गौरव नौड़ियाल ने लंबे समय तक कई नामी मीडिया हाउसेज के लिए काम किया है। खबरों की दुनिया में गोते लगाने के बाद फिलहाल गौरव फिल्में लिख रहे हैं। गौरव अखबार, रेडियो, टीवी और न्यूज वेबसाइट्स में काम करने का लंबा अनुभव रखते हैं।
इस दफा केवल 'हो-हल्ला' नहीं मचा है, चीख-पुकार भी मची है। महंत योगी आदित्यनाथ के यूपी में केंद्रीय नेता का सनकी बेटा दनदनाते हुए किसानों की छाती रौंदकर गुजर गया। इससे गुस्साए किसानों ने मौके पर ही चार लोगों को मौत के घाट उतार दिया। देखने वाले स्तब्ध हैं और शासन करने वाले इस मामले को जल्दी से सुलटा लेना चाहते हैं, गोयाकि अब इस घटना ने सियासी रंग अख्तियार कर लिया है।
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बड़े बोल भाजपा को ही भारी पड़ गए हैं। फिलहाल योगी सरकार किसानों के सामने गिड़गिड़ाने की मुद्रा में जरूर नजर आ रही है, लेकिन भाजपा नेताओं के द्वारा लगातार किसानों के खिलाफ हो रही तीखी बयानबाजी और आईटी सेल का लखीमपुर की घटना को किसानों के मत्थे मारने का प्रपंच इस गिड़गिड़ाहट की सीमा भी तय कर रहा है। इस सीमा से आगे झांकने वाले यह भी अंदेशा लगा रहे हैं कि क्या सरकार पटलवार का मौका तलाश रही है!
कल्पना कीजिए कि ये अपराध किसी आम नागरिक से होता तो योगी आदित्यनाथ की सरकार क्या-क्या कर चुकी होती? असल में नागरिकों को 'ठेलकर-पीटकर' चुप करवा देने वाली योगी सरकार इस जघन्य कांड को दबाने के लिए तुरंत मृतकों को 45 लाख का मुआवजा देने को तैयार हो गई। इस दफा न किसान खालिस्तानी हैं, न अमीर साबित किए गए न 'दंगाइयों' की संपत्ति की कुड़की के आदेश हुए हैं! जाहिर सी बात है पहले ही यूपी में लगातार कमजोर पड़ रही भाजपा के लिए ये घटना बड़ा नुकसान पैदा कर चुकी है, लेकिन अब भी 'यूपी के किले' को बचाने के लिए भाजपा कोई कोर-कसर नहीं छोड़ने वाली है।
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के 'हर इलाके से 1 हजार लट्ठ वाले करेंगे किसानों का इलाज' वाला बयान हो फिर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा का 'सांसद मंत्री बनने से पहले मैं क्या था, पता कर लें' वाला बयान, बीजेपी की ओर से मानो किसानों को संदेश दिया जा रहा हो, जिसके नेपथ्य से 'हिंसा' झांक रही है।
असल में यूपी के किले को बचाने के लिए बीजेपी जितना 'हो-हल्ला' मचा रही है, उसके उलट पार्टी को लेकर आम वोटर्स बड़े पैमाने पर खफा भी हैं। पश्चिमी उत्तरप्रदेश का इलाका पहले ही बीजेपी के हाथ से दूर छिटक गया है, वहीं पूर्वी और मध्य यूपी के इलाकों में भी पार्टी अपनी स्थिति को बचाए रखने की जद्दोजहद करती दिख रही है। जाटों की काट के तौर पर गुर्जर वोटरों को अपने पक्ष में करने की चाहत हो या फिर कोविड के दौरान गंगा में 'लाशों की बाढ़' को छिपाने के प्रयास और अब लखीमपुर खीरी में किसानों के ऊपर केंद्रीय मंत्री के बेटे के गाड़ी दौड़ाने के कांड के बाद से पार्टी लगातार बैकफुट पर आई है।
कई घंटे चली बातचीत के बाद किसान नेता राकेश टिकैत की मौजूदगी में सरकार और किसानों के बीच समझौता हुआ। इसमें प्रत्येक मृतक के परिवार को 45 लाख के मुआवजे के अलावा घटना की “न्यायिक जांच” और 8 दिन में आरोपियों को अरेस्ट करने का वादा भी किया गया है। अब योगी सरकार कब मंत्री के बेटे समेत अन्य आरोपियों पर कार्रवाई करती है, यह तो देखने वाली बात होगी..लेकिन फिलहाल तो किसानों ने योगी सरकार को कई फुट पीछे धकेल दिया है। किसानों के साथ हुआ समझौता तो यही इशारा भी कर रहा है कि योगी आदित्यनाथ फिलहाल खुद किसानों से उलझने के मूड में नहीं हैं।
विपक्षी नेताओं को किसानों से दूर रखने की स्ट्रेटजी
लखीमपुर खीरी हिंसा में मारे गए किसानों के परिवारों से मिलने पहुंचीं प्रियंका गांधी को UP पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। उन्हें सीतापुर स्थित पीएसी के गेस्ट हाउस में 30 घंटे हिरासत में रखने के बाद गिरफ्तार किया गया है। उनके खिलाफ धारा 144 के उल्लंघन और शांतिभंग की आशंका जैसी धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया है। इस सूचना से ही कांग्रेसी सड़कों पर उतर आए हैं। लखीमपुर की घटना ने जहां बीजेपी को बड़ा 'डेंट' दिया है, वहीं प्रियंका की सक्रिय भूमिका भी लोगों का ध्यान खींच रही है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के मायने
इधर उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि जब तीनों कृषि कानूनों पर रोक लगा दी गई है, तो किसान संगठन किसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं? जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा कि कानूनों की वैधता को न्यायालय में चुनौती देने के बाद ऐसे विरोध प्रदर्शन करने का सवाल ही कहां उठता है। कोर्ट की इस टिप्पणी के कई मायने निकाले जा रहे हैं। एक धड़ा इस बात को लेकर भी संशकित है कि पहले बीजेपी नेताओं के भड़काऊ बयान और अब कोर्ट की टिप्पणी के बाद कहीं बीजेपी किसान आंदोलन को कुचलने की भूमिका तो नहीं तैयार कर रही है!
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