कलम शासक के जूते चूमने गई तो मोर्चे पर उतर आये मुल्क के कार्टूनिस्ट!

Ho-Hallaकलम शासक के जूते चूमने गई तो मोर्चे पर उतर आये मुल्क के कार्टूनिस्ट!

गौरव नौड़ियाल

गौरव नौड़ियाल ने लंबे समय तक कई नामी मीडिया हाउसेज के लिए काम किया है। खबरों की दुनिया में गोते लगाने के बाद फिलहाल गौरव फिल्में लिख रहे हैं। गौरव अखबार, रेडियो, टीवी और न्यूज वेबसाइट्स में काम करने का लंबा अनुभव रखते हैं।  

दुनियाभर में ‘हो-हल्ला’ मचा हुआ है! क्यों मचा हुआ है...! इसलिये मचा हुआ है कि भारत सरकार कोविड महामारी की दूसरी लहर से अपने नागरिकों की सुरक्षा के प्रति लापरवाह और कमजोर नजर आई है। सरकारी अव्यवस्थाओं के चलते देश में कोरोना विस्फोट हो गया है। लोग सोशल मीडिया की मदद से लगातार अस्पतालों में बेड और जरूरी दवाओं के साथ ही ऑक्सीजन की डिमांड कर रहे हैं। भारत में महामारी के विस्फोट पर विदेशी मीडिया ने भी जमकर केन्द्र की बीजेपी सरकार की आलोचना की है।

कई नामी विदेशी अखबारों ने तो मोदी सरकार को ही इस स्थिति का कारण बताते हुए असफल करार दिया है। हालांकि, भारतीय मीडिया अभी भी अपने मूल स्वरूप यानी कि 'भक्ति के माॅडल' पर ही काम कर रही है। ऐसे समय में जबकि कलम शासक के जूतों के पास गिरी नजर आ रही है, तब ब्रश के स्ट्रोक जरूर जमीनी हकीकत की कहानियां बयां कर रहे हैं। एक से बढ़कर एक कार्टूनों के जरिये, इस वक्त मानों कार्टूनिस्ट खबरों के मोर्चे पर सबसे आगे खड़े हों। 

ये अजीब बात है कि भारत सरकार की मौजूदा दौर में जब चैतरफा आलोचना हो रही है, उस वक्त भी देश के कई नामी मीडिया हाउस के पत्रकार सरकार की जी हुजूरी में ही मशगूल हैं। हालांकि, इस मुश्किल वक्त में भी ‘कूची’ जरूर अपना काम बखूबी कर रही है। ‘हो-हल्ला’ के इस काॅलम में मैं आगे बढूं, इससे पहले मद्रास हाईकोर्ट की हालिया टिप्पणी की ओर ध्यान खींचना जरूरी हो जाता है। ये टिप्पणी ऐसे दौर में सामने आई है, जब संस्थाओं पर सरकार के कब्जे की बात आम हो चली है। असल में तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव की मतगणना में कोविड प्रोटोकॉल के पालन को लेकर दायर की गई एक याचिका की सुनवाई के दौरान मद्रास हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सबसे ऊपर है और यह चिंताजनक है कि संवैधानिक अधिकारियों को इस बारे में अदालत को याद दिलवाना पड़ रहा है।

लाइव लॉ के मुताबिक सुनवाई के दौरान नाराज दिख रहे चीफ जस्टिस संजीव बनर्जी ने चुनाव आयोग के वकील से कहा- ‘कोविड-19 की दूसरी लहर के लिए केवल आपका संस्थान जिम्मेदार है। मुख्य न्यायाधीश ने मौखिक रूप से यहां तक कहा कि आपके अफसरों पर हत्या का मामला दर्ज होना चाहिए।’ इस दौरान जब मुख्य न्यायाधीश ने अदालत के आदेश के बावजूद रैलियों में कोविड दिशानिर्देशों, मसलन मास्क, सैनेटाइजर के इस्तेमाल और सामाजिक दूरी का पालन न होने की बात कही, तब आयोग के वकील ने कहा कि इनका पालन हुआ था। इस पर जस्टिस बनर्जी ने तल्ख टिप्पणी करते हुए जवाबी प्रश्न किया- ‘जब चुनावी रैलियां हो रही थीं, तब आप क्या किसी और ग्रह पर थे?’ बता दें कि मुख्य न्यायाधीश संजीब बनर्जी तथा जस्टिस सेंथिलकुमार राममूर्ति की पीठ ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की हैं।

