आपको वो तस्वीरें याद हैं, जिसमें रक्षामंत्री फ्रांस में राफेल के भारत डिलीवरी से पहले नारियल फोड़कर पूजा करते हुये नजर आये थे! आपको टीवी के वो ग्राफिक्स याद हैं, जिसमें राफेल आने के बाद चीन और पाक्स्तिान थर-थर कांप रहे थे या फिर सस्ती डील को मंहगा बनाने के बावजूद मोदी सरकार को ऐसे पेश किया जा रहा था, जैसे अब सुरक्षा के सारे मसले ही हल कर दिये गये हों! आपको याद ही होंगी, इन्हें इतना प्रचारित जो करवाया गया था, लेकिन मुझे इन तस्वीरों के साथ ही विपक्षी नेताओं के वो बयान भी याद हैं, जिनमें राफेल सौदे में मोटी दलाली के आरोप लगाये जा रहे थे।
ऐसा लग रहा है कि अब राफेल स्कैम मौजूदा केंद्र सरकार के कारनामों में एक और चांद लगाने जा रहा है। असल में भारत और फ्रांस के बीच हुए विवादित राफेल सौदे को लेकर फ्रांस में जांच बिठा दी गई है। पेरिस की वेबसाइट मीडियापार की शुक्रवार को आई एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत को 7.8 बिलियन यूरो (तकरीबन 59 हजार करोड़) में बेचे गए 36 लड़ाकू विमानों के मामले में कथित भ्रष्टाचार और पक्षपात की न्यायिक जांच के लिए एक जज को नियुक्त किया गया है।
वेबसाइट के इनवेस्टिगेटिव रिपोर्टर यान फ़िलिपैं ने खुलासा किया कि 2016 के अंतर-सरकारी सौदे में औपचारिक रूप से ‘अत्यधिक संवेदनशील जांच’ 14 जून को फ्रांसीसी सार्वजनिक अभियोजन सेवा (फ्रेंच पब्लिक प्रॉसिक्यूशन सर्विसेस- पीएनएफ) की वित्तीय अपराध शाखा के एक फैसले के बाद शुरू हुई है। यह जांच सौदे के बारे में मीडियापार द्वारा अप्रैल 2021 में प्रकाशित कई खोजी रिपोर्टों के मद्देनजर शुरू की गई है, जिसमें एक बिचौलिए की भूमिका भी शामिल है, जिसके खुलासे से भारत का प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) कथित तौर पर अवगत है, लेकिन उसने अब तक इसकी जांच करने की जहमत नहीं उठाई है।
वेबसाइट के खुलासे के बाद फ्रांस के भ्रष्टाचार विरोधी एनजीओ शेरपा ने ‘भ्रष्टाचार, ‘प्रभाव का फायदा उठाकर पेडलिंग’, ‘मनी लॉन्ड्रिंग’, ‘पक्षपात’ और सौदे को लेकर अनुचित कर छूट का हवाला देते हुए पेरिस के न्यायाधिकरण में शिकायत दर्ज कराई है। मीडियापार के अनुसार, पीएनएफ ने इस बात की पुष्टि की है कि इन चारों अपराधों को केंद्र में रखकर जांच की जाएगी। बता दें कि पीएनएफ का औपचारिक जांच की मांग करना उसके साल 2019 में लिए गए निर्णय से पलटना है। उस समय इसकी प्रमुख एलियान ऊलेट ने अपने एक कर्मचारी की सलाह के खिलाफ जाते हुए बिना किसी जांच के शेरपा की प्राथमिक शिकायत को ख़ारिज कर दिया था। अपने फैसले को सही ठहराते हुए उन्होंने कहा था कि ऐसा ‘फ्रांस के हितों की रक्षा’ के लिए किया गया।
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फ़िलिपैं लिखते हैं, ‘अब दो साल बाद पीएनएफ के वर्तमान प्रमुख ज़ौं-फ्रांस्वा बोनैर ने शेरपा की शिकायत में मीडियापार की हालिया इनवेस्टिगेटिव शृंखला जोड़े जाने के बाद जांच करवाने का समर्थन किया।’ अन्य पहलुओं के अलावा इस आपराधिक जांच में पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद, जो रफाल सौदे के समय पद पर थे, वर्तमान राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों जो तब ओलांद के अर्थ व वित्त मंत्री थे, के साथ-साथ तत्कालीन रक्षा मंत्री ज़ौं-ईव ल द्रीयां (जो अब मैक्रों के विदेश मंत्री हैं) के निर्णयों पर उठे सवालों को लेकर भी जांच की जाएगी। जांच का नेतृत्व एक स्वतंत्र मजिस्ट्रेट- एक जांच न्यायाधीश द्वारा किया जाएगा। जांच के नतीजे भारत की राजनीति को गरमा सकते हैं। यह जांच उस वक्त बैठी है, जब पहले ही भारत सरकार कई मोर्चों पर विपक्ष के निशाने पर है।
