गौरव नौड़ियाल ने लंबे समय तक कई नामी मीडिया हाउसेज के लिए काम किया है। खबरों की दुनिया में गोते लगाने के बाद फिलहाल गौरव फिल्में लिख रहे हैं। गौरव अखबार, रेडियो, टीवी और न्यूज वेबसाइट्स में काम करने का लंबा अनुभव रखते हैं।
अव्वल तो मैं सुधीर चौधरी को पत्रकार नहीं मानता और तब से तो बिल्कुल नहीं मानता जब से कारोबारी नवनी जिंदल के साथ पैसों की डील करने का सुधीर का वीडियो सामने आया था, जिसके चलते इस शख्स को जेल तक जाना पड़ा। पत्रकार खबरों पर जिरह और मगजमारी करे न कि रुपयों-पैसों की डील पर, ऐसा पत्रकारिता की दुनिया में अलिखित कानून है और हम सब बतौर पत्रकार इस अलिखित कानून से खुद को बंधा हुआ पाकर गर्व महसूस करते हैं। खैर ये अजीब बात है कि, भारत में ही आप नैतिक पतन और 'पेशेवर गद्दारी' के बावजूद सीना ठोक कर 'ज्ञान की गंगा' इतने खुलेआम डंके की चोट पर बहा सकते हैं।
मसलन राम रहीम या आशाराम बापू को ही लीजिए... ये लोग भी नैतिकता कब के पीछे छोड़ चुके थे और अपनी अय्याशियों की पूर्ति के लिए उन्होंने 'ज्ञान रूपी गंगा' को गरीब कुचले हुए भारतीयों के बीच ब्रांडिंग कर उतार दिया। उनका कारोबार तब तक चलता रहा जब तक अति नहीं हो गई!
खैर, जिस भी शख्स ने सुधीर चौधरी की विवादास्पद पत्रकारिता की जर्नी देखी होगी... वो उनके शोज में कैसे और क्यों ही दिलचस्पी लेगा! कायदे से डीएनए के रोजमर्रा के 'इकतरफा' शोज पर मुझे व्यक्तिगत तौर पर बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं है, लेकिन मेरा काम है 'हो-हल्ला' में ऐसे विषयों के बारे में लिखना, जिनमें मुझे शोर सुनाई देता है। आज 'हो-हल्ला' के इस अंक में मैं 2 अप्रैल को प्रसारित हुए सुधीर चौधरी के शो 'डीएनए' के एपिसोड 'Zee का माइक इतना चुभता क्यों है?' पर ही अपनी बात रखूंगा। असल में इस एपिसोड को अचानक उस वक्त क्यों लेकर आना पड़ा, जब अलग-अलग खबरिया चैनलों के प्राइम टाइम पर चुनाव विश्लेषण के नाम पर 'भाजपा' की दुकान सजी हुई नजर आ रही हैं। इसकी कहानी भी बंगाल चुनावों से होकर ही हमारे पास आती है।
पहले उस हिस्से की बात जिसकी शुरूआत सुधीर चौधरी दार्शनिक प्लूटो के एक कथन से शुरू करते हैं। सुधीर ने जी न्यूज की पत्रकारिता को विश्वसनीय बताने के लिए प्लूटो का सहारा लिया, ये हास्यास्पद बात है। सुधीर ने प्लूटो के एक कथन जिसमें कहा गया है- 'लोग उन्हीं लोगों से नफरत करते हैं, जो सच बोलते हैं!' का सहारा लेकर अपने शो की शुरुआत की। बिल्कुल सही बात है, लेकिन ये जी न्यूज के संदर्भ में आधा सच हो जाता है या सच ही नहीं रह जाता।
जेएनयू के उस घटनाक्रम को याद कीजिए जब जी न्यूज ने एक एडिटेड वीडियो यह कहकर चला दिया था कि कैंपस में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगे। यूनिवर्सिटी के कई स्टूडेंट पर सरकारी हमले तेज हो गए थे। बवाल इतना बढ़ा कि जी न्यूज के ही एक कर्मी विश्वदीपक ने खुद इस वीडियो को फर्जी बताकर अपना इस्तीफा प्रबंधन को सौंप दिया, लेकिन तब तक सुधीर चौधरी का शो अपना असर दिखा चुका था। जो खेल रचा गया था उसके परिणाम आने लगे थे और पूरे भारत में एक खास संदेश भेजा गया कि जेएनयू पाकिस्तान परस्त लोगों का ठिकाना है!
कितनी अजीब बात है ये! अपने ही मुल्क के नागरिकों और बच्चों को पाकिस्तान परस्त बता देना, वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि वो एक खास विचाारधारा का भंडा फोड करने में आगे हैं! खैर, मैं वापस एपिसोड पर लौटता हूं। प्लूटो के बाद सुधीर पत्रकारिता पर प्रवचन बांटने लगे, जैसे कि इसी आदमी के कंधे पर सारा दारोमदार हो!
इसके बाद सुधीर ने एक फुटेज चलाया, जिसमें लोग जी न्यूज की गाड़ी पर हमला कर रहे हैं। पूरे शो में मुझे यहीं पर 'पत्रकारिता' की थोड़ी चिंता हुई! असल में हिंसा तो किसी भी रूप में स्वीकार नहीं की जा सकती। ये परेशान करने वाली फुटेज थी, जिसमें पगलाए लोग पत्रकारों पर हमला कर रहे थे। ये वाकई खतरनाक और निंदनीय है, लेकिन सवाल ही यही है कि लोग आखिर जी न्यूज का विरोध क्यों कर रहे हैं!
इस सवाल का जवाब भी डीएनए के इसी एपिसोड में आगे निकल कर सामने आता है। आगे सुधीर इस एपिसोड में नागरिकों के द्वारा जी न्यूज के बहिश्कार की अलग-अलग घटनाओं को लेकर आते हैं, जिसकी शुरुआत खुद सुधीर चौधरी के शाहीन बाग वाले 'नाटक' से शुरू होती है। ये वही घटना थी जब सुधीर चौधरी और दीपक चौरसिया बेहद नाटकीय अंदाज में भारी पुलिस फोर्स और अपना लाव लश्कर लेकर शाहीन बाग में रिर्पोटिंग करने पंहचे थे। लोगों ने सुधीर और दीपक का विरोध शुरू कर दिया। आंदोलनकारियों ने 'गो बैक गोदी मीडिया' और 'बॉयकॉट जी न्यूज' जैसे नारों से सुधीर का विरोध किया था।
ये वो दौर था जब जी न्यूज लगातार शाहीन बाग में बैठे प्रदर्शनकारियों को बदनाम करने पर तुला हुआ था। जी न्यू पर लगातार आंदोलनकारियों को 'टुकड़े-टुकड़े गैंग', 'देशविरोधी' 'पाकिस्तान परस्त' और न जाने किन-किन उपमाओं का प्रयोग कर बदनाम करने की अंतहीन मुहिम जारी थी, जो कि कहीं से भी पत्रकारिता की श्रेणी में नहीं रखी जा सकती। पत्रकारों का काम घटना को सामने रखना है न कि सरकार के लिए बैटिंग करना। जी न्यूज ने बाकायदा एक मिस्ड कॉल अभियान चलाकार दावा किया कि एक करोड लोगों ने नागरिकता कानून के समर्थन में जी की मुहिम को समर्थन दिया।
सुधीर चौधरी ने अपने शो में कहा- 'देश के टुकड़े-टुकड़े गैंग और जी न्यूज की कोशिशों को झूठा बताने वाले लोगों को इन एक करोड़ लोगों की अहमियत पहचाननी चाहिए। क्या टुकड़े-टुकड़े गैंग के लोग जानते हैं कि दुनिया के 133 देश ऐसे हैं, जिनकी आबादी एक करोड़ या उससे भी कम हैं।' इसके बाद सुधीर दर्शकों को एक करोड़ मिस्ड कॉल का दावा करने के बाद कम आबादी वाले देशों के बहाने सरकार बनने और बिगड़ने का गणित समझाने लगे!
ये अपने आप में हास्यास्पद तथ्य था। इसी तर्क के सापेक्ष अगर हम भारत भर में प्रदर्शनकारियों की संख्या देखते तो वो अपने आप में करोड़ों में थी! देश के अलग-अलग हिस्सों में नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे थे, जिनमें हजारों लोग उमड़ पड़े। सुधीर का दावा और प्रवचन यहां खत्म नहीं हुआ, बल्कि इससे आगे उन्होंने लफ्फाजी के और भी कई पुल बांधे। ये शो 27 दिसंबर 2019 को प्रसारित हुआ था।
सुधीर के ही दूसरे शो को देखकर यह समझ आ जाता है कि आखिर लोग 'जी न्यूज के माइक' से नफरत क्यों करते हैं! ये एपिसोड 28 जनवरी को 'DNA: Shaheen Bagh को अब खाली करा देना चाहिए?' नाम से जी के यूट्यूब हैंडल पर अपलोड किया गया। शो में 'शाहीन बाग में देश विरोधी गैंग की दादागिरी कब तक' जैसे स्लग लगातार टीवी स्क्रीन पर तैरते रहे। सुधीर लगातार उकसावे वाली रिपोर्ट पेश करते रहे। सुधीर ने शो में प्रदर्शनकारियों को बार-बार 'टुकड़े-टुकड़े' गैंग कहकर पुकारता रहा! ये खुलेआम चलता रहा। इन सबके बावजूद भी लोग जी न्यूज का वेलकम करेंगे, ये सोचना ही मूर्खता है।
इसके बाद 'Zee का माइक इतना चुभता क्यों है?' एपिसोड में सुधीर चौधरी ने दिल्ली में किसानों के प्रदर्शन स्थल पर लगे बॉयकॉट जी की तस्वीरें दिखाई। शो में सुधीर ने एक बार फिर से दावा किया कि किसान आंदोलन में खालिस्तानी तत्व शामिल हैं और उन्होंने ही जी न्यूज के बॉयकॉट की मुहिम चलाई। असल में किसानों ने धरना स्थल पर गोदी मीडिया के आने पर प्रतिबंध लगाया है और इसकी वजह भी इकतरफा रिपोर्टिंग और लगातार किसान आंदोलन को बदनाम करने वाले शोज हैं, लेकिन यहां भी सुधीर बड़ी मासूमियत से किसानों पर ही निशाना साधते दिखते हैं।
एक के बाद एक सुधीर अपने शो में ऐसे घटनाक्रमों को लेकर आए, जहां लोग जी न्यूज का विरोध करते नजर आ रहे हैं। आप जब इन तमाम घटनाओं को परत दर परत खोलकर देखते हैं तो साफ नजर आता है कि लोग जी न्यूज की भ्रामक, झूठी और इकतरफा रिपोर्टिंग से आजिज आकर चैनल और उसके पत्रकारों का विरोध करते आ रहे हैं। इस सबके बावजूद पूरी बेशर्मी से जी न्यूज का शो डीएनए लगातार सरकार परस्त खबरों के अपने अभियान को जारी रखे हुए है। सुधीर हर उस नागरिक को देश विरोधी बताने पर उतावले नजर आते हैं, जो सरकार से नाराज होकर उसके खिलाफ प्रदर्शन का रास्ता चुनते हैं। ऐसे में स्पष्ट हो जाता है कि लोगों को आखिर जी का माइक चुभता क्यों है!
सुधीर ने ये एपिसोड शायद खबरों के प्रति अपनी ईमानदारी साबित करने के लिए बनाया हो, लेकिन जब आप इस एपिसोड से गुजरेंगे तो आपको शर्म को गर्व में बदलने की गिड़गिड़ाहट के सिवाय और किसी चीज की जद्दोजहद नजर नहीं आएगी। असल में जी का माइक हमें भी चुभता है, जब हम इकतरफा रिपोर्टिंग देखते हैं।
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