भारत में कोरोना वायरस आने के लगभग डेढ़ साल बाद भी कई सेक्टर तबाही से जूझ रहे हैं। इनमें शिक्षा भी शामिल है। पिछले डेढ़ साल से करोड़ों बच्चे ऑनलाइन कक्षाएं लेने और परीक्षाएं देने के लिए मजबूर हैं, जबकि एक बड़ी आबादी कोरोना महामारी के चलते शिक्षा से ही महरूम हो गई है। भारत के ग्रामीण और दुर्गम पहाड़ी इलाकों में इंटरनेट की लचर सेवा और गरीबी के चलते लाखों बच्चे आॅनलाइन क्लासेस लेने में सक्षम नहीं हैं। इसकी एक वजह बच्चों के लिए वैक्सीन उपलब्ध न होना रही है। यही नहीं, भारत में 12 से 18 साल की उम्र के बच्चों की संख्या लगभग 14 करोड़ बताई जाती है, जिनके लिये अब तक वैक्सीनेशन की कोई व्यवस्था नहीं हो पाई थी, लेकिन अब राहत भरी खबर आ रही है।
भारत में देसी फार्मास्युटिकल कंपनी जायडस कैडिला की वैक्सीन ज़ायकोव-डी जल्द ही बच्चों के वैक्सीनेशन के लिए उपलब्ध हो सकती है। रिपोर्ट्स की मानें तो इस वैक्सीन को अगले कुछ हफ्तों में ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया की ओर से इजाजत मिल सकती है। इसके साथ ही जायकोव-डी दुनिया की पहली डीएनए आधारित वैक्सीन भी बन जाएगी। भारत सरकार ने बीते शनिवार सुप्रीम कोर्ट को वैक्सीन उपलब्धता से जुड़े आंकड़े देते हुए बताया है कि जायकोव-डी वैक्सीन जुलाई-अगस्त तक 12 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों के लिए उपलब्ध हो जाएगी।
हाल ही में टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह के अध्यक्ष डॉ. एनके अरोरा ने भी इस वैक्सीन को लेकर कहा कि वैक्सीन का ट्रायल लगभग पूरा हो चुका है। उन्होंने कहा- 'हमारी जानकारी के मुताबिक़, जायडस कैडिला का ट्रायल लगभग पूरा हो चुका है। इसके नतीजों को जुटाने और उन पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में चार से छह हफ़्तों का समय लग जाता है। मुझे लगता है कि जुलाई के अंत तक या अगस्त में हम 12 से 18 साल की उम्र के बच्चों को संभवत: ये वैक्सीन दे पाएंगे।'
सुप्रीम कोर्ट में दिये अपने हलफनामे में भारत सरकार ने कहा है कि अगस्त 2021 से दिसंबर 2021 के बीच भारत सरकार के पास कुल 131 करोड़ वैक्सीन डोज उपलब्ध होने की संभावना है। इनमें कोविशील्ड के 50 करोड़, कोवैक्सिन के 40 करोड़, बायो ई सब यूनिट वैक्सीन के 30 करोड़, स्पुतनिक वी के 10 करोड़ और ज़ायडस कैडिला के 5 करोड़ डोज़ शामिल हैं। ऐसे में एक बात तो तय है कि बच्चों की एक बड़ी आबादी को अब भी वैक्सीन के लिये लंबा इंतजार करना पड़ सकता है, लेकिन यह इंतजार वास्तव में अनिश्चितता के भंवर से बेहतर ही होगा।
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भारत सरकार ने फिलहाल तीन वैक्सीनों को आपातकालीन स्वीकृति दी हुई है जिनमें कोविशील्ड, कोवैक्सिन और रूसी वैक्सीन स्पुतनिक है। ये सभी दो डोज़ वाली वैक्सीन हैं। ज़ायकोव-डी को स्वीकृति मिलने के साथ ही टीकाकरण के लिए चार वैक्सीन उपलब्ध होंगी, जिनमें से दो वैक्सीनों को भारत में बनाया गया है। डीसीजीए से मंज़ूरी मिलने की स्थिति में जायकोव-डी दुनिया की पहली डीएनए आधारित वैक्सीन का दर्जा हासिल कर लेगी। ये एक दूसरी स्वदेशी वैक्सीन है, जिसे पूर्णतया भारत में तैयार किया गया है। कंपनी की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक़, इस वैक्सीन को 28 दिन के अंतराल में तीन डोज़ में दिया जाएगा, जबकि अब तक उपलब्ध वैक्सीन सिर्फ दो डोज में दी जा रही थीं।
इस वैक्सीन का निर्माण कर रही कंपनी के प्रबंध निदेशक डॉ शरविल पटेल ने हाल ही में एक निजी टेलीविज़न चैनल से बातचीत में कहा है- 'इस वैक्सीन का 28000 वॉलिंटियर्स पर क्लिनिकल ट्रायल किया गया है, जो कि देश में सबसे बड़ा क्लीनिकल ट्रायल है। क्लिनिकल ट्रायल में 12 से 18 वर्ष के बच्चों समेत सभी उम्र वर्ग शामिल थे। वैक्सीन को लगाने के लिए इंजेक्शन की ज़रूरत नहीं है। ये एक इंट्रा डर्मल वैक्सीन है, जिसमें मांस-पेशियों में इंजेक्शन लगाने की जरूरत नहीं होती है। यह चीज वैक्सीन की ईज ऑफ डिलीवरी यानी वितरण में सहायक सिद्ध होगी। इस वैक्सीन को 2 से 8 डिग्री सेल्सियस पर लंबे समय तक के लिए रखा जा सकता है। इसके साथ ही 25 डिग्री सेल्सियस पर चार महीने के लिए रखा जा सकता है।' इसके अलावा दिलचस्प यह है कि इस वैक्सीन को नए वैरिएंट्स के लिए भी अपडेट किया जा सकता है।
डीएनए आधारित वैक्सीन की क्या है खूबियां?
ज़ायकोव-डी एक डीएनए आधारित वैक्सीन है जिसे दुनिया भर में ज़्यादा कारगर वैक्सीन प्लेटफॉर्म के रूप में देखा जाता है। डॉ. शिव पूजन पटेल इस वैक्सीन को लेकर आ रहे अपडेट को लेकर कहते हैं- 'कोरोना वायरस एक आरएनए वायरस है, जो कि एक सिंगल स्ट्रेंडेड वायरस होता है। डीएनए डबल स्ट्रेंडेड होता है और मानव कोशिका के अंदर डीएनए होता है। इसलिए जब हम इसे आरएनए से डीएनए में परिवर्तित करते हैं, तब इसकी एक कॉपी बनाते हैं। इसके बाद ये डबल स्ट्रेंडेड बनता है और आख़िरकार इसे डीएनए की शक्ल में ढाला जाता है। अब तक के नतीजों से पता चलता है कि डीएनए वैक्सीन ज़्यादा ताकतवर और कारगर होती है। पूर्व में हम स्मॉलपॉक्स जैसी समस्याओं के लिए डीएनए वैक्सीन का इस्तेमाल कर चुके हैं।'
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