गौरव नौड़ियाल ने लंबे समय तक कई नामी मीडिया हाउसेज के लिए काम किया है। खबरों की दुनिया में गोते लगाने के बाद फिलहाल गौरव फिल्में लिख रहे हैं। गौरव अखबार, रेडियो, टीवी और न्यूज वेबसाइट्स में काम करने का लंबा अनुभव रखते हैं।
'हो-हल्ला' मचा हुआ है! ऐसा लगता है कि भाजपा और 'हो-हल्ला' एक दूसरे के पूरक हो गये हों। पिछले दिनों मैंने यहां बताया था कि कैसे उत्तराखंड में चार महीने के भतर ही दिल्ली ने तीसरा मुख्यमंत्री थोप दिया है। मैदान की उमस से दूर इस घटना ने ठंडे पहाड़ों पर भी लोगों को नाउम्मीद कर दिया। लोग बाजारों में चर्चा करते दिखे कि भाजपा बहुमत के बावजूद एक टिकाउ सीएम राज्य को नहीं दे पा रही है। खनन और भू-माफियाओं की गूंज वाले खटीमा से दो दफा के विधायक पुष्कर सिंह धामी के सितारे वो अगले मुख्यमंत्री होंगे, इस एक खबर ने पलट दिये। राजधानी से लेकर सूबे के भीतर पहाड़ों की ओर जाने वाली सड़कों पर रातों-रात तीरथ सिंह रावत का चेहरा उतारकर एक नया चेहरा चस्पा कर दिया गया। इस चेहरे को इससे पहले कईयों ने, खासकर गढ़वाल में देखा ही नहीं था। खैर, उत्तराखंड में 'हो-हल्ला' कुछ सिमटा तो दिल्ली में अपने मोर संग 'बोर' हो रहे प्रधानसेवक ने फोटोसेशन और खबरों के आयोजन का विचार बनाया। उन्होंने अपने 'अच्छे काम' करने वाले मंत्रियों को कहा कि अब तुम घर बैठो! अब बताइये इसका बड़ा सदमा मुल्क को लगना ही था।
सबसे ज्यादा चर्चा रविशंकर प्रसाद की रही। वो ट्विटर को बस धूल चटाने ही वाले थे कि प्रधानसेवक के एक दांव से उन्हें धूल चाटनी पड़ गई। ऐसा ही स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन के साथ भी हुआ! अब भला जब हिन्दुस्तान के अस्पतालों में डॉक्टर ही नहीं हैं या जहां हैं भी वहां डॉक्टर दवा-उपकरणों के अभाव में 'अपंग' बनकर सिवाय केस को हायर सेंटर रेफर करने के कुछ नहीं कर पा रहे, वहां कम से कम डॉ. हर्षवर्धन रामदेव की कोरोनिल तो प्रचारित कर ही रहे थे न! तब महामारी में भला इतना चमत्कारी काम करने वाले मंत्री की नौकरी एक झटके में ले लेना, ठीक नहीं है। पहले के मंत्रियों को नोटिस मिलते थे, तो वो रोना-धोना या ताकत दिखाकर पार्टी हाईकमान पर दबाव बना लेते थे। अब तो कैबिनेट में आने वाले तो मोदी जी के मार्गदर्शन से अभिभूत हैं ही, जाने वालों की भी मत पूछिए।
श्रद्धा बरकरार है। भारतीय राजनीति में इसे भाजपा नेताओं का सबसे 'दब्बूकाल' माना जाएगा! न आने वाले को खबर न जाने वाले को पता। शायद इसीलिए 'द टेलिग्राफ' ने कैबिनेट रीशफल पर हेडलाइन बनाई- 'स्नो व्हाइट एंड 12 ड्वर्फ' ...यानी कि स्नो व्हाइट और 12 बौने! टेलिग्राफ की इस हेडलाइन पर सवालों को दूर कर चुकी भारतीय मीडिया ने क्या सीख ली, नहीं मालूम। हां, लेकिन रीढ़ किसे कहते हैं, वह जरूर इस अखबार ने दिखाई है। प्रधानसेवक के सामने उनके मंत्रियों की कार्यशैली भी कुछ ऐसी ही नजर आती है, रीढ़विहीन! यहां तक कि पीएमओ से रोज प्रचार के लिये भेजे जाने वाले संदेशों की भाषा और भाजपा नेताओं की टाइमलाइन इसकी पुष्टि कर देती है कि वो पीएमओ से बाहर स्वतंत्र होकर कुछ नहीं कर सकते।
इससे पहले टीवी चैनलों से लेकर भाजपा समर्थकों के बीच तक यही मंत्री सुपरहीरो की तरह मुल्क के लिये काम कर रहे थे, लेकिन इनको हटाने की पार्टी ने कोई ठोस वजह नहीं बताई है। मोदी-शाह की भाजपा में केंद्रीकृत शासन प्रणाली की तरह काम करती है। मार्च 2020 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा कोविड-19 को वैश्विक महामारी घोषित किए जाने के बाद भी जब स्वास्थ्य मंत्रालय अपने ‘ऑल इज वेल’ के गान पर अड़ा हुआ था। हर्षवर्धन के फैसले कहीं से भी यह भरोसा नहीं जगा पा रहे थे कि देश का स्वास्थ्य मंत्रालय नागरिकों को लेकर महामारी में चिंतित है। महामारी के प्रसार के बीच उनकी अवैज्ञानिक बयानबाजियां और उनके योग गुरु रामदेव से रिश्ते, इस बात के सबूत थे कि बदलाव की जरूरत थी। मोदी के लिए हर्षवर्धन को पद पर बनाए रखने का कारण यह था कि खुद प्रधानमंत्री व्यक्तिगत रूप से महामारी से संबंधित सभी नीतियों को चला रहे थे, जो बाद में भारत के लिए खतरनाक साबित हुई। तब क्या यह माना जाना चाहिये कि अब हर्षवर्धन बली का बकरा बनाये गये हैं!
