गौरव नौड़ियाल ने लंबे समय तक कई नामी मीडिया हाउसेज के लिए काम किया है। खबरों की दुनिया में गोते लगाने के बाद फिलहाल गौरव फिल्में लिख रहे हैं। गौरव अखबार, रेडियो, टीवी और न्यूज वेबसाइट्स में काम करने का लंबा अनुभव रखते हैं।
'हो-हल्ला' मचा हुआ है। सियासी गलियारों में योगी और मोदी के बीच चल रही 'लुकी-ढकी-छिपी' फाइट में लुत्फ लेने वाले तृप्त हो जाना चाहते हैं। योगी से नाराज चल रही जनता इसी बात से खुश है कि चलो 'जाने-न-जाने' के शोर के बीच कुछ हलचल तो मची हुई है, वरना तो मुर्दा शांति के बीच मदद मांगते लोगों पर मुकदमों की धमक ही सुनाई दे रही थी। यूपी में मोदी-योगी के बीच मची गफलत से विरोधी इस लिये भी खुश हैं कि चलो अब हुआ मामला रोमांचक।
इस बीच योगी की विदाई तक की अफवाह हवा में तैर गई, इन बातों को सोचे बगैर कि अब योगी केवल गोरखपुर के नेता नहीं है, ना अकेले यूपी के बल्कि वो मोदी के बाद भारत में हिंदुत्व का दूसरा बड़ा ब्रांड बनाये गये हैं। इस ब्रांड को कुचलना अब मोदी-शाह की जोड़ी के लिये उतना आसान नहीं रहने वाला, जैसे उत्तराखंड में फोन पर ही देश के लिये एक अनाम से सीएम को बदल देना। इस ब्रांड के कमजोर होने का मतलब बगावत भी है, जो मोदी और शाह लंबे चलने वाले इस खेल में फिलहाल तो कतई नहीं चाहेंगे।
एक वाकया सुनिये। पिछले हफ्ते राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले यूपी की राजनीतिक नब्ज टटोलने के लिए लखनऊ पहुंचे थे, लेकिन योगी ने उन्हें इस बीच घास ही नहीं डाली। होसबोले जैसी शख्सियत जिससे बीजेपी में लोग इन दिनों मिलने के लिये दौड़ पड़ते हों, उन्हें दो दिन लखनऊ में बिठाकर रखना, सीधे नरेंद्र मोदी को संदेश ही था कि अपना 'रबर स्टैंप वाला खेल कहीं और जाकर खेंले!' होसबोले और मोदी की करीबी भी किसी से छिपी नहीं है।
होसबोले सीएम से मुलाकात के इंतजार में बैठे ही रह गये और फिर चुपचाप बैग लेकर निकलना पड़ा। ... तो अब यहां भी 'नाक का सवाल' तो जरूर ही पैदा हो गया होगा। योगी की सीधे संघ और मोदी से टक्कर के इस खेल में ताकत का केंद्र कहां हैं! ये जब देखेंगे तो पाएंगे कि ये केंद्र असल में 'ब्रांड हिंदुत्व' की हनक से निकल रहा है।
खैर, यूपी में अगले साल होने वाले चुनाव को देखते हुए विधायक भी बाहर से चुप्पी साधे बैठे हैं, लेकिन भीतर ही भीतर वो भी इस खेल में शामिल हो गये हैं। रिपोर्ट्स की मानें तो नाराजगी 150 से ज्यादा विधायकों में पनपी हुई है और सांसद भी सीएम की कार्यशैली से नाखुश हैं। रिपोर्ट्स की मानें तो कोविड संक्रमण के दौरान योगी सरकार की कार्यशैली से केंद्रीय नेतृत्व बहुत खुश नहीं है।
सार्वजनिक तौर पर भले ही इस महामारी में लाशों से उपजे तनाव को मैनेज करने की कोशिश की जा रही है, लेकिन संघ और पार्टी की यूपी को लेकर हालिया बैठकें इसी का नतीजा हैं। पंचायत चुनाव के नतीजों से भी योगी बैकफ़ुट पर हैं, जहां भाजपा को मुंह की खानी पड़ी है। योगी के लिये तमाम स्थितियां विकट होने के बावजूद भी, जो एक चीज उन्हें बचा रही है वो है 'ब्रांड हिंदुत्व' का चेहरा। पार्टी ने योगी की इतनी बड़ी ब्रांड इमेज इस बीच तैयार की है, कि वही अब मुसीबत बन सुर्ख आंखें दिखला रही है।
लाशों पर लिपटे कफन नोंचने के फुटेज के बीच, नौकरशाह की एंट्री
पिछले 15 दिनों में अचानक लाशों पर लिपटे कफन नोंचने के फुटेज के बीच, इधर एक नौकरशाह मोदी से प्रेरणा लेकर रोज दो-चार ट्वीट ठेलकर यूपी में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने में मशगूल हो गया और अब यही शख्स बन गया है, तनाव और तनातनी का बहाना। मोदी और योगी के बीच मचे घमासान में जो नाम सबसे ज्यादा चर्चाओं में है, वह नाम है पूर्व नौकरशाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद क़रीबी माने जाने वाले अरविंद कुमार शर्मा का। इस शख्स ने देश की सियासत को रोचक बना दिया है और चर्चाओं के केंद्र में रहकर दो धुव्रों पर खड़े हिंदुत्व के सबसे बड़े चेहरों के बीच 'नाक का सवाल' बन बैठा है। अब ये नाक का जो सवाल होता है, ये असल में टेढ़ा बहुत होता है। कई किस्म के बयान तैर रहे हैं, कई किस्म की अफवाह। इनमें एक अफवाह यह भी है कि योगी की सीएम की गद्दी से रुखसती के दिन नजदीक हैं, लेकिन ऐसा होना इतना आसान नहीं है। ये भाजपा के लिये कुल्हाड़ी पर पैर रखने की स्थिति जैसा हो जाएगा।
उत्तर प्रदेश में पिछले दो हफ़्ते से जिस तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी के केंद्रीय नेताओं की बैठकों का दौर चल रहा है, उसे अपने-अपने ढंग से राजनीति के शौकीन भांप रहे हैं। सरकार और संगठन में बदलाव की संभावनाओं के बीच दोनों स्तरों पर नेतृत्व परिवर्तन तक की चर्चा ज़ोर-शोर से हो रही है। हालांकि, संघ के गुजराती धड़े को इसी दफा इतनी आसानी से जीत मिलती नहीं दिख रही है। ये सारा तनाव अनिल कुमार शर्मा को डिप्टी सीएम या फिर गृह जैसे महत्वपूर्ण विभागों के साथ कैबिनेट मंत्री बनाये जाने के शोर के साथ शुरू हुआ, लेकिन योगी आदित्यनाथ पीएम के करीबी इस पूर्व नौकरशाह को महत्वपूर्ण विभाग तो छोड़िये मंत्री पद देने के भी पक्षधर नहीं हैं। यह चुनौती ऐसे ही नहीं दी गई है, बल्कि योगी इस बात से अच्छे से वाकिफ हैं कि अब उनकी खुद की भूमिका भाजपा में क्या है। पीएम के बाद योगी को ही उनके विकल्प के तौर पर मोदी समर्थक भी देखते आये हैं, ऐसे में योगी को नजरअंदाज करना आसान नहीं रहने वाला है।
बीबीसी ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है- ''दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी के एक बड़े नेता कहते हैं कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व योगी आदित्यनाथ को यह अक्सर याद दिलाता रहता है कि वो मुख्यमंत्री किसकी वजह से बने हैं और मौक़ा पाने पर योगी आदित्यनाथ भी यह जताने में कोई कसर नहीं रखते कि नरेंद्र मोदी के बाद बीजेपी में प्रधानमंत्री के विकल्प वो ही हैं।'' कोरोना की दूसरी लहर में जब योगी सरकार की फजीहत बढ़ने लगी तब अचानक से सोशल मीडिया पर योगी की आईटी टीम ने योगी के पक्ष में मुहिम चलानी शुरू कर दी थी। इन मुहिम को करीब से देखें तो कई दफा इनमें पीएम के विकल्प के तौर पर योगी को आगे किया जाता है और यह सब केवल समर्थक ही कर रहे हों, ऐसा सोचना बेवकूफी ही होगा।
बीबीसी ने ही अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बीजेपी के कई नेता इस बात को भी स्वीकार करते हैं कि अक्सर कुछ लोगों द्वारा योगी आदित्यनाथ को मोदी के विकल्प के तौर पर पेश करने या फिर कुछ छिट-पुट संगठनों और लोगों की ओर से सोशल मीडिया या अन्य जगहों पर 'पीएम कैसा हो, योगी जी जैसा हो' सरीखे अभियान चलाने के पीछे योगी आदित्यनाथ के क़रीबियों का भी हाथ रहता है। 2017 में भले ही राज्य में नरेंद्र मोदी के चेहरे पर पार्टी ने चुनाव लड़ा था, लेकिन अब स्थितियां उलट हैं। योगी की लोकप्रियता ने उनकी ताकत को अब कई गुना बढ़ा दिया है। इधर मोदी की सियासत को करीब से देखेंगे तो पायेंगे कि उन्होंने अपने विरोधियों को कहीं का नहीं छोड़ा है। ऐसे में इन दो ताकतवर नेताओं की लड़ाई इतनी आसानी से खत्म होती नहीं दिख रही है।
ताकत ही बन गई 'गले की हड्डी'
यूपी में मोदी के करीबी की पिछले चार महीने से हो रही फजीहत का ही नतीजा है कि आज सूबे में संघ से लेकर पार्टी के पदाधिकारी तक बैठकों के दौर में मशगूल हैं। इससे पहले भी वरना योगी आदित्यनाथ के खिलाफ शिकायतें की गई, लेकिन उनका क्या हश्र हुआ यह भी सभी जानते हैं। यहां तक कि धरने पर बैठे विधायकों तक को नहीं सुना गया, लेकिन इस दफा तल्खियां बढ़ गई हैं।
मंत्रियों, विधायकों की जिस तरह की शिकायतें हैं कि उन्हें कोई महत्व नहीं दिया जाता है और राज्य में चंद ब्यूरोक्रेट ही पूरी सरकार चला रहे हैं, इस तरह के आरोपों ने पार्टी को अगले चुनावों को लेकर भी संशय में डाल दिया है। ऐसी स्थिति बन गई है कि बीजेपी ना तो योगी को हटाकर सबको संतुष्ट कर पाने की स्थिति में है और ना मौजूदा सीएम नेतृत्व में अगला चुनाव लड़ने की हिम्मत ही जुटा पा रही है। योगी पार्टी के भीतर ताकतवर ब्रांड से, अब मुसीबत का ब्रांड भी बन गये हैं।
यूपी की सियासत में बैठकों और पर्दे के पीछे चल रहा खेल आगे क्या गुल खिलाता है, देखना दिलचस्प होगा। एक ही लीक के दो नेताओं में 'तू बड़ा कि मैं' की तर्ज पर सुरक-सुरक, भीतर-भीतर तनाव की जो लहर दौड़ रही है, वो किसे झुलसाएगी यह तो आने वाले दौर में ही पता चलेगा, लेकिन एक बात तो तय है कि जो भी इस लड़ाई में कमजोर पड़ेगा, उसके सिर पर कई बुरी चीजों का ठीकरा फूटना तय है। हिंदुत्व के दो ध्रुव बन चुके योगी और मोदी की लड़ाई लंबी खिंचने जा रही है, लेकिन यह भी तय बात है कि इस दफा मोदी का पाला ऐसे खिलाड़ी से पड़ा है जो उसकी ही लीक पर चलकर अपना सियासी खेल खेल रहा है।
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