिस्से के पानी पर अपना हक जताने की भी लड़ाई है।
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