देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पुण्यतिथि के अवसर पर देश भर में उन्हें याद किया गया। राजीव गांधी जिन्हें आधुनिक भारत के शिल्पी के बतौर याद किया जाता है, असल में ऐसी टीम की बदौलत अपने सपनों को जमीन पर उतार सके, जिसने भारत को मौजूदा शेप देने में अहम भूमिका अदा की है। इन्हीं में एक शख्सियत है सैम पित्रोदा। एक ऐसा शख्स जिसके नाम से लोग संशय में रहते हैं कि शायद यह कोई विदेशी होगा। असल में वो देसी साइंटिस्ट हैं, जिन्होंने विदेश में भी अपने हुनर और चमत्कारी अविष्कारों से खूब नाम कमाया और जब राजीव गांधी ने उन्हें भारत आने का न्यौता दिया तो वह लौट आए अपने देश की जमीन पर।
सैम का असली नाम सत्यनारायण गंगाराम पित्रोदा है। चार मई 1942 उड़ीसा के तितलागढ़ में जन्मे पित्रोदा एक गरीब परिवार में पैदा हुये। उड़ीसा में पितल के बर्तनो का काम करने वालों को पित्रोदा कहते हैं। सैम पित्रोदा के पास दुनिया भर में 100 से ज्यादा अविष्कारों का पेटेंट है। बेहद गरीब परिवार में जन्मे सैम पित्रोदा के अमेरिका जाने और वहां से फिर भारत लौटने की कहानी भी काफी दिलचस्प है।
भौतिकी में स्नातकोत्तर करने के बाद इलेक्ट्रोनिक्स में मास्टर की डिग्री हासिल करने के लिए पित्रोदा शिकागो के इलिनॉय इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी पंहुचे। वो वहां इसलिये गये थे, क्योंकि उन्हें भारत सरकार ने स्कॉलरशिप दी थी। साठ और सत्तर के दशक में पित्रोदा दूरसंचार और कंप्यूटिंग के क्षेत्र में तकनीक विकसित करने की दिशा में काम करते रहे।
ये उस दौर की बात है जब टेलीफोन में गोल घुमाउदार डायलर (Rotary Dialer) होता था। कॉल न लगने पर दोबारा नंबर डायल करना होता था और रिडायल जैसी सुविधा दुनिया के पास मौजूद नहीं थी। सैम पित्रोदा ने दुनिया को बार-बार नंबर लगाने की झंझट से आखिरकार मुक्ति दे दी। फोन में बटन सिस्टम (Push Button) और ‘रिडाइल’ का अविष्कार सैम ने कर दिया। यह कारनामा करते ही अमेरिका ने उन्हें तुरंत अपनी नागरिकता दे दी। साथ ही कई बड़े सम्मान भी दिये। उनके पास इस समय दुनिया में सौ से ज्यादा अविष्कारों के पेटेंट है, जिनमें ज्यादातर टेलीकम्यूनिकेशन पर अधारित है।
साल 1984 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने पित्रोदा को भारत आकर अपनी सेवाएं देने का न्योता दिया। इसके पीछे भी एक कहानी है। जो खुद सैम ने एक इंटरव्यू के दौरान बताई। उन्होंने बताया कि वो अमेरिका से किसी काम से भारत दौरे पर आये हुये थे। वो यहां भारत में दिल्ली के अशोका होटल में ठहरे हुये थे। अपनी पत्नी से बात करने का मन हुआ तो होटल में अपने कमरे में मौजूद लैंडलाइन के जरिये ऑपरेटर को पत्नी को फोन लगाने को कहा। लाइन इतनी खराब थी कि आखिर में सैम ने फोन ही पटक दिया। उन्होंने मन में सोचा कि भारत टेलीकम्यूनिकेशन में कितना पीछे है। सोचते-सोचते वो अमेरिका लौट गये। संयोग से इसी दौरान उन्हें राजीव गांधी का फोन भी आ गया।
सैम को जब राजीव गांधी ने भारत आकर काम करने का न्यौता दिया, तो वह इसे ठुकरा नहीं सके और सीधे अपने वतन लौट आये। भारत लौटने के बाद उन्होंने दूरसंचार के क्षेत्र में स्वायत्त रूप से अनुसंधान और विकास के लिए सी-डॉट यानि 'सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ टेलिमैटिक्स' की स्थापना की। ये भारत में दूरसंचार का एक नया युग लेकर आया। अमेरिका में अपनी लाखों की आमदनी को छोड़ सैम ने एक रुपया तनख्वाह पर भारत में काम किया। राजीव गांधी की हत्या के बाद उनकी सारी जमा पूंजी खत्म हो गई।
राजीव के जाने के बाद सैम की काबिलियत नई सरकार के लिये शायद जरूरी नहीं थी। नई सरकार ने उनकी अहमियत नहीं समझी। सैम वापस लोटने और भारत में ही रुककर काम करने की दुविधा के बीच झूल रहे थे। इसी बीच सैम को किसी ने बताया कि उनके एक अविष्कार को जापान की एक कंपनी उपयोग में ला रही है। सैम ने उस कंपनी को नोटिस भेज दिया। उस अविष्कार पर सैम का पेटेंट था। जापानी कंपनी ने नोटिस का जवाब दिया और आखिरकार मामला कोर्ट पहुंच गया, जहां सैम की जीत हुई और उन्हें उस वक्त बतौर हर्जाना जापानी कंपनी से मोटी रकम मिल सकी।
नई सरकार में गैरजरूरी हो चले सैम भारी मन से अपने परिवार के पास अमेरिका लौट आये और लंबे समय तक अमेरिका में ही तकनीकी अनुसंधान का काम करते रहे। वक्त गुजरता चला गया और इस बीच भारत में कई सरकारें आती-जाती रही। इसके बाद एक बार फिर साल 2004 में जब संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार सत्ता में आई तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सैम पित्रोदा को वापस भारत आने का न्योता दिया। सैम फिर लौट आये और उन्हें भारतीय ज्ञान आयोग का चेयरमैन बनाया गया। एक अर्थशास्त्री, किसी विकासशील देश के लिये एक अविष्कारक की जरूरत को समझता था। सैम अपने काम में जुट गये। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कारों से सम्मानित पित्रोदा को विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए 2009 में पद्मभूषण से भी नवाजा गया।
1992 में पित्रोदा संयुक्त राष्ट्र में भी सलाहकार रहे। सैम कोई राजनीतिक व्यक्ति नहीं है, वो खालिस रूप से एक वैज्ञानिक है, जो धीरे-धीरे राजनीति के गलियारों में भी बढ़ते चले गये। राजीव गांधी से दोस्ती के चलते आज भी सैम कांग्रेस के साथ जुड़े हुये हैं। सैम के पास जो सौ पेटेंट है, उनकी कीमत ही मौजूदा दौर में हजारों करोड़ों यूएस डॉलर है।
सैम पित्रोदा नाम रखने के पीछे वजह
सैम पित्रोदा नाम रखने के पीछे भी एक किस्सा है। सैम की जब अमेरिका में एक टेलीकम्युनिकेशन कंपनी में नौकरी लगी, तब सेलेरी के लिये उनका बैंक में खाता खुलना था। उनकी कंपनी की महिला एकाउंटेंट ने उन्हें बताया कि अमेरिकी बैंकों में खाता खोलने वाले फार्म में इतने बड़े नाम के लिये जगह ही नहीं होती। लिहाजा, उनको नाम छोटा करना होगा। सैम ने इससे इंकार कर दिया। उन्हें तीन महीने तक सैलरी नहीं मिली। जब आर्थिक तंगी आई, तब सैम ने अकाउंटेंट पर ही अपना नाम लिखने की जिम्मेदारी छोड़ दी। कंपनी ने उन्हें नया नाम दिया सैम पित्रोदा और यहीं से सत्यनारायण दुनियाभर के लिये हो गये सैम! पित्रोदा उड़ीसा में पीतल का काम करने वाले कामगारों की एक जाति है। उड़िया में पीतल को पित्रोदा कहते हैं... तो आज जिन सैम पित्रोदा को आप जानते हैं, टीवी पर देखते हैं, उनकी यात्रा बेहद दिलचस्प है। दिलचस्प बात यह है कि सैम की 21 मई को एक नई किताब भी आई है, जिसका नाम है 'रीडिजाइन दि वर्ल्ड'।
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