नागरिकों की ठुड्डी पर झूलते मास्क और हवा में लटकी सरकार, कुछ ऐसी है दूसरी लहर से जीतने की कहानी

Covid 19नागरिकों की ठुड्डी पर झूलते मास्क और हवा में लटकी सरकार, कुछ ऐसी है दूसरी लहर से जीतने की कहानी

हिमांशु जोशी

हिमांशु जोशी पत्रकारिता शोध छात्र हैं और स्वतंत्र पत्रकारिता करते हैं।

कोरोना महामारी की पहली वेव में भारतीय हवा में लाठियां भांज रहे थे और दूसरी वेव में 'अश्वथामा' की मिथकीय कहानी की तरह खुद को अजर-अमर मानकर निश्चिंत पड़े रहे। संक्रमित होने के डर संग अपनों की मौत का पल-पल डर, प्लाज्मा और रेमडेसिवर के लिए सोशल मीडिया पर भीख मांगते कोरोना संक्रमित मरीज़ के परिजन, ब्लैक फंगस जैसी खतरनाक महामारी से जूझते मरीज़ की हृदय विचलित कर देने वाली धुंधली तस्वीरें, कुछ दिनों पहले हमारी यही ज़िंदगी थी।

जनता का ध्यान इस मौत के तांडव हटाने के लिए समय-समय पर हिन्दू-मुस्लिम, भारत-पाकिस्तान-चीन, पेट्रोल-डीज़ल दामों की घुट्टी पिला दी जाती है और इनका जल्द असर भी दिखता है। जनता को यह याद नही रहता कि प्लाज़्मा, ऑक्सीजन कन्संट्रेटर जरूरतमंदों तक पहुंचाने के लिए कल तक राम-रहीम साथ थे। यह भारत की मौजूदा राजनीति की सफलता है और बतौर देश, बतौर सभ्य समाज हम सबकी सामूहिक असफलता। हम अपने मतलबी राजनीतिज्ञों के बहकावे में उलझा हुआ समाज नजर आते हैं, जिसकी खुद की सामूहिक चेतना नगण्य ही है।

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2021, कुम्भ, कोरोना और उत्तराखंड
उत्तराखंड के वर्तमान हालातों पर 'समुदायों के लिए सामाजिक विकास' संस्था के अनूप नौटियाल कहते हैं- 'जब टेस्ट कम हो जाते हैं, तो समाज को संदेश जाता है कि कोविड कम या खत्म हो गया है। इसका सीधा असर जन मानस के कोविड व्यवहार पर पड़ता और दिखता है। उत्तराखंड सरकार को अगले छह-सात महीने के लिये कोविड को लेकर सुपर अलर्ट और सुपर ऐक्टिव मोड मे रहने की नितांत आवश्यकता है।' उनकी इस बात में सच्चाई का वो पुट दिखता है, जिसे सरकार ने झुठला कर किनारे फेंक दिया है। उत्सव, भीड़ भरे राजनीतिक कार्यक्रम और अगले साल होने वाले चुनावों की सरकार को ज्यादा फिक्र नजर आती है।

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साल की शुरुआत में ही उत्तराखंड की भाजपा सरकार के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कुम्भ आने वालों को साथ में आरटीपीसीआर निगेटिव रिपोर्ट लाना अनिवार्य किया था, पर बीच में ही उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी और राज्य के नए मुखिया तीरथ सिंह रावत ने सत्ता संभालते ही इस पाबंदी को हटा दिया।

बाद में हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर विचार करते हुए निगेटिव रिपोर्ट लाना फिर से अनिवार्य किया था। अब एक नई ख़बर ने सबके होश फाख्ता कर दिये हैं। इस नई खबर के मुताबिक कुम्भ के दौरान प्रदेश में देश का सबसे बड़ा कोविड घोटाला हुआ। पंजाब निवासी एक शख्स ने कभी कोरोना जांच न कराने के बावजूद अपने फोन पर कोरोना जांच का लिंक मिलने पर उसकी पड़ताल करी और इसके पीछे हरियाणा की एक एजेंसी का नाम सामने आया। घोटाला क्यों किया जाता है, सबको पता है पर हाईकोर्ट की नाक के नीचे इतनी बड़ी धांधली घोटालेबाज़ों के बढ़े हुए हौसले को दिखलाती है। प्रारंभिक जांच में पता चला है कि कुंभ में एक लाख से अधिक आरटीपीसीआर रिपोर्ट फर्जी थी। ये उस वक्त हो रहा था, जब देश में मौतों का अंबार लगा हुआ था। कुंभ के दौरान एक वरिष्ठ पुलिसकर्मी ने कहा भी था कि कुंभ में आने वाली भीड़ का परीक्षण करना नामुमकिन है।

'मैं तो तब था ही नहीं'

इस घोटाले के सामने आने के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कहा- 'मैंने मार्च में पदभार संभाला था। यह प्रकरण मेरे से पहले का है। मामला संज्ञान में आते ही मैंने जांच के आदेश दिए है। जिससे कि दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए। दोषियों के खिलाफ सख्‍त कार्रवाई की जाएगी।' अब जाहिर है ऐसी टिप्पणी आने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी कहां चुप बैठते। तीरथ सिंह रावत की यह टिप्पणी सीधे-सीधे पूर्व मुख्यमंत्री की कार्यशैली पर उंगली उठाने वाली ही साबित हो रही थी। तीरथ की टिप्पणी पर त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा- 'यह एक गंभीर प्रकरण है। इस मामले में मानव जीवन के साथ खिलवाड़ किया गया है। एसआईटी की जांच बैठाना एक शानदार फैसला है। आरोपियों को सख्त सजा मिलनी चाहिए।' राजनेताओ ने टिप्पणियां कर इतिश्री कर ली, लेकिन सवाल जस का तस बना हुआ है।

कोरोना संक्रमण के रोकथाम के लिए सामने आई हाईकोर्ट 
कोरोना की रोकथाम के लिए हाईकोर्ट में याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान उत्तराखंड के सचिव स्वास्थ्य अमित नेगी ने कोर्ट को बताया कि प्रदेश में रेमडेसिवर पर्याप्त मात्रा में हैं और राज्य को इसकी 1,73,000 शीशियां केंद्र से मिली हैं। कोर्ट ने अमित नेगी से कोरोना के 'डेल्टा म्यूटेंट' के लिए सरकार द्वारा बनाई गई रणनीति की जानकारी मांगी, साथ ही उनसे तीसरी लहर में बच्चों पर पड़ने वाले असर को रोकने के लिए बनाई रणनीति बताने के लिए भी कहा है।

नवनीश नेगी ने अपनी याचिका में कोर्ट का ध्यान पौढ़ी गढ़वाल जिले की ओर खींचा और नोडल ऑफिसर द्वारा प्राप्त हुए जिले के विभिन्न अस्पतालों के आंकड़े दिए गए। इन आंकड़ों के अनुसार जिला अस्पतालों के कोविड हेल्थ सेंटरों में दस वेंटिलेटर हैं, उनमें कोई भी एक्टिव मोड में नही है। आंकड़ों से पता चलता है कि जिले के अस्पतालों में आईसीयू के केवल चार बेड हैं।

नवनीश नेगी द्वारा बताया गया कि सरकार द्वारा जारी आंकड़ों में भी अंतर्विरोध है, इसके लिए उन्होंने कोटद्वार का उदाहरण देते हुए बताया कि नोडल अधिकारी के अनुसार कोविड हेल्थ सेंटर में एक भी आईसीयू बेड नही है और सरकार द्वारा जारी स्टेट बुलेटिन में उसी अस्पताल में छह आईसीयू बेड दिखाए जा रहे हैं। नवनीश नेगी द्वारा कोर्ट को बताया गया कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पौढ़ी गढ़वाल में पानी की सप्लाई नहीं है, जबकि यह केंद्र तैंतीस गांवों की जरूरत है।

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नहीं बनाई गई टास्क फोर्स
दुष्यंत मैनाली ने अपनी याचिका में सवाल उठाया कि केन्द्र ने 06 मई को एसओपी जारी कर टीकाकरण पर हर राज्य को 'डिस्ट्रिक्ट टास्क फ़ोर्स' बनाने को कहा था। इस टास्क फोर्स का मकसद था कि जिन लोगों के पास टीकाकरण पंजीकरण के लिए अनिवार्य सात आईडी नही है, उन्हें पहचान कर टीका लगाया जा सके। राज्य ने यह अब तक नही बनाई है, जिससे खानाबदोश, सड़क किनारे रहने वाले बेघर लोग, वृद्धा आश्रम में रहने वाले लोग टीके से लाभान्वित नही हुए हैं।

नागरिकों से ली जाये मदद
अभिजय नेगी ने अपनी याचिका में सवाल उठाए कि कोविड अस्पताल कोरोना रोग से ग्रसित रोगियों के सिवाय अन्य गम्भीर रोगों से ग्रस्त रोगियों का इलाज नही कर रहे हैं, अतः सरकार को निर्देश दिए जाएं कि अन्य गम्भीर रोगों से ग्रस्त रोगियों को भी अच्छे इलाज की सुविधा मिले। अभिजय ने कोर्ट को बताया कि चंडीगढ़ प्रशासन ने कोरोना काल में एक पोर्टल बनाकर नागरिक समाज से मदद ली है, जिसमें लोग स्वयंसेवक के तौर पर अपनी सेवा दे रहे हैं। ऐसा ही पोर्टल उत्तराखंड में भी बने क्योंकि कोरोना की तीसरी लहर में इसकी जरूरत पड़ सकती है।

ईलाज खर्च पर तय हो सीमा
हाईकोर्ट ने इन याचिकाओं पर उत्तराखंड राज्य सरकार को आदेश दिया कि केंद्र के साथ सामंजस्य स्थापित कर लिपोसोमोल जैसे ड्रग्स निरन्तरता के साथ मुफ्त उपलब्ध करवानी चाहिए। कोर्ट ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को निर्देशित करते हुये कहा कि निजी अस्पतालों को कोरोना इलाज़ में खर्च की अंतिम सीमा बतानी होगी। कोई भी अस्पताल तय सीमा से अधिक पैसे नहीं ले सकता। राज्य सरकार को जिला अस्पतालों में आईसीयू और वेंटिलेटर बढ़ाने के आदेश देने के साथ ही 06 मई को केंद्र द्वारा जारी एसओपी के पालन करने के निर्देश भी कोर्ट ने दिये हैं।

इसके अनावा कोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग को काम करने वाले वेंटिलेटर और अन्य जीवन रक्षक उपकरणों का ऑडिट करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही हाईकोर्ट द्वारा सरकार को पंचायत स्तर पर आइसोलेशन केंद्र बनाने, चंडीगढ़ की तर्ज़ पर पोर्टल और कोरोना की जगह अन्य गम्भीर बीमारियों से ग्रस्त मरीज़ों के लिए भी अस्पताल शुरू करने के आदेश दिए गए हैं। अब इनमें से कितने निर्देशों का पालन ईमनदारी से होगा और कितने निर्देशों को सरकार में बैठे हुये बड़े अधिकारी कागजों में ही पूरा कर देंगे, यह देखना दिलचस्प रहेगा।

21 जून तक देनी है मौतों की रिपोर्ट
कोर्ट ने उत्तराखंड के सचिव स्वास्थ्य अमित नेगी को कोरोना से हुई मौतों का ऑडिट कर 21 जून तक रिपोर्ट जमा करने का आदेश दिया। पिछले दिनों बिहार सरकार के ऐसे ही ऑडिट में राज्य में कोरोना वायरस के कारण हुई मौतों में लगभग 73 प्रतिशत वृद्धि हुई है और इन्हें लगभग 5,400 से बढ़ाकर 9,400 कर दिया गया है। ऐसे में उत्तराखंड सरकार यहां कितनी मौतों को जिक्र आधिकारिक तौर पर करेगी, यह भी देखना दिलचस्प होगा।

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बतौर समाज कहां खड़े हैं हम

सरकारों को यदि सर्विस प्रोवाइडर मान लिया जाये और नागरिकों को उपभोक्ता, तब ऐसी दशा में कोरोना के चलते जान गंवाने वाला शख्स यदि अपने परिजन की मौत का कारण सरकार को मानते हुये किसी विकसित मुल्क में सरकार पर मुकदमा ठोक देता, तो हर्जाने के तौर पर ही करोड़ों रुपये देने पड़ जाते। तब सरकारें आर्थिक और नैतिक दोनों ही स्तर पर नंगी खड़ी नजर आती, जहां राजसी ठाठ में दिन गुजारने वाले नेता भागकर दूसरे मुल्कों में शरण ले रहे होते। अफसोस की न तो समाज खुद को इतना आगे बढ़ा सका है, ना हमारा मुल्क अपने नागरिकों के भीतर ही इतनी चेतना विकसित कर सका है कि सामूहिक मौतों के लिये अव्यवस्था को जिम्मेदार मानकर जिम्मेदारों पर मुकदमे लाद दिये जाएं। ...गर एक-आध मुकदमा ठोक भी दिया जाये, तब भारत जैसे मुल्क में जहां अदालते पहले ही ओवरलोड हैं, ऐसे मुकदमों का क्या हश्र होगा, यह भी साफ है।  

सिस्टम, हम और कोरोना 
इस समय उत्तराखंड सरकार राज्य में कोरोना से होने वाली मौतों का ऑडिट करा रही है और इसके लिए एक कमेटी भी गठित हुई है। समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि राज्य में कोरोना से 50 प्रतिशत हुई मौतों में संक्रमितों ने वायरस से संक्रमित होने पर अस्पताल में भर्ती होने में 4-5 दिन की देरी की है। ऐसे अधिकांश मरीजों ने अस्पताल में भर्ती होने के 48 घंटे के अंदर ही दम तोड़ दिया। अमर उजाला की एक ख़बर के अनुसार डेथ ऑडिट के दौरान प्रदेश की राजधानी देहरादून में बहुत से निजी अस्पताल कोरोना के दौरान हुई मौतों का राज खोलने को तैयार नहीं हैं। इस पर नाराजगी जताते हुए जिलाधिकारी डॉ. आशीष कुमार श्रीवास्तव ने ऐसे अस्पतालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। 

बहरहाल, खबरों और सरकारी सख्ती और ढील के बीच ही नागरिकों के मास्क धीरे-धीरे नाक पर लटके नज़र आने लगे हैं और गायब होने के इंतजार में हैं। इस वक्त जरूरत इस बात की है कि लोग अनलॉक होते लॉकडाउन के बीच यह न भूलें कि कोरोना सरकारी आदेशों पर नही चलता। कोरोना की तीसरी लहर में लोग सुरक्षित रहें, इसके लिये जरूरी है कि नागरिक भी अपने लापरवाह रवैये को छोड़ दें।
 

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