गौरव नौड़ियाल ने लंबे समय तक कई नामी मीडिया हाउसेज के लिए काम किया है। खबरों की दुनिया में गोते लगाने के बाद फिलहाल गौरव फिल्में लिख रहे हैं। गौरव अखबार, रेडियो, टीवी और न्यूज वेबसाइट्स में काम करने का लंबा अनुभव रखते हैं।
आज कोई 'हो-हल्ला' नहीं है। सन्नाटा और उदासी पसरी हुई है। खबरों के शोर के बीच से निकलकर मैं चुपचाप अपनी बालकनी में खड़े होकर इस गुजरते हुये दौर को महसूस कर रहा हूं। मैं चुपचाप बालकनी से उस शख्स को मायूस होकर लौटता हुआ देखता रहा, जो अभी-अभी अपनी पत्नी को विदा कर आया है। अभी हाल ही में उनकी शादी हुई थी। उनका चार साल का बच्चा अब उस शख्स की मां की जिम्मेदारी है, जो खुद बूढ़ी हो रही है। उसका पिता, अपने टूटे हुये और हताश बेटे के पीछे चुपचाप अपने घर की ओर चला जा रहा है। उन दोनों के ही सिर नीचे झुके हुये हैं। उनके चेहरे पर पसरी थकान और हार इस बात का संकेत है कि वो अपने घर की उस सदस्य को नहीं बचा सके, जिसके जिम्मे घर की पूरी जिम्मेदारी थी।
कुछ घंटो पहले ही वो हड़बड़ी में अपनी पत्नी को अस्पताल की ओर लेकर भागा था। कुछ रोज पहले ही वो दोनों मुस्कुराते हुये एक शादी से लौटे थे। ये शादी उस महिला के भाई की थी, जिसे हड़बड़ाहट में बेहोशी की हालत में उसका पति अस्पताल की ओर लेकर दौड़ रहा था। पहले वो पौड़ी के जिला अस्पताल में पहुंचा, जहां से उसे तुंरत उस महिला को हायर सेंटर ले जाने के लिये कहा गया। इसके बाद जब वो शख्स 32 किमी दूर पहाड़ों पर गाड़ी दौड़ाते हुये मेडिकल कॉलेज श्रीनगर पहुंचा, तब उसे वहां से संयुक्त अस्पताल भेज दिया गया। वो दौड़कर अपनी पत्नी को कंधे पर ढोता हुआ संयुक्त अस्पताल पंहुचा, लेकिन यहां डॉक्टर्स ने उसे वापस मेडिकल कॉलेज जाने के लिये कह दिया। वो गिड़गिड़ाता रहा। इस बीच वो महिला हांफती रही और अंतत: उसने अपने पति की बांहों में ही दम तोड़ दिया। वो शख्स वहीं जमीन पर बैठ गया और उसका पिता जो कि हमेशा कड़क अंदाज में नजर आता है, उस रोज टूट गया। उसके पिता को यह समझ ही नहीं आ रहा था कि वो क्या करे! उस महिला की सांसे उखड़ चुकी थी। वो दोनों चुपचाप उस महिला की अंत्येष्टि में जुट गए। उस लड़के के चेहरे पर कुछ ना कर पाने की हताशा भी थी और लाचारगी का गुस्सा भी। बीमारी ही ऐसी आई है... लोगों को इतना हताश मैंने पहाड़ों पर कभी नहीं देखा है।
कुछ रोज पहले ही एक महिला का वीडियो वायरल हो गया था, जिसकी लाश घंटों तक गांव के रास्ते पर पड़ी रही। जब तक उसकी सांसे चलती रही, उसका बूढ़ा पति मदद मांगता रहा। वो दौड़-दौड़कर लोगों के पास गया और अंत में उसने चुपचाप अपनी पत्नी को दम तोडत्रते हुये देखा। उससे कुछ रोज पहले एक हट्टा-कट्ठा आदमी चल बसा था। वो बेहद मजाकिया आदमी था और अक्सर सामाजिक कामों में आगे रहता था। उसका इलाज चल रहा था, लेकिन फिर सूचना आई कि वो अब नहीं रहा। उसे हार्ट अटैक आया था। ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब मौत की अंतहीन सूचनाएं कहीं से ना मिल रही हों। आस-पास तो छोड़िये भारत के जिस हिस्से का अखबार उठा लिया जाए, वहां मौतों का अंबार लगा है। जयपुर के भास्कर के एडिशन में तो सात पेज केवल श्रद्धांजलि के विज्ञापनों से भर गये। कल्पना कीजिये कि किस कदर लोग मर रहे हैं।
