गौरव नौड़ियाल ने लंबे समय तक कई नामी मीडिया हाउसेज के लिए काम किया है। खबरों की दुनिया में गोते लगाने के बाद फिलहाल गौरव फिल्में लिख रहे हैं। गौरव अखबार, रेडियो, टीवी और न्यूज वेबसाइट्स में काम करने का लंबा अनुभव रखते हैं।
'हो-हल्ला' मचा हुआ है! आज उत्सव का दिन है। राजा के गुरूर के टूटने का दिन है। वो रोज तरह-तरह के कपड़े बदलकर जो प्रधानमंत्री पिछले एक साल से सड़क पर पड़े हुए फटेहाल, मध्यम और इस मुल्क के अमीर किसानों को चिढ़ा रहे थे, आज उन्हें घुटनों के बल बैठकर मुल्क से माफी मांगनी पड़ी है। इस माफी में एक अजीब कशमकस है। मैं इसे उनकी उन माफियों की तरह भी नहीं मान रहा जिसमें वो किसी ओवररेटेड एक्टर की तरह नजर आते हैं। मैं आज की 'क्षमा' के अंदाज को देख रहा हूं। यूपी, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान] उत्तराखंड और मध्यप्रदेश सरीखे राज्यों में लगातार ताकत गंवा रही बीजेपी को शायद समझ आ गया है कि अपने आप में ऐतिहासिक हो चुका किसान आंदोलन उसकी राजनीतिक जड़ों तक में मट्ठा डाल देगा।
आज असल में देश के शीर्ष पर बैठकर नागरिकों को जख्म दे रही, मोदी सरकार की आवाम के सामने हार हुई है, किरकिरी हुई है। घुटनों के बल बैठने में इस सरकार और किसानों की जीत के बीच के इस वक्त गुजरने में तकरीबन 600 किसान अलग-अलग वजहों से अपनी जान गंवा चुके हैं। कई लंबी सर्द रातों में वक्त गुजारने के चलते बीमार पड़ गए। खेती-किसानी के चलते कारोबार प्रभावित हुआ। हरियाणा और पंजाब से इनवेस्टर गायब हो गए, जिसका असर भारत की इकॉनमी पर पड़ा।
इस बीच कई मांओं ने अकेले में रातें गुजारी हैं। बच्चों ने सड़कों पर अपने बाप के साथ तपती गर्मी झेली है। बूढ़ों ने कई-कई दफा कमर पर लाठियां झेली और मुकदमों की फेहरिस्त जो अभी अदालतों में चलनी है, उसके कष्ठ भोगने बाकी हैं। लंबा वक्त गुजर गया, उसके सामने 'क्षमा' मांगने का ये अंदाज कुटिलताओं और अपने ही नागरिकों को बेइंतहा तंग करने के बाद बदरंग नजर आता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले करीब एक वर्ष से अधिक समय से विवादों में घिरे तीन कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की आखिरकार घोषणा की और कहा कि इसके लिए संसद के आगामी सत्र में विधेयक लाया जाएगा। तीनों कृषि कानूनों के विरोध में किसान आंदोलन कर रहे थे। प्रधानमंत्री ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से जुड़े मुद्दों पर एक समिति बनाने की भी घोषणा की। मालूम हो कि कई किसान संगठन पिछले करीब एक साल से तीन कानूनों- किसान उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020, आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 और मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम, 2020 पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता, 2020 के पारित होने का विरोध कर रहे हैं।
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इन कानूनों का विरोध पिछले साल नवंबर में पंजाब से शुरू हुआ था, लेकिन बाद में मुख्य रूप से दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में फैल गया। किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन कानूनों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा। इधर किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा है कि जब तक सरकार संसद में कृषि कानूनों को रद्द नहीं कर देती तब तक आंदोलन जारी रहेगा। बीजेपी आईटी सेल इस बेवकूफी को अब पीएम का मास्टरस्टोक साबित करने में जुटी हुई है, हालांकि इस दफा हवा उल्टी बह रही है।
याद कीजिए कि कैसे सरकार किसानों को खालिस्तानी बता रही थी। कैसे केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार ने इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दिया था। उनका कहना था कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं, जो कि जाहिर है अब सिर्फ लफ्फाजी और बतौर झूठ दर्ज होगा। इस गुजरे हुए लंबे वक्त में बीच किसान यूनियनों और सरकार के बीच 11 दौर की वार्ता हुई थीं, लेकिन गतिरोध जारी रहा। अब भी किसान संगठन एसकेएम ने कहा है कि आंदोलन सिर्फ नए कृषि कानूनों के खिलाफ ही नहीं था, फसलों के लाभकारी मूल्य की वैधानिक गारंटी की मांग अब भी लंबित है।