इतना ही नहीं अदालत ने यह चेतावनी भी दी कि अगर मतगणना के दिन के लिए चुनाव आयोग द्वारा कोविड के मद्देनजर की गई तैयारियों का ब्लूप्रिंट नहीं दिया गया, तो वे 2 मई को होने वाली वोटों की गिनती रोक देंगे। यहां, पाठक भी जानता है कि चुनाव आयोग के वकील की दलीलें कितनी कमजोर साबित हुई होंगी। ऐसे वक्त में जब लगातार टीवी चैनल दिन-रात चुनावी रैलियों की कवरेज में मशगूल थे और इसकी फुटेज सार्वजनिक तौर पर मौजूद हैं, तब चुनाव आयोग के वकील का कोर्ट में यह कहना कि रैलियों में कोविड प्रोटोकाॅल फाॅलो किया गया, हास्यास्पद दलील के सिवाय और कुछ नहीं थी। खैर ये एक शानदार और जरूरी टिप्पणी थी।

मैं वापस ‘हो-हल्ला’ के इस अंक पर लौटते हुए मीडिया पर आ जाता हूं। आज के अंक को मैं कार्टूनों, खासकर देश के मशहूर कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य के सटीक स्ट्रोक पर केंद्रित कर रहा हूं।   सतीश आचार्य के बनाये हुए कार्टून भारत की मौजूदा व्यवस्था और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व दोनों की बखिया उधेड़ रहे हैं। उनके कार्टून न केवल मौजूदा स्थिति के हालात बखूबी बयां कर रहे हैं, बल्कि चुटीले अंदाज में वो खबरों के शोर के बीच चुपचाप अपनी बात भी जनता तक पहुंचा रहे हैं। मसलन इन दो कार्टूंस को ही ले लीजिये जिसमें एक कार्टून के जरिये सतीश पीएम मोदी की महामारी को लेकर लापरवाही की ओर इशारा कर रहे हैं, तो दूसरी ओर चुनावी रैलियों को महामारी के लिये घातक बताते हुए भारत की ओर ध्यान देने की बात कर रहे हैं। 

इन दोनों ही कार्टूंस के जरिये सतीश, पीएम के सत्ता के लिये अति महत्वकांक्षी और गैर-जिम्मेदार रवैये की ओर भी ध्यान दिला रहे हैं। सतीश की कूची यहीं नहीं रुकती, बल्कि वो महामारी के हालात और सरकार के नजरिये पर और विस्तार लेती चली जाती है। इन कार्टूंस में इस दौर की दास्तां तो सिमटी हुई दिखती ही है, साथ ही वो भयावहता भी नजर आती है, जिससे हिन्दुस्तान के मरीज आज गुजर रहे हैं। अब इन दो कार्टूंस पर नजर मारिये।

ये उस दौर में बने, जब पीएम पश्चिम बंगाल समेत पांच चुनावी राज्यों में धड़ा-धड़ रैलियों का आयोजन कर रहे थे और मंच से कहते सुनाई दे रहे थे कि उन्होंने ऐसी रैली पहले कभी नहीं देखी। उनका इशारा रैलियों में उमड़ रही भीड़ की ओर था। ये वौ दौर था जब ऐसे लगने लगा था कि बाकी भारत के लिये महामारी नियंत्रण के लिये अलग कायदे हैं और रैली वाले राज्यों के लिये बिल्कुल अलग।  ये वही दौर था जब मास्क के नाम पर देश के बाकी राज्यों में आम जनता से फाइन वसूला जा रहा था, लेकिन इसके ठीक उलट नेताओं की रैलियों में ऐसी कोई पाबंदी नहीं थी। यहां तक कि देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री तक इन नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाते हुये नजर आ रहे थे। कई नामी मीडिया हाउसेस ने देश के इन दो बड़े नेताओं के लापरवाह रवैये को लेकर कोई सवाल नहीं पूछा, लेकिन कार्टूनिस्ट इस दौर में भी मोर्चे पर डटे हुये और अपने काम से सरकार की आलोचना करते हुये नजर आये।

इन कार्टूंस से जैसा कि जाहिर होता है सरकार वैक्सीनेशन को भी इवेंट बना देने और महामारी को दरकिनार कर कुंभ जैसे आयोजन की अनदेखी करने पर कटाक्ष किया गया है। जिस दौर में मीडिया ने कुंभ से निगाहें फेरकर इसके विज्ञापनों से मोटी कमाई का धंधा शुरू कर दिया था, उस दौर में भी समीश की कूची सच दिखाने से नहीं चूक रही थी।