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प्रकाश जावड़ेकर (सूचना और प्रसारण) और रमेश पोखरियाल निशंक (शिक्षा) जैसे दूसरे हाई प्रोफाइल मंत्रियों को बर्खास्त करने का फैसला इतनी देर से क्यों लिया गया या फिर ऐसी कौन सी योग्यता के आधार पर इन्हें कैबिनेट में शामिल किया गया था! यह सवाल भी निरुत्तर हैं। प्रसाद को लेकर राजनीतिक हलकों में अटकलें लगाई जा रही हैं कि जिस तरह से उन्होंने मीडिया और ट्विटर जैसी सोशल मीडिया कंपनियों को अपनी धमकियों से अलग-थलग कर दिया है, उसकी कीमत उन्हें चुकानी पड़ी है, जबकि ऐसा लगता नहीं है। मोदी-शाह की केंद्रीकृत शासन प्रणाली में प्रसाद स्वतंत्र रूप से ट्विटर जैसे टेक जाइंट से भिड़ जाएंगे, गले नहीं उतरता है।
इधर पहाड़ों पर निशंक को लेकर चर्चा है कि उन्हें जबरिया अस्पताल भेजा गया और इस्तीफा ले लिया गया। इस चर्चा की वजह बनी दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और दिल्ली विवि शिक्षक संघ डूटा के पूर्व अध्यक्ष श्रीराम ओबरॉय की पोस्ट, जो वायरल हो गई थी। इस पोस्ट को उन्होंने 1 जुलाई को लिखा था।
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इस फेसबुक पोस्ट में प्रो.ओबरॉय ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के बारे में दावा किया- ''उन्हें प्रधानमंत्री ने जबरन छुट्टी पर भेज दिया है। उनके (मंत्री के) विरुद्ध ढेर सारे आरोप लगाए गए हैं और मामले में उच्च स्तर पर विचार चल रहा है। उनके रहने के दौरान मंत्रालय दलालों के चंगुल में था। मुख्य सतर्कता आयुक्त ने हाल में राष्ट्रपति से मुलाक़ात करके मंत्री के विरुद्ध जांचे-परखे दस्तावेज़ कार्यवाही हेतु सौंपे। उन (निशंक) से कहा गया है कि वे तभी मंत्रालय आयें, जब उन्हें बुलाया जाये। लगता है आज उन्हे इस्तीफा देने बुला लिया गया।''
बहरहाल, मोदी कैबिनेट में हुये इस रीशफल का चुनावों में क्या लाभ मिल पाता है, यह भविष्य तय करेगा... लेकिन बीजेपी शासित उत्तरप्रदेश में शायद यह तय हो गया है कि चुनाव कैसे होंगे। यूपी में हिंसा के बाद हो-हल्ला मचा हुआ है। प्रदेश में ब्लॉक प्रमुख चुनाव की नामांकन प्रक्रिया के दौरान गुरुवार को राज्य के 22 ज़िलों में हिंसा हुई। इस हिंसा के संबंध में कुल 16 एफआईआर दर्ज की गई हैं। इस दौरान लखीमपुर खीरी में समाजवादी पार्टी से जुड़ी दो महिलाओं के साथ कथित तौर पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने दुर्व्यवहार किया। एक एसपी का वीडियो भी कांग्रेस ने जारी किया है, जिसमें वो कहते नजर आ रहे हैं कि 'भाजपा वाले बम लेकर आये हैं, मुझे भी थप्पड़ मारे हैं!' पुलिस अधीक्षक विजय धुल ने कहा, ‘इस घटना के संबंध में भाजपा के दो कथित समर्थकों बृज किशोर और यश वर्मा को गिरफ्तार किया गया है विभिन्न धाराओं में मामला दर्ज किया गया है। दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कया गया है और जांच जारी है।’
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