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प्रोफेसर दिलीप मंडल ने जयपुर भास्कर के अकेले सिटी एडिशन में लगे श्रद्धांजलि के विज्ञापनों पर सवाल उठाते हुए लिखा है- 'लोग ऐसे मर रहे हैं जैसे पेड़ों से पत्ते गिरते हैं। जयपुर के दैनिक भास्कर में एक दिन में 7 पन्नों पर शोक संदेश छपे हैं। ये कौन सा क्लास और कास्ट है जो मरने पर विज्ञापन देता है? ये मोदी का वोटर क्लास है। मोदी ने अगर एक साल स्वास्थ्य सेवाओं पर काम किया होता तो ये लोग शायद बच जाते।' लोग सचमुच ऐसे ही मर रहे हैं, जैसे पेड़ों से पत्ते गिरते हैं। यह अकेले जयपुर की कहानी नहीं है बल्कि कानपुर, मेरठ, आगरा, लखनऊ, भोपाल, इंदौर, सूरत, बनारस, बंगलुरु से लेकर दरभंगा तक की कहानी है। सोशल मीडिया पर लोगों की मदद की गुहार का जो सिलसिला आज से 15 दिन पहले शुरू हुआ था वो अब भी थमता नहीं दिख रहा है।
लोग ऐसे मर रहे हैं जैसे पेड़ों से पत्ते गिरते हैं। जयपुर के दैनिक भास्कर में एक दिन में 7 पन्नों पर शोक संदेश छपे हैं। ये कौन सा क्लास और कास्ट है जो मरने पर विज्ञापन देता है? ये मोदी का वोटर क्लास है। मोदी ने अगर एक साल स्वास्थ्य सेवाओं पर काम किया होता तो ये लोग शायद बच जाते। pic.twitter.com/IG612aZXxG
— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) May 8, 2021
सरकार को जब कोरोना से लड़ने की तैयारियों से जूझना चाहिये था, उस वक्त पीएम और उनकी पार्टी के लोग चुनाव जीतने की माथापच्ची में उलझे हुये थे। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र बनारस में कोरोना से कोहराम मचा हुआ है। लोग अपने सांसद को ढूंढ रहे हैं, लेकिन सांसद गायब है! ये अकेले प्रधानमंत्री के ही अपने संसदीय क्षेत्र से गायब होने का मसला नहीं है। इस वक्त देशभर के कई इलाकों से सांसदों-विधायकों के अपने इलाकों से गायब होने की खबरें आ रही हैं। जहां सांसद नजर भी आ रहे हैं, वहां वो महामारी के बीच भी अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं। मैं तेजस्वी सूर्या की बात कर रहा हूं, जो बंगलुरु साउथ से बीजेपी सांसद हैं।
तेजस्वी सूर्या 4 मई की दोपहर को ब्रुहत बेंगलुरु महानगर पालिका (BBMP) साउथ ज़ोन के कोविड वॉर रूम में पहुंचे और बड़े नाटकीय ढंग से इस शख्स ने यहां काम कर रहे 16 लोगों पर रिश्वत लेकर बेड मुहैया करने के घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाया। तेजस्वी ने घोटाला करने वाले जिन-जिन लोगों का नाम लिया वो सभी मुस्लिम समुदाय से आते हैं। तेजस्वी सूर्या ने दावा किया कि उनके पास इन लोगों के खिलाफ़ सबूत भी हैं। 'द हिन्दू' ने 5 मई को रिपोर्ट किया कि इस सूची में नामित अधिकतर लोगों को नौकरी से निकाल दिया गया। ये हैरतनाक बात थी कि एक सांसद ने अव्यवस्थाओं के बीच अपनी सरकार का बचाव करने के लिये मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया था। यह झूठे आरोप थे, जिसपर अब राजनीति गर्मा गई है।
