मनोहर चमोली ‘मनु’ पहाड़ों पर शिक्षक हैं, लेकिन उनकी कहानियों को दुनिया की 20 भाषाओं में बच्चों ने पढ़ा है। बाल साहित्य की दुनिया में मनु जाना पहचाना नाम हैं। बीस से अधिक भाषाओं में उनकी कई कहानियों का अनुवाद हो चुका है। ‘पढ़े भारत-बढ़े भारत’ के तहत कई राज्यों में पूरक सामग्री के तौर पर कहानियाँ शामिल हैं। एनबीटी, प्रथम, रूम टू रीड, राज्य संसाधन केन्द्र, उत्तराखण्ड से किताबें प्रकाशित।
स्कूल दिवाली की छुट्टियों के बाद आज खुला। स्कूल में चहल-पहल थी। प्रातःकालीन सभा में सबकी नजर नई प्रिंसिपल पर जा टिकी। सभा समाप्त हुई। जनरल माॅनीटर नील जेवियर खुद को नहीं रोक सकी। उसने प्रिंसिपल की ओर देखकर कहा,‘‘बड़ी मैम। दिवाली-होली-ईद-बैसाखी स्कूल में मनाई जाती है। क्रिसमस भी मनाया जाना चाहिए।’’ यह कहते-कहते नील चुप हो गई। प्रिंसिपल ने हाथ के इशारे से उसे चुप हो जाने के लिए जो कह दिया था।
‘‘चुप रहो। तुम मुझे सिखाओगी कि स्कूल में क्या होना चाहिए और क्या नहीं।’’ प्रिंसिपल ने जोर देकर कहा। नई प्रिसिंपल प्रातःकालीन सभा में इस तरह पेश आएंगी! किसी को भी उम्मीद नहीं थी।
नील तो सहम ही गई। ‘‘मैम। नील इस स्कूल की जनरल माॅनीटर है। बहुत ही होशियार है। पढ़ाई के साथ-साथ हर गतिविधि में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती है। बहुत आगे की योजना बना लेती है। इसलिए क्रिसमस के बारे में वो पहले ही बताना चाह रही होगी।’’ स्कूल की सीनियर मैडम ने शालीनता से बताना चाहा।
‘‘तो? स्कूल अनुशासन भंग करने का किसी को भी अधिकार नहीं है। हर कोई अपने काम से काम रखे। बच्चे पढ़ें और टीचर पढ़ायें। बस। पढ़ाई ही काम आती है। कोई त्योहार नहीं, कोई उत्सव नहीं। सुना सबने। अब सब अपनी-अपनी क्लास में जाओ। छमाही इम्तिहान की तैयारी करो।’’ यह कह कर प्रिंसिपल चली गई।
आज किसी का मन पढ़ाई में नहीं लगा। हर कोई नई प्रिंसिपल के व्यवहार को देखकर हैरान था। नील तो सन्न-सी रह गई थी। चुलबुली, चंचल, यहां-वहां डोलती-फिरती नील की जबान पर जैसे ताला जड़ दिया गया हो। प्रातःकालीन सभा से लेकर छुट्टी का घंटा बजने तक अब नील बुत सी बनी रहती। वही नील जो सारे स्कूल के बच्चों की प्रिय थी। उसकी एक आवाज पर किसी भी क्लास के बच्चे सावधान और मौन होकर उसकी ओर देखने लगते थे। आखिर वो शिक्षकों की बात बच्चों तक पहुंचाने का माध्यम जो थी। वह बड़े प्यार से और आत्मविश्वास से बच्चों को निर्देश देती। आए दिन होने वाली घोषणाओं का नेतृत्व नील ही करती थी। उसने कभी किसी सहपाठी या जूनियर छात्र-छात्राओं पर रौब नहीं जमाया।
एक दिन की बात। क्लास चल रही थी। वंदना ने नील से पूछा,‘‘नील क्या हो गया है तुम्हें? छमाही परीक्षा में भी तुम अच्छे नंबर नहीं ला पायी। तुम पहले जैसी नहीं रही। क्या बात है? बोलो।’’ यह सुनते ही नील फफक-फफक कर रो पड़ी। रोते-रोते बोली,‘‘मैम। बड़ी मैम अच्छी नहीं है। वो खुद को क्या समझती हैं। क्या हम बच्चों का कोई सम्मान नहीं है? मैंने असेम्बली में क्या कुछ गलत कह दिया था? मैम ने उसी समय कितना कुछ सुना डाला। मुझे तो लगने लगा है कि अब इस स्कूल में हम बच्चों का कोई नहीं है। अब मैं इस स्कूल में नहीं पढ़ सकती। मैं ऐसे स्कूल में पढ़ना चाहती हूं, जहां सभी त्योहार और उत्सव मनाए जाते हैं।’’
क्लास में हल्ला मच गया। सारे बच्चे नील की बात से सहमत थे। वंदना ने बड़ी मुश्किल से कक्षा को शांत किया। तभी मैडम की नजर कैलेण्डर पर पढ़ी। कैलेण्डर को देखते हुए बोली,‘‘कोई बात नहीं। स्कूल में नहीं तो क्या हुआ, क्रिसमस घर में भी तो मनाया जा सकता है। ये नवंबर है। फिर क्रिसमस तो दिसम्बर में आता है। अभी से क्यों परेशान होती हो।’’ नील सुबकते हुए बोली,‘‘मैम। इस बार क्रिसमस के दिन रविवार है। मेरे मम्मी-पापा मुझे चर्च लेकर जाएंगे। मैंने अपना क्रिसमस प्लान कर लिया है।’’
वंदना ने एकदम बात बदल दी। वह धीरे से बोलीं,‘‘श्ऽऽऽ! शायद बड़ी मैम इसी ओर आ रही हैं। चलो किताब निकालो।’’ वंदना अब जोर-जोर से पाठ पढ़ाने लगीं।
दिसम्बर का महीना भी आ गया। चैबीस तारीख को स्कूल की छुट्टी का घंटा बजा। बच्चे गेट के बाहर आकर नील को क्रिसमस की अग्रिम बधाई देने लगे। नील की सहेली सलमा ने कहा,‘‘नील। एडवांस में हैप्पी क्रिसमस। वैसे मैं कल तुम्हारे घर जरूर आऊंगी।’’ नील ने हंसते हुए कहा,‘‘थैंक्स सलमा। मैं इंतजार करुंगी।’’ नील घर पहुंची। मम्मी-पापा घर को सजाने में लगे हुए थे। नील ने मम्मी सेलिपटते हुए कहा,‘‘कल क्रिसमस है। सन्डे भी। बड़ा मजा आएगा।’’
शाम से लेकर रात भर नील मम्मी-पापा के साथ घर के एक-एक कोने को सजाने में जुटी रही। अचानक उसे कुछ ध्यान आया। वह बोली,‘‘पापा। क्रिसमस ट्री नहीं लाये?’’ नील के पापा ने मुस्कराते हुए जवाब दिया,‘‘क्रिसमस कल है न। कल ले आएंगे। अब चलो। खाना खाकर सो जाओ। सुबह जल्दी भी तो उठना है।’’ नील जम्हाई लेते हुए सोने चली गई।
सुबह हुई। नील उठी तो उसके सिरहाने के पास विशालकाय सजा-धजा क्रिसमस का पेड़ मुस्करा रहा था। नील खुशी से झूम उठी। वह बुदबुदाई,‘‘मेरे मम्मी-पापा कितने अच्छे हैं। एक हमारी बड़ी मैम है, उफ! कितनी खराब हैं वो। मैं भी सुबह-सुबह किसे याद कर रही हूँ!’’ नील की सहेली सलमा भी आई। दोनों ने खूब मस्ती की। दोपहर,शाम कब बीत गए!
पता ही नहीं चला। रात हो गई। नील ने मम्मी-पापा से कहा,‘‘कल स्कूल जाना है। नींद आ रही है। मैं सोने जा रही हूँ।’’ दोनों ने उसे शुभ रात्रि कहा। नील सोने चली गई।
सुबह हुई। आज सोमवार था। नील क्रिसमस का दिन याद करते हुए उठी थी। वह बहुत खुश नजर आ रही थी। उसने फुर्ती से स्कूल जाने की सारी तैयारी की। फिर स्कूल बस भी आ गई। वह खुशी-खुशी स्कूल चली गई। नील अब स्कूल गेट के सामने खड़ी थी। वह हैरान थी। उसने चारों ओर नजर दौड़ाई। उसका स्कूल सजा हुआ था। उसने गेटकीपर से पूछा,‘‘अंकल। आज हमारे स्कूल में क्या है? क्या कोई फंक्शन तो नहीं है?’’