सतीश के कार्टून दिखाते हैं कि कैसे जिस वक्त देश के भीतर कई मरीजों की मौत सिर्फ ऑक्सीजन न मिल पाने की वजह से हो जा रही थी, उस दौर में भी प्रधानमंत्री ने अपने चुनावी कार्यक्रमों को रद्द नहीं किया, बल्कि वो लगातार गैर-जिम्मेदारी का प्रदर्शन करते रहे। हालांकि, भक्ति में डूबे हुये टीवी चैनलों ने भी इस पर सवाल उठाने की जहमत नहीं उठाई। इसके उलट दूसरा कार्टून कर्नाटक सरकार द्वारा गुरुवार को विभिन्न अखबारों में प्रधानमंत्री मोदी का शुक्रिया अदा करते हुये जारी किये गये विज्ञापन की टाइमिंग पर सवाल खड़े करता है। असल में कर्नाटक की येदियुरप्पा सरकार ने गुरुवार को मेटो प्रोजेक्ट की क्लियरेंस मिलने पर पीएम मोदी का शुक्रिया अदा करते हुये कई अखबारों को फुल पेज का विज्ञापन जारी कर दिया। इस पर कर्नाटक में बवाल हो गया। ऐसे वक्त में जबकि राज्य में कोरोना की स्थिति लगातार विकराल हो रही है, कर्नाटक सरकार का यह विज्ञापन नरेन्द्र मोदी की चाटूकारिता के साथ ही एक तरह से अखबारों को ग्रीट करने का जरिया ही ज्यादा नजर आता है। इसी मुद्दे पर राज्य की विपक्षी पार्टियों ने जमकर बवाल काटा है।

अब इन दो कार्टूंस को ही ले लीजिये। इनमें दूसरा कार्टून जहां देश में महामारी की मौजूदा स्थिति के बीच चुनावों पर तल्ख सवाल करता है, तो पहला केन्द्र सरकार के ट्विटर से आलोचनात्मक ट्वीट्स हटाने के निर्देश पर तंज कसता है। हाल ही में केन्द्र सरकार ने ट्विटर से ऐसे ट्वीट्स को हटाने के लिये कहा था, जिनमें महामारी से निपटने में सरकार की नाकामी की बात कही गई थी। हालांकि, सरकार की ओर से इस पर सफाई दी गई कि ये सारे ट्वीट भ्रामक थे, ऐसा इसलिये किया गया। ...लेकिन यहां भी सतीश पाठकों को सच के करीब लाकर खड़ा कर देते हैं और सरकार की सफाई की बखिया उधेड़ देते हैं।

ऐसा नहीं है कि सतीश के कार्टून सिर्फ सरकार की आलोचना पर ही केन्द्रित हों, बल्कि वो अपने कार्टूंस के जरिये लगातार मास्क की उपयोगिता की बात को भी जोर-शोर से उठा रहे हैं। उनके कार्टूंस में आम आदमी की लापरवाही पर भी तल्ख टिप्पणियां हैं , तो मीडिया की गैरजिम्मेदार रिर्पोटिंग पर भी। सतीश लंबे वक्त से देश के नामी अखबार 'मिड डे' के लिये कार्टून बनाते रहे हैं। उनके कार्टून जितने चुटीले होते हैं, उतने ही असरदार और सच के करीब भी। ऐसे वक्त में जब मीडिया सिवाय खानापूर्ति या फिर सरकार के बचाव के अलावा कहीं नजर नहीं आ रहा, समीश के कार्टून आम लोगों के बीच से निकले सच को यथार्थरूप में सामने रख रहे हैं। शायद इसीलिये मेरे जेहन में इस अंक के लिये ये हेडलाइन भी आई होगी कि ‘जब कलम शासक का जूता चूमने निकल गई, तब कार्टूनिस्ट मोर्चे पर आ डटा है!’  'हो-हल्ला' की अगली कड़ी में ऐसे ही किसी दूसरे कार्टूनिस्ट के कार्टूंस के जरिये हिन्दुस्तान का हाल-ए-बयां सुनाने हाजिर होउंगा। तब तक आप मास्क कसकर पहिनये और अपना ख्याल रखिये... 

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