भारत का ये किसान आंदोलन न केवल दुनियाभर में अपना इतिहास दर्ज कर चुका है, बल्कि 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के दिन किसानों की अगुवाई में निकले ऐतिहासिक ट्रैक्टर परेड का भी गवाह बनां एक अदनी सी प्रायोजित घटना को छोड़ दें तो इस रैली में इजो उत्साह दिल्ली की सड़कों पर दिख रहा था, वैसा उत्साह पिछले लंबे समय बाद राजधानी में दिखा।
शुक्रवार को मुद्दे पर आने से पहले मोदी ने यह दावा करते हुए काफी समय बिताया कि उनकी सरकार ने भारत के किसानों का उत्थान किया है और उनकी मदद के लिए ‘हरसंभव कोशिश’ की है। अपनी सरकार की उपलब्धियों की प्रशंसा में दस मिनट बिताने के बाद उन्होंने तीन विवादास्पद कृषि कानूनों की प्रशंसा की।
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प्रधानमंत्री ने कहा, ‘देश के कोने-कोने में कोटि-कोटि किसानों, अनेक किसान संगठनों ने इसका स्वागत किया, समर्थन किया। मैं आज उन सभी का बहुत आभारी हूं। हमारी सरकार, किसानों के कल्याण के लिए, खासकर छोटे किसानों के कल्याण के लिए, देश के कृषि जगत के हित में, देश के हित में, गांव गरीब के उज्ज्वल भविष्य के लिए, पूरी सत्य निष्ठा से, किसानों के प्रति समर्पण भाव से, नेक नीयत से ये कानून लेकर आई थी। लेकिन इतनी पवित्र बात पूर्ण रूप से शुद्ध, किसानों के हित की बात, हम अपने प्रयासों के बावजूद कुछ किसानों को समझा नहीं पाए।’
उन्होंने कहा कि कृषि अर्थशास्त्रियों, वैज्ञानिकों और प्रगतिशील किसानों ने भी उन्हें कृषि कानूनों के महत्व को समझाने का भरपूर प्रयास किया। ‘आज मैं आपको, पूरे देश को, ये बताने आया हूं कि हमने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का निर्णय लिया है। इस महीने के अंत में शुरू होने जा रहे संसद सत्र में, हम इन तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की संवैधानिक प्रक्रिया को पूरा कर देंगे।’
उन्होंने कहा, ‘मैं देश से माफी मांगता हूं क्योंकि लगता है कि हमारे प्रयासों में कुछ कमी रह गई है, जिसके कारण हम कुछ किसानों को सच्चाई समझा नहीं सके। आज गुरु नानक जयंती है और किसी को दोष देने का समय नहीं है। मैं यह घोषणा करना चाहता हूं कि हमने इन कानूनों को निरस्त करने का निर्णय लिया है। मुझे उम्मीद है कि प्रदर्शन कर रहे किसान अब अपने घरों, अपने खेतों को लौटेंगे और हम नए सिरे से शुरुआत कर सकते हैं।”
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा, ‘एमएसपी को और अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए,ऐसे सभी विषयों पर, भविष्य को ध्यान में रखते हुए, निर्णय लेने के लिए, एक कमेटी का गठन किया जाएगा। इस कमेटी में केंद्र सरकार, राज्य सरकारों के प्रतिनिधि होंगे, किसान होंगे, कृषि वैज्ञानिक होंगे, कृषि अर्थशास्त्री होंगे।’
इधर किसान एकता मोर्चा के अनुसार, किसानों के आंदोलन में छह सौ से अधिक किसानों ने अपनी जान गंवाई है। किसान आंदोलन के एक साल में केंद्र सरकार के मंत्रियों समेत भाजपा के विभिन्न नेताओं ने आंदोलन को ‘प्रायोजित’ बताया, साथ ही यह भी कहा था कि प्रदर्शन कर रहे लोग किसान नहीं हैं। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल के बजट सत्र के दौरान ‘आंदोलनजीवी’ शब्द ईजाद करते हुए कहा था कि ‘पिछले कुछ समय से देश में एक नई बिरादरी ‘आंदोलनजीवी’ सामने आई है। ये पूरी टोली है जो आंदोलनजीवी है, ये आंदोलन के बिना जी नहीं सकते और आंदोलन से जीने के लिए रास्ते ढूंढते रहते हैं।’
मोदी ने राज्यसभा को संबोधित करते हुए कहा था, ‘हम लोग कुछ शब्दों से बड़े परिचित हैं, श्रमजीवी, बुद्धिजीवी। इन सभी शब्दों से परिचित हैं लेकिन मैं देख रहा हूं कि पिछले कुछ समय से इस देश में एक नई जमात पैदा हुई है, एक नई बिरादरी सामने आई है और वो है आंदोलनजीवी।’ खैर, इसी आंदोलनजीवी ने तमाम 'भाषणजीवियों' को घुटनों पर ला दिया है। सरकार जहां बैकफुट पर नजर आ रही है, वहीं गोदी मीडिया अब भी अपनी कॉन्सपिरेसी थिअरीज से बाहर नहीं निकलता दिख रहा है। जानबूझकर इस तरह का टेक्स्ट टीवी स्क्रीन पर फ्लैश हो रहा है, जिससे यह लगे कि इस फैसले के पीछे किसान आंदोलन में दंगे की साजिश को रोकना था, न कि कृषि कानूनों का गलत होना वजह! टीवी उस नैरेटिव को सेट करने में जुट गया है, जो बीजेपी को यूपी फतह करने के लिए चाहिए।
बहरहाल, नोटबंदी, जीएसटी और देश की इकॉनमी को बदहाल कर खेती किसानी पर नजर गड़ाए बैठी मोदी सरकार और उनके 'कॉरपोरेट मित्रों' को करारी चपत लगी है। आज हिंदुस्तान के गांवों में उत्सव का दिन है। आज प्रधानसेवक के एक और बुलबुले के फूट जाने का दिन है।
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