अचानक गेटकीपर के पीछे से प्रिंसिपल नील के सामने आ गईं। वह बोलीं,‘‘मैं बताती हूं।’’ प्रिंसिपल को इस तरह सामने आते देख नील डर गई। उसने झेंपते हुए सिर नीचे कर लिया। धीरे से बोली,‘‘गुड मार्निंग मैम!’’ प्रिंसिपल ने जवाब दिया,‘वैरी गुड मार्निंग! हैप्पी क्रिसमस नील। देखो,सारा स्कूल तुम्हें बधाई देने के लिए तैयार है।’’
गेटकीपर ने बताया,‘‘नील बेटा। कल सन्डे था। बड़ी मैडम ने अपने हाथ से तुम्हारी क्लास को सजाया हुआ है। जल्दी जाओ। दौड़कर जाओ। वहां सब तुम्हारा इंतजार कर रहे है। बच्ची, मुझे गेट पर ड्यूटी देते हुए तीस साल हो गए हैं। ऐसा मैंने पहली बार देखा है। मैं बड़ी मैम को सैल्यूट करता हूँ।’’
नील का चेहरा दमक उठा। वह खुशी के मारे दौड़कर अपनी कक्षा में जा पहुंची। हर कोई उसे बधाई दे रहा था। तभी उसकी नजर अपने मम्मी-पापा पर पड़ी। वह दौड़कर उनके पास जा पहुंची। उसने हंसते हुए पूछा,‘‘मम्मी! पापा! आप यहां! मैं कुछ भी समझ नहीं पा रही हूँ। यह सब...!’’
नील की मम्मी ने मुस्कराते हुए कहा,‘‘हम तो तुम्हारी बड़ी मैडम को थैंक्स कहने आये थे। कल उन्होंने तुम्हारे लिए क्रिसमस ट्री जो भेजा था।’’ यह सुनकर नील की आँखें भर आईं। अब उसके पापा ने कहा,‘‘वैसे भी हमको तुम्हारे स्कूल में आना ही था। तुम्हारे लिए दूसरा स्कूल भी देख लिया है। इस स्कूल से तुम्हारे डाॅक्यूमेंट भी तो निकालने हैं।’’
तभी प्रिंसिपल भी नील की कक्षा में आ गईं। वह नील से बोली,‘‘दरअसल। मैंने इस स्कूल के बारे में गलत सुना था। इस स्कूल में पढ़ाई नहीं होती। बच्चे अक्सर स्कूल नहीं आते। सो, मैंने पहले ही दिन से सख्ती दिखानी चाही। लेकिन धीरे-धीरे मुझे पता लगा कि यहां तो सब कुछ ठीक-ठाक है। और फिर तुम्हारे पापा ने भी मुझे बताया कि नील तनाव में रहने लगी है।’’
नील के पापा भी उसकी तरफ देखने लगे। बड़ी मैम बता रही थीं,‘‘आपके पापा ने मुझे बताया कि तुम इस स्कूल में अब पढ़ना नहीं चाहती हो। इस बात ने मुझे परेशानी में डाल दिया। फिर मैंने तय किया कि मुझे तुम्हारा, समूचे स्टाॅफ का और बच्चों का भरोसा हासिल करना होगा। बस। मैं भी क्रिसमस का इंतजार करने लगी।’’
नील की क्लास टीचर गुलिस्ता ने हैरानी से पूछा,‘‘नील! क्या तुम स्कूल बदल रही हो?’’ नील ने नजरें झुका ली थीं। वह धीरे से बोली,‘‘मैम नहीं। मैं इस स्कूल को बारहवीं पास करने के बाद ही बदल सकूंगी।’’
प्रिंसिपल ने मुस्कराते हुए कहा,‘‘स्कूल स्टाॅफ ने मिलकर एक फैसला किया है। इस स्कूल में हर त्यौहार और उत्सव मनाएं जाएंगे। यही नहीं स्कूल हित में होने वाली बैठक में हर कक्षा से एक बच्चा भी भाग लेगा। कक्षाओं की परेशानियों को बच्चों से ज़्यादा कौन जानता है। ठीक है न?’’ यह सुनते ही नील दौड़कर प्रिंसिपल से लिपट गईं। सब एक बार फिर से एक-दूसरे को क्रिसमस की बधाई दे रहे थे।
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