धोनी! वो जादुई प्लेयर जिसने हजारों किमी दूर खेलकर भी हमारी चीखें चुरा ली... 

धोनी! वो जादुई प्लेयर जिसने हजारों किमी दूर खेलकर भी हमारी चीखें चुरा ली... 

हिमांशु जोशी

हिमांशु जोशी पत्रकारिता शोध छात्र हैं और स्वतंत्र पत्रकारिता करते हैं।

इस वक्त जब दुनिया की नजरें टोक्यो ओलपिंक पर टिकी बैठी हैं, तब ऐसी कई कहानियां हमारे सामने हैं, जब खिलाड़ियों ने मुश्किल परिस्थितियों से निकल कर ओलंपिक तक का अपना मुश्किल सफर तय किया। जज़्बा कुछ कर गुजरने का, जज़्बा खुद को साबित करने का, जज्बा अपने मुल्क का झंडा सीने पर लगाए गर्व के क्षण चुराने का..  हमारे सामने ऐसे कई खिलाड़ियों की एक पूरी फेहरिस्त है, जिन्होंने जमीन से छलांग लगाई और भारतीयों के दिल जीत लिये। हाल ही में हमने दीपिका कुमारी की कहानी को फिर से सुना है, लेकिन यहां भारत के सबसे मशहूर खेल, जिसे दर्शक दीवानों की तरह प्यार करते है। यहां बात उस खेल के जादूगर की, जिसने हिंदुस्तान को नये रंग-रूप का क्रिकेट दिखाया... जिसके हेल्किॉप्टर शॉट ने लोगों का दिल चुराया।

हम बात कर रहे हैं, महेन्द्र सिंह धोनी की, जिनका दायरा सिर्फ अच्छे विकेटकीपर, अच्छे बैट्समैन, उम्दा रणनीतिकार और सुलझे हुये शख्स तक का ही नहीं, बल्कि एक सफलतम कप्तान का भी है। भारत के एक साधारण से परिवार में जन्म लेने वाले इस शानदार कप्तान को आप किस रूप में याद करना चाहेंगे! इस खिलाड़ी के कई रूप हैं, कई पारियां हैं जो क्रिकेटप्रेमियों की कभी न भूलने वाली यादें बन चुकी हैं।

यह सच है कि क्रिकेट ओलंपिक में नही है, लेकिन भारतीयों के लिए हर क्रिकेट मैच किसी ओलंपिक के आयोजन से कम भी नहीं है। क्रिकेट को जीने, ओढ़ने-पहनने वाला यह मुल्क क्रिकेट को लेकर किस कदर दीवाना है, यह बताने की नहीं महसूस करने की बात है। आप हिंदुस्तान की किसी भी गली या मुहल्ले में जवान हुये हों, इससे कोई फर्क नहीं रह जाता... यहां रगों में क्रिकेट दौड़ता है। यहां शतकों का सैकड़ा बनाने वाले सचिन को 'भगवान' का दर्जा मिला तो, सचिन जैसा ही नायाब महेंद्र सिंह धोनी भी मिला।

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क्रिकेट पर इतराने वाले इस मुल्क की जब 1983 के वर्ल्ड कप की यादें धुंधली पड़ चुकी थी और भारत सिर्फ किस्सों पर विश्वविजयी रह गया था, धोनी ने ऐसे अंधेरे दौर में इस मुल्क के क्रिकेटप्रेमियों का वो सपना पूरा किया, जिसकी आस में कई कप्तान पूर्व हो चुके थे। यहां तक कि सचिन की जिंदगी में वर्ल्ड कप का स्वाद धोनी की बदौलत आया, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी। निश्चित तौर पर ये उस शर्मीले कप्तान का ही कमाल था, जो टीवी पर हमेशा संयत और शांत अपनी टीम के साथ खड़ा नजर आया... जिसने कभी आखिरी मौके पर दूर उछलते किसी छक्के के उपर खुले आसमान के नीचे धीरे से ग्लव्स उतारकर विजयी मुस्कान भरी, तो कभी अपनी नायाब शैली से लपके हुये उस कैच से हजारों किलोमीटर दूर बैठे क्रिकेटप्रेमियों की हलक से चीखें बाहर खींच ली... वो अंतिम क्षण जब हम हार चुके होते थे, कप्तान मैदान पर आत्मविश्वास से लबरेज अपनी आस्तीनें चढ़ाकर पिच पर टप्पा खाते हमारे डर को सीमा रेखा के बाहर पहुंचा देता।

सचिन तेंदुलकर भारतीय क्रिकेट को अकेले ही चमकते हुए दौर में ले गये। ये वो दौर था जब भारत क्रिकेट की दुनिया का फिसड्डी देश नहीं था और उसने अपनी चमक वापस पा ली थी। फिर भी एक कमी थी.. सर्वश्रेष्ठ का तमगा जिसे भारत भूलता जा रहा था, उसे धोनी ने जिंदा किया। यूं ही लोग नहीं कहते कि अनहोनी को होनी कर दे, वो है धोनी... असल में धोनी ने ये रुतबा और विश्वास अपनी दमदार और यादगार पारियों से हासिल किया है। भारत की 2001 में कोलकाता टेस्ट मैच की जीत इसका शंखनाद थी।

धोनी के लिये उस औरत के हाथ दुआ में उठ गये
एक और दिलचस्प पारी यहां धोनी की याद आती है... ये मैच श्रीलंका और भारत के बीच था। श्रीलंका ने पहले खेलते हुए भारत को 202 रनों का लक्ष्य दिया। आखिरी ओवर में भारत नौ विकेट गंवा कर 187 रनों पर जूझ रहा था। अब भी जीत के लिये 15 रनों की दरकार थी। क्रीज पर एक छोर पर ईशांत शर्मा जैसे धुप्पल गेंद छेड़ने वाले बल्लेबाज थे और दूसरी छोर पर थी भारत की उम्मीद, यानी कि धोनी।

यह मुकाबला बेहद रोमांचक था और अंत समय तक भी पलड़ा बराबरी पर ही रहा, लेकिन सबकुछ बदल जाने वाला था। धोनी मानो भांप रहे हों... बॉलर को कप्तान से मिल रहे आश्वासन को वो देख रहे थे...  पहली बॉल मिस हो गई और अब 5 बॉल में स्कोर बोर्ड को छूना था। टीवी स्क्रीन पर एक महिला का चित्र उभरा, जो हाथ जोड़े हुए कुछ बुदबुदा रही थी। वो भारतीय टीम की फैन थी और ​उस मिस हुई बॉल से शायद डर गई थी... लेकिन कप्तान ने दोबारा आस्तीन खींच ली और अगले ही क्षण एक गगनचुंबी छक्का दर्शकों के अथाह शोर के भीतर से गुजरकर अपनी नियति तक पहुंचा। ड्रेसिंग रूम में पूरी टीम उछल गई। मौजूदा कप्तान कोहली खुशी से चहक उठे और अब 4 बॉल में 9 रनों का लक्ष्य रह गया। दूसरी ओर इस शानदार छक्के ने लंकन कप्तान की शिकन बढ़ा दी और उन्होंने शायद अपने बॉलर से तब कहा हो- 'सामने धोनी है... और तुम दुनिया के शानदार बैट्समैन के सामने हो'.. शायद बॉलर दबाव में था, उसकी अगली बॉल भी बाउंड्रीलाइन के पार थी। यह एक चौक्का था और स्टेडियम फिर से शोर से गूंज उठा। इसके बाद वो विजयी शॉट लगा, जिसने हजारों भारतीयों के रोंगटे खड़े कर दिये। एक शानदार छक्के के साथ धोनी ने मैच फिनिश किया और जानते हैं, ठीक उस वक्त कमेंटेटर ने क्या कहा! उसने कहा- 'ही इज अनबिलीवेबल इन सो मैनी व्हेज!' जी हां, यही कहा था कि वो कई मायनों में अविश्वसनीय प्रतिभा से भरा हुआ है।

भारतीय टीम अपनी कुर्सियों से उछलकर नाच रही थी और तब कोहली ने धोनी की ओर मैदान पर दौड़ लगा दी थी। धोनी उस वक्त ईशान शर्मा की बांहों में भी शांत अपने भावों को काबू पाये हुए मुस्कुराभर रहे थे। ये इस खेल का वो क्षण था, जब आप एक जेंटलमैन को देख रहे होते हैं, जिसने चुपचाप अपना काम खत्म कर लिया था। 

