उत्तराखंड की पहाड़ियां गर्म हो रही हैं। राज्य के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 1912-2012 तक 100 साल की अवधि में जलवायु और वर्षा के आंकड़ों का अध्ययन किया और पाया कि औसत तापमान में 0.46 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। ये आंकड़े शेष भारत के लिये भी चिंता का विषय हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार तापमान का यह परिवर्तन भले ही छोटा दिखाई देता हो, लेकिन ये एक लंबी अवधि में बडी मात्रा में गर्मी जमा करता है। इसका व्यापक प्रभाव भारत के पारिस्थितिक तंत्र के साथ ही यहां की आर्थिकी पर भी पड़ने जा रहा है। गर्मी के चलते जहां फसलों पर इसका असर पड़ेगा, वहीं कई जगह फसलों का चक्र भी गड़बड़ा जाएगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 1950 से पहले तापमान में कोई उल्लेखनीय परिवर्तन नहीं हुये, लेकिन 1970 और 1990 के मध्य तापमान काफी नीचे गया। हालांकि, 1990 के बाद तापमान ऊपर जाने लगा। उत्तराखंड की ही बात करें तो राज्य के भीतर पिथौरागढ़ में उच्चतम स्पाइक (0.58 डिग्री सेल्सियस), इसके बाद चमोली (0.54 डिग्री सेल्सियस), रुद्रप्रयाग (0.53 डिग्री सेल्सियस), बागेश्वर (0.52 डिग्री सेल्सियस) और उत्तरकाशी (0.51 डिग्री सेल्सियस) रहा। कुल मिलाकर सूबे के सभी पहाड़ी जिलों में तापमान में बदलाव देखा गया है।
मैदानी इलाकों की बात करें तो इन इलाकों में यह वद्धि पहाडों से कम रही। हरिद्वार में (0.34 डिग्री) सबसे कम और उसके बाद देहरादून (0.37°) और उधम सिंह नगर (0.42°) की वृद्धि देखी गई। नासा की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में 1880 के बाद से औसत वैश्विक सतह का तापमान 0.98° था।
सर्दियों में भी हिमालयी राज्य से सबसे ज्यादा फायर एलर्ट
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ़ इंडिया ने गत साल उपग्रहों से जंगलों में आग लगने का सर्वे किया था। नवंबर 2019 और जनवरी 2020 के बीच फायर के 1,321 अलर्ट भेजे गए थे, जबकि इस साल सर्दियों में इन अलर्ट की संख्या 2,984 पहुंच गई। सबसे ज्यादा अलर्ट उत्तराखंड में जो कि 470 थे ओर उसके बाद क्रमश ओडिशा में 353 और महाराष्ट्र में 324 थे। इसके अलावा ज्यादातर राज्यों में क्रमश हिमाचल प्रदेश में 15 से 165 तक, जम्मू और कश्मीर में 3 से 58 तक और मध्य प्रदेश में 69 से 264 तक लर्ट की संख्या रही। केवल केरल (49 में से 15), असम (71 में से 64), मेघालय (62 में से 55) और तमिलनाडु (13 में से 7) जैसे बड़े राज्य, इस संख्या पर लगाम लगाने में सफल रहे हैं।
एफएसआई के उप निदेशक सुनील चंद्रा ने कहा, शुष्क मौसम और थोड़ी बारिश के कारण इस साल फायर अलर्ट की संख्या अधिक है। देहरादून में वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई) में सिल्विकल्चर एंड फॉरेस्ट रिसोर्स मैनेजमेंट डिवीजन की प्रमुख आरती चैधरी ने कहा- 'आग के मौसम में असामान्य बदलाव या तो वनों में जलवायु परिवर्तन या जंगलों में अधिक मानवीय हस्तक्षेप के कारण होता है।'
रिपोर्ट में कहा गया है, विशेष रूप से जून-सितंबर में बारिश के दौरान बारिश में कमी से संकेत मिलता है कि राज्य की जलवायु में उल्लेखनीय बदलाव हो रहा है। जुलाई के मध्य में सात दिनों तक कम तीव्रता वाली बारिश, पूरी तरह से रुक गई है। सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन बहुत कम (घटना) या हिमालयी क्षेत्र में बर्फबारी की घटनाओं की अनुपस्थिति और कम तीव्रता वाली बारिश की पूर्ण अनुपस्थिति है।
ग्लेशियरों में क्या फर्क पडा है
उत्तराखंड 968 ग्लेशियरों का घर है। अलकनंदा बेसिन में 407, कालीगंगा में 271, भागीरथी में 238 और यमुना में 52 हैं। तापमान बढ़ने और ग्लेशियरों के पिघलने के साथ, इन बेसिनों में प्रो-ग्लेशियल झीलें बन गई हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव सुबुद्धि बताते हैं कि सौ साल की रिपोर्ट ये बता देती है कि राज्य में ग्लोबल वार्मिंग का व्यापक असर अब दिखने लगा है, जिसका असर विभिन्न क्षेत्रों में पढ रहा है। लगातार पहाड़ों के तापमान में हो रही वृद्धि से एक बात तो तय है कि इस असर से मैदानी इलाकों में गर्मी बढ़ने जा रही है।
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