देखो गौरा! देखो, कैसे उजड़ रहा है तुम्हारा रैणी गांव!

Gaura Deviदेखो गौरा! देखो, कैसे उजड़ रहा है तुम्हारा रैणी गांव!

दिनेश जुयाल

दिनेश जुयाल वरिष्ठ पत्रकार हैं। 'अमर उजाला' और 'हिंदुस्तान' में उन्होंने लंबी संपादकीय पारी खेली हैं।

कुदरत को बचाने के लिए पूरी दुनिया की एक नया मंत्र देने वाली चिपको आंदोलन की मां गौरा देवी के गांव रैणी पर कुदरत कहर बन कर टूट पड़ी है। गांव के आधार को विकराल हो रही ऋषिगंगा कुरेद कुरेद कर ध्वस्त कर रही है और पहाड़ों में हो रही मूसलाधार बारिश गांव के ऊपर खड़े पहाड़ को दरका रही है। कुछ मकान ध्वस्त हो गए कुछ ध्वस्त किये जा रहे है। घर आंगन और खेतों के पड़ी दरारें गौरा देवी को अपनी माँ मानने वाले ग्रामीणों को चेता रही है कि छोड़ दो अब इस जमीन का  मोह। 60 परिवारों के करीब 350 लोगों में से करीब 100 लोग कहीं नहीं जा पा रहे हैं।  पूछ रहे हैं कि हम जाएं तो जाएं कहाँ?

गांव के प्रधान भवान सिंह भी कुछ कह पाने की स्थित में नहीं। बता रहे हैं कि कुछ दिन से मौसम खराब होने पर लोग ऊपर पहाड़ चढ़ कर उडयारों (गुफाओं) में शरण ले रहे थे लेकिन अब तो वहां भी पहाड़ धंसने लगे। जिनके बच्चे बाहर मैदानी शहरों में नौकरी करते हैं और जिनके दूसरे कस्बो- शहरों में घर हैं, वे तो चले गए। बाकी अपने ढोर डंगर लेकर कहाँ जाएं। प्रशासन को विस्थापन की अर्जी दी हुई है पता नहीं कब सर्वे होगा। कब जमीन मिलेगी?

चमोली की जिलाधिकारी स्वाति एस भदौरिया से शनिवार सुबह बात हुई। वह तो सारा ठीकरा गांव वालों के सिर फोड़ दे रही हैं। उनका कहना है गांव वालों को कहा था तपोवन शिफ्ट हो जाएं तो वे कह रहे हैं हमारे जानवरों का क्या होगा? उन्हें प्राइमरी स्कूल में रहने को कहा गया जा नहीं रहे। जब उनसे पूछा कि गांव की संवेदनशीलता का क्या स्तर है कहीं पूरा गांव तो नहीं दरक जाएगा कि तो उनका जवाब था - मैं कोई जियोलॉजिस्ट नहीं हूं। देहरादून से जियोलॉजिस्ट भेजने को कहा है।

जिस स्कूल के बारे में जिलाधिकारी कह रही हैं वहां कल रात भी कुछ लोगों ने शरण ली। प्रधान भवान सिंह राणा बता रहे हैं कि स्कूल भी सुरक्षित नहीं। दरारें वहां तक पड़ गई हैं। क्षेत्रीय विधायक महेंद्र भट्ट गौरा देवी का स्मारक और कुछ घर गिराने में साथ ही गांव के बीच से सड़क निकालने के लिए गांव वालों को राजी कर चले गए। कल और आज कोई जिम्मेदार अधिकारी मौके पर नहीं पहुंचा। बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन के लोग डटे हैं । उन्हें बारिश सड़क का काम नहीं करने दे रही। इस बीच ऋषिगंगा का उफान और कटान जारी है। पुरानी सड़क गांव के नीचे तो साफ हो चुकी कुछ और स्थानों पर भी दरक रही है। जाहिर है इस नई सड़क के लिए भी नए सिरे से काम करना होगा। सेना द्वारा बनाया गया बेली पुल भी गिरने ही वाला है।

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इन परिस्थितियों में अहम सवाल यही कि गौरा के गाँव वाले कहाँ जाएंगे। अगर वह अपने साथ अपने जानवरों को भी सुरक्षित बचाने की बात कह रहे हैं तो क्या ये गलत बात है? क्या गांव वालों पर ही दोषारोपण कर प्रशासन किसी बड़े हादसे का इंतज़ार कर रहा है। प्रदेश की राजधानी में बैठे हुक्मरान तक गांव वालों की पीड़ा क्यों नहीं पहुंच पा रही है? क्या जब सब तबाह हो जाता है उसके बाद शव उठाने के लिए एसडीआरएफ भेजना ही सरकार का दायित्व है? 7 फरवरी का हादसा लोग इतनी जल्दी भूल गए?  क्या यह शासन और प्रशासन की आपराधिक उपेक्षा यानी क्रिमिनल नेगलिजेंस का मामला नहीं लग रहा? मौत के मुंह में खड़ी प्रजा को अपने हाल पर छोड़ देना क्या सुशासन है?

गौरा देवी की मूर्ति उखाड़ कर जोशीमठ में रख दी गई है। जिलाधिकारी बता रही हैं कि गांव वाले रखने को तैयार नहीं थे इसलिए विधिवत पूजन के बाद उसे प्रशासन ने अपने पास रखा है। बाद में उनके नाम से बड़ा स्मारक और उपवन बनाने की योजना है। हो सकता है इसका डीपीआर बनाने का भी आदेश हो गया हो लेकिन ये उपवन बनेगा कहाँ? गांव बचेगा तब ना।

मूर्ति की पूजा कर देने भर से उन गांव वालों की भावनाओं को तुष्ट कर दिया क्या जो इसका पिलर तोड़ते वक्त बिलख रहे थे? क्या मूर्ति को सुरक्षित रखने भर से गांव सुरक्षित हो गया?जिलाधिकारी एक बार तहसीलदार के साथ गांव जा चुकी हैं।जिस तरह वह गांव के स्कूल में ही इस समय लोगों को शिफ्ट करने की बात कर रही हैं और उसे सेफ प्लेस बता रही हैं उससे लगता है कि ताज़ा हालात की ठीक ठीक जानकारी उनके पास नहीं है।

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टिहरी डूबने जैसे मंजर याद आ रहे हैं। धीरे धीरे रैणी गांव धसकते हुए दो तरफ से घेरे ऋषिगंगा की तरफ सरक रहा है। कुंदन सिंह और संग्राम सिंह ने ऋषिगंगा परियोजना के निर्माण के वक्त हुए  धमाकों से घबरा कर जो आशंकाएं व्यक्त की थी और जिन चिंताओं को लेकर उन्होंने कुछ पर्यावरणविदों की मदद से हाई कोर्ट और सुप्रीमकोर्ट तक लड़ाई लड़ी थी, वे सच हो रहीं हैं। काश  पर्यावरण मंत्रालय फर्जी रिपोर्ट बनाने की बजाय इनकी सुन लेता तो सैकड़ों करोड़ का ऋषिगंगा प्रोजेक्ट नेस्तनाबूद नहीं होता, तपोवन प्रोजेक्ट दूसरी बार न तबाह होता और जो कई सौ जानें गई वो भी बच जाती। 

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