ये पूरा वाकया भाजपा नेता के सोशल मीडिया अकाउंट पर लाइव दिखाया गया। तेजस्वी के साथ उसके चाचा और बसवानागुड़ी के विधायक रवि सुब्रमन्या, चिकपेट के विधायक उदय गरुड़ाचार और बोम्मनहल्ली के विधायक सतीश रेड्डी भी मौजूद थे। ऑल्ट न्यूज ने लिखा है- 'सूर्या मीडिया को संबोंधित करते हुए 11 मिनट 59 सेकंड के आगे लिस्ट में लिखे 16 लोगों के नाम लेकर स्पेशल कमिश्नर तुलसी मेड्डीनेनी से सवाल कर रहे हैं, “आपको निगम के लिए नियुक्त किया गया है या मदरसे के लिए?… कौन हैं ये लोग? किस एजेंसी के लोग हैं।” यही हिस्सा व्हाट्सऐप पर वायरल हो रहा है। कुछ ही घंटों में पूरे मौके का सिर्फ़ वो हिस्सा जिसमें नाम लिया जा रहा है, व्हाट्सऐप पर आग की तरह फैल गया। यही नहीं, इन 16 लोगों को आतंकी बताते हुए मेसेज शेयर किया जा रहा है।स्पेशल कमिश्नर तुलसी मेड्डीनेनी ने ऑल्ट न्यूज को बताया, “बाकियों की तरह ये 16 लोग भी हायर करने वाली थर्ड पार्टी के ज़रिये योग्यता के अनुसार ही नियुक्त किये गये थे। BBMP प्रत्यक्ष तौर से नियुक्ति में भूमिका नहीं निभाता है।”
ऑल्ट न्यूज का कहना है कि उनकी टीम ने उन सभी 16 लोगों से बात करने की कोशिश की जिनका तेजस्वी सूर्या ने नाम लिया था। इनमें से केवल एक ही, और वो भी नाम न बताने की शर्त पर ऑल्ट न्यूज़ से बात करने के लिए तैयार हुआ। उसने कहा, “तेजस्वी सूर्या के मीडिया को संबोधित किये जाने के ठीक बाद हम सभी को निकाल दिया गया। जब मैंने अपने मैनेजर से जवाब मांगा तो उन्होंने कहा कि उनपर सांसद का दबाव है. मुझे यकीन नहीं हो रहा ये सब मेरे साथ क्यों हो रहा है, मेरे घर में एक ही कमाने वाला है।” जाहिर सी बात है भाजपा की राजनीति ने ऐसे 16 निर्दोष लोगों को सिर्फ इसलिये मोहरा बना दिया था, क्योंकि वो उस धर्म से आते हैं, जिनके खिलाफ वो अपने वोटरों को अब तक गोलबंद करती आई है।
ऐसे वक्त में जब देशभर में लोगों के मन में केन्द्र सरकार की अव्यवस्थाओं को लेकर रोष पनप रहा है, ऐसा लग रहा है कि भाजपा नेता लोगों का ध्यान भटकाने के लिये इस तरह के विवादास्पद कामों को अंजाम दे रहे हैं। हाल ही में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ट्विटर पर लिख दिया था कि पीएम काश उनसे काम की बात करते बजाय कि अपने मन की ही बात करते रहने के! ये चौंकाने वाला ट्वीट था, जिसके बचाव में जाहिर है कि बीजेपी के कई नेता उतर आये। खासकर मुख्यमंत्री, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी और हेमंत सोरेन पीएम की कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह लगा चुके थे। खैर, अव्यवस्थाओं के बीच पनप रहे लोगों के आक्रोश को डायवर्ट करने के लिये बीजेपी कोई काम नहीं करेगी, ऐसा सोचना ही मूर्खता है।
हाल ही में केन्द्र सरकार के 300 टॉप लेवल अफसरों की मीटिंग बुलाकर सिर्फ इस बात की वकशॉप दी गई कि वो कैसे सरकार का बचाव करेंगे। इस खबर को कई मीडिया हाउसेज ने प्रमुखता से छापा है। सरकार जिस स्पीड से वैक्सीनेशन कर रही है, उस स्पीड को देखते हुये अभी भारत के 100 फीसदी नागरिकों को वैक्सीन लगने में लंबा वक्त लगने वाला है। इधर पीएम के प्रिंसिपल सेक्रेटरी ने कोरोना की तीसरी वेव को लेकर चेतावनी जारी कर दी है। लोग अभी दूसरी वेव से ही नहीं संभल पा रहे हैं और इधर तीसरी वेव के आने की सूचना, नागरिकों को मुश्किल में डालने वाली ही ज्यादा साबित हो रही है। ऐसा लग रहा है कि भारत शोक संदेशों के देश में बदल गया है, लेकिन सरकार इस छवि को भी जल्द अपने चमकीले विज्ञापनों से ढक देगी। शायद वो कहानियां टीवी चैनलों ने तैयार कर ली होंगी, जिनमें कभी भी यह बताया जा सकता है कि कैसे मोदी मंत्र से दूसरी लहर को हराकर भारत विश्वगुरू बन चुका है।
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