धोनी का भारतीय क्रिकेट में आगमन 
साल 2003 में हम ऑस्ट्रेलिया से वर्ल्ड कप के फाइनल में हारे। 2004 के अंत में धोनी भारतीय क्रिकेट टीम में आये और जल्द ही वर्ष 2007 में वेस्टइंडीज के निराशाजनक एकदिवसीय वर्ल्डकप के बाद उस निराश टीम के कप्तान बना दिये गए, जिसे अब इतिहास लिखना था। इसके बाद धोनी ने कभी मुड़कर नहीं देखा। धोनी ने भारत के हिस्से में अहम उपलब्धि साल 2007 में डाली, जब पहली बार खेले जा रहे टी-20 विश्व कप का खिताब उन्होंने अपनी कप्तानी में दिलवाया। विकेट के आगे और पीछे धोनी की अद्भुत तेजी और तेज़ दिमाग के साथ ही 2009 में भारतीय क्रिकेट टीम उनकी कप्तानी में टेस्ट की नम्बर वन टीम बन चुकी थी।

धोनी और चेन्नई सुपरकिंग्स
फिर दौर आया लकदक से भरे हुए क्रिकेट फॉर्मेट का और यहां भी धोनी अव्वल नजर आये। फैंस के अथाह प्यार, शोहरत और तमाम जीतों के बावजूद धोनी अपनी जमीन पर ही नजर आते रहे। लोग मजाक में कहने लगे थे कि धोनी मैदान पर हैं तब तक चियरलीडर्स के पास फुर्सत नहीं! उन्होंने दबाव में अपनी शख्सियत से समझौता नहीं किया। उन पर ब्रांड्स की बरसात होने लगी थी। धोनी चेन्नई सुपरकिंग्स का चेहरा बन गए। धोनी की कप्तानी में चेन्नई 3 बार आईपीएल का खिताब जीती।

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में धोनी की बादशाहत
भारत ने 2011 में एकदिवसीय क्रिकेट विश्वकप की मेजबानी की। सचिन का अंतिम वर्ल्ड कप होने के कारण शुरू से ही भारत पर इस वर्ल्ड कप को जीतने का दबाव था। पूरी भारतीय क्रिकेट टीम और हर एक भारतीय क्रिकेट प्रेमी सचिन के लिये विश्व कप जीतना चाहता था। इस दौरान पूरी सीरीज़ में युवराज का बेहतरीन खेल हो या श्रीलंका के खिलाफ मुंबई में खेले गए फ़ाइनल मैच के अंत में धोनी द्वारा जड़ा गया विजयी छक्का, आज भी भारतीयों के जेहन में ताजा है। वो क्षण क्रिकेट के भगवान को दरअसल धोनी ने ही दिया था, जब भारतीय खिलाड़ियों ने उन्हें कंधे पर बैठाकर पूरे मैदान के चक्कर काटने शुरू कर दिये।

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जून 2013 में इंग्लैंड को पांच रन से हरा धोनी ने भारत को चैंपियंस ट्रॉफी का दूसरा खिताब दिलवाया। इसके साथ ही धोनी विश्व के अकेले ऐसे कप्तान बन गए, जिन्होंने आईसीसी की तीनों ट्रॉफियां जीती हों। ऐसा नहीं है कि धोनी ने सिर्फ अपने बल्ले से ही चौंकाया है, बल्कि अपनी जिंदगी में लिये गये फैसलों से भी उन्होंने फैंस को चौंकाया है। वो दिन याद है आपको जब साल 2014 में धोनी ने अचानक टेस्ट क्रिकेट की कप्तानी छोड़ने के साथ ही टेस्ट क्रिकेट से सन्यास का फैसला लिया! क्रिकेट के चक्रव्यूह को भेदने का ज्ञान रखने वाले धोनी का ये निर्णय अब तक चौंकाने वाला है।

2015 में ऑस्ट्रेलिया में होने वाले एकदिवसीय क्रिकेट विश्व कप के ठीक पहले धोनी एक खूबसूरत बच्ची के पिता बने, लेकन यहां उन्होंने भारत वापस आने के अपने फैसले को छोड़ दिया। भारतीय टीम तब विश्व कप के लिये जूझ रही थी। हालांकि, भारत इस विश्व कप के सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया से हार गया। इसके बाद ही धोनी अपनी बेटी से मिल सके।

जुलाई 2015 में चेन्नई सुपरकिंग्स पर अवैध सट्टेबाजी और मैच फिक्सिंग के आरोपों को लेकर दो साल का बैन लगा दिया गया और धोनी आईपीएल में नई नवेली टीम पुणे सुपरजाइंट्स के साथ जुड़ गए। यहां धोनी कमाल नहीं दिखा सके और इस जादूगर को कई किस्म के सवालों से जूझना पड़ा। फैंस ने धोनी को प्यार दिया है तो अपना गुस्सा भी इस नायाब क्रिकेटर पर उड़ेला है। 

...लेकिन धोनी ने हमेशा अपने आलोचकों का मुंह एक शानदार जीत से देने की जो रवायत बनाई, वो इस दफा फिर से दिखी। दो साल के बैन के बाद 2018 में जब आईपीएल में चेन्नई सुपरकिंग्स की वापसी हुई, तब धोनी ने राइजिंग पुणे  सुपरजाइंट्स के साथ अपने दो साल के निराशाजनक प्रदर्शन को एक झटके में धुल दिया। उन्होंने चेन्नई को वापस खिताब जिताकर यह साबित कर दिया था कि क्रिकेट का ये जादूगर अब भी अपनी कलाओं से वाकिफ है। इसके बाद साल 2019 के आईपीएल में भी धोनी ने अपनी टीम को फाइनल तक का सफ़र तय करवाया। ये यादगार हिस्सा है क्रिकेट के उस दौर का, जिस दौर में ये कमाल का शख्स बल्लेबाजी कर रहा था।

विवाद जो साथ आये
कैप्टन कूल कहे जाने वाले धोनी का विवादों से भी नाता रहा। चेन्नई सुपरकिंग्स के बैन पर साधी गयी चुप्पी हो या वरिष्ठ खिलाड़ियों को टीम से बाहर निकालने को लेकर विवाद धोनी पर आरोप भी लगते रहे, लेकिन धोनी ने हमेशा विवादों से खामोशी से निपटारा किया। 

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कोई आलोचना से परे क्यों हो!
इंग्लैंड में खेले गये साल 2019 के एकदिवसीय क्रिकेट विश्वकप में धोनी के प्रदर्शन पर आलोचक सक्रिय नजर आने लगे थे। उन्होंने धीमे स्वर में यह तक कहना शुरू कर दिया था कि धोनी कमजोर पड़ रहे हैं और उनकी चमक फीकी पड़ रही है। यहां धोनी चूक गये! वो मुंहतोड़ जवाब देने के करीब आकर भी फिसल गये और सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड के खिलाफ बेहद दबाव की स्थिति में पहुंच गये। जडेजा के साथ मिलकर भारत को जीत के नज़दीक पहुंचाकर धोनी रन ऑउट हो गए थे। वहां सिर्फ धोनी रनऑउट नहीं हुये थे, समूचे भारत का क्रिकेट लड़खड़ा गया था। विश्व कप में भारत का सफर खत्म हो गया था। इस विश्वकप के बाद मानों कप्तान का मन भर गया हो...!

धोनी ने खुद को क्रिकेट से दूर रखना शुरू कर दिया था। साल 2020 में कोरोना महामारी के उदास-बोझिल दिनों के बीच स्वतंत्रता दिवस की शाम करोड़ों भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को दिल तोड़ने वाली खबर मिलने जा रही थी। महेंद्र सिंह धोनी और उनके साथी क्रिकेटर सुरेश रैना ने एक साथ अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कहने का फैसला लिया था। धोनी ने इंस्टाग्राम पर शायराना अंदाज अख्तियार करते हुये बेहद खामोशी से नेपथ्य में जाने का ऐलान कर दिया था। क्रिकेट के इस जादूगर ने उस गीत की मशहूर पंक्तियों को लिखा- 'मैं पल दो पल का शायर हूं..'!

एक वीडियो पोस्ट के साथ धोनी ने अपने सन्यास का ऐलान कर दिया था। टीवी स्क्रीन धोनी पर बने हुये स्पेशल शोज से रंगी हुई थी और अखबारों के पन्नों ने अच्छी-खासी मेहनत कर कप्तान को अलविदा कहा था... करोड़ों फैंस का दिल उस बोझिल शाम में बैठ गया था... उनका हीरो अपनी ​क्रिकेट की पारी की समाप्ति की घोषणा कर रहा था। बिना शोर शराबे के कप्तान ने भारत के सबसे शोर शराबे और रोमांच से भरे हुये खेल से दूर जाने का निर्णय ले लिया था... उस वक्त शायद सैकड़ों लोग उन तालियों को महसूस कर रहे होंगे जो कप्तान के लौटने के साथ ही शुरू हो जाती थी...

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