French Public Prosecutor orders investigation into #Rafaledeal
— Randeep Singh Surjewala (@rssurjewala) July 3, 2021
Our TV Channels go ‘mum’ on #Rafale
फ़्रान्स के पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ने राफ़ेल सौदे में भ्रष्टाचार की जाँच शुरू की।
और हमारे देश के TV चैनलों ने ‘पूर्ण चुप्पी’ साध ली।
मीडियापार को दिए बयान में शेरपा के संस्थापक और वकील विलियम बोर्डन और वैंसैं ब्रेनगार ने कहा कि जांच की शुरुआत जरूरी तौर पर सच्चाई को सामने लाएगी और उन लोगों की पहचान करेगी, जो सरकारी घोटाले के तौर पर सामने आ रहे इस मामले के जिम्मेदार हैं। दासो एविएशन द्वारा हालिया कदमों पर प्रतिक्रिया नहीं दी गई है, लेकिन कंपनी इससे पहले लगातार किसी भी गलत काम को करने की बात से इनकार करते हुए कहती रही है कि वह ‘ओईसीडी रिश्वत-विरोधी कन्वेंशन और राष्ट्रीय कानूनों का सख्ती से अनुपालन करती रही है।’
सवालों के घेरे में अनिल अंबानी की भूमिका
अनिल अंबानी के रिलायंस समूह, जो 36 रफाल विमानों के सौदे में दासो का भारतीय भागीदार है, द्वारा निभाई गई केंद्रीय भूमिका को देखते हुए आपराधिक जांच में दोनों कंपनियों के बीच सहयोग की प्रकृति की भी जांच की संभावना है। भारत और दासो आधिकारिक तौर पर 126 रफाल जेट की खरीद और निर्माण के लिए शर्तों पर तब तक बातचीत कर रहे थे, जब तक 10 अप्रैल 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 36 लड़ाकू विमानों की एकमुश्त खरीद के सार्वजनिक ऐलान में पिछले सौदे को रद्द करते हुए नए सौदे से बदला नहीं दिया गया। उस समय भारत के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर अंत तक मोदी के फैसले से अनजान थे, लेकिन अब ऐसा लगता है कि अनिल अंबानी को इसका अंदाज़ा था। मीडियापार ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दासो और रिलायंस के बीच पहला मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) असल में 26 मार्च 2015 को हुआ था।
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वेबसाइट की रिपोर्ट कहती है- 'मीडियापार द्वारा देखे गए दस्तावेज दिखाते हैं कि दासो और रिलायंस के बीच पहला एमओयू 26 मार्च 2015 को साइन हुआ था। यह मोदी के सौदे में बदलाव की घोषणा और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के बाहर होने से पंद्रह दिन पहले की बात है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या दोनों कंपनियों को पहले से इस बारे में जानकारी दी गई थी।'
इस एमओयू में दोनों कंपनियों के बीच ‘प्रोग्राम और प्रोजेक्ट मैनेजमेंट’, ‘अनुसंधान और विकास’, ‘डिजाइन और इंजीनियरिंग’, ‘असेंबल करना और और निर्माण’, ‘रखरखाव’ और ‘प्रशिक्षण’ को शामिल करने के लिए ‘संभावित संयुक्त उद्यम’ की अनुमति दी गई थी। हालांकि दासो अब भी 126 रफाल के मूल अनुबंध के कार्यान्वयन के लिए एचएएल के साथ बातचीत कर रहा था, लेकिन नए एमओयू में एचएएल के साथ किसी भी जुड़ाव या भागीदारी के बारे में कोई बात नहीं कही गई थी।
मीडियापार ने दासो एविएशन और अनिल अंबानी की रिलायंस के बीच हुए पार्टनरशिप के अनुबंध, जिसके तहत 2017 में नागपुर के पास एक औद्योगिक संयंत्र के निर्माण के लिए दासो रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड (डीआरएएल) नामक एक संयुक्त उद्यम कंपनी बनाई थी, के बारे में भी नई जानकारियों का खुलासा किया है। फ्रांसीसी वेबसाइट के द्वारा प्राप्त गोपनीय दस्तावेज दिखाते हैं कि दासो को राजनीतिक कारणों के इतर रिलायंस के साथ किसी भी तरह की साझेदारी करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी और रिलायंस से इनकी मुख्य उम्मीद ‘भारत सरकार के साथ कार्यक्रमों और सेवाओं की मार्केटिंग भर थी।’
दस्तावेजों से मालूम चलता है कि दासो ने रिलायंस के साथ हुए सौदे के अपने संयुक्त उद्यम के लिए काफी उदार वित्तीय शर्तें रखी थीं। सामान्य तौर पर, संयुक्त स्वामित्व वाली सब्सिडरी में भागीदार समान धनराशि देते हैं, लेकिन डीआरएएल के साथ ऐसा नहीं था। दोनों भागीदारों में इस सब्सिडरी में 169 मिलियन यूरो के अधिकतम निवेश पर सहमति बनी थी। इसमें से दासो, जिसका डीआरएएल में 49 फीसदी हिस्सा है, ने 150 मिलियन यूरो देने की बात कही थी, जो कुल राशि का 94 फीसदी है, जबकि रिलायंस को बचे हुए दस मिलियन यूरो देने थे। इसका सामान्य सा अर्थ यह है कि रिलायंस को अपेक्षाकृत बहुत मामूली रकम के बदले में संयुक्त उद्यम में 51 फीसदी हिस्सेदारी दी गई थी।
चोर की दाढ़ी…#RafaleScam
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) July 3, 2021
इस डील में रिलायंस न तो धन लाया और न ही संयुक्त उद्यम के लिए कोई महत्वपूर्ण जानकारी, इसने जो दिया वो था राजनीतिक प्रभाव। मीडियापार को मिले रिलायंस और दासो के बीच हुए करार संबंधी दस्तावेज बताते हैं कि अनिल अंबानी समूह को ‘भारत सरकार के कार्यक्रमों और सेवाओं की मार्केटिंग’ का जिम्मा सौंपा गया था।’ दासो और रिलायंस के बीच सौदे की शर्तों के बारे में नवीनतम खुलासों से वे सवाल फिर से उठेंगे, जो फ्रांस्वा ओलांद के 2018 के एक साक्षात्कार के बाद उठे थे, जिसमें उन्होंने कहा था कि दासो के भागीदार के रूप में रिलायंस का चयन भारत सरकार द्वारा प्रेरित था और फ्रांस के पास कोई विकल्प नहीं था।
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गौरतलब है कि मोदी सरकार, रिलायंस और दासो ने ओलांद की कही बातों को अस्वीकार किया था, लेकिन फ्रांस सरकार ने औपचारिक रूप से पूर्व राष्ट्रपति द्वारा कही गईं बातों का खंडन नहीं किया था। ओलांद के बयान के बाद वे आरोप भी सामने आए थे, जहां कहा गया था कि रिलायंस समूह की एक कंपनी, रिलायंस एंटरटेनमेंट ने जनवरी 2016 में तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद की साथी और अभिनेत्री जूली गायेट द्वारा सह-निर्मित एक फीचर फिल्म के लिए 1.6 मिलियन यूरो दिए थे।
दिलचस्प बात है कि दासो और रिलायंस ने लड़ाकू जेट विमान के निर्माण में भी हिस्सा लेने की सोची, जिसका प्रभार एचएएल के पास था. दोनों कंपनियों ने एचएएल द्वारा निर्मित ‘लाइट कॉम्बेट एयरक्राफ्ट’ (एलसीए) विमानों के भावी वर्जन की ‘डिजाइन कंसल्टेंसी’ उपलब्ध कराने की योजना बनाई थी।
‘दासो की ओर से रिलायंस को मिले फंड्स’
36 रफाल विमानों की बिक्री को अंतिम रूप देने वाले अंतर-सरकारी समझौते पर सितंबर 2016 में हस्ताक्षर हुए थे। इसके दो महीने बाद 28 नवंबर 2016 को दासो और रिलायंस ने एक शेयरधारक समझौता किया, जिसके जरिये भविष्य की संयुक्त उपक्रम कंपनी को लेकर उनके संबंधों का खाका खींचा गया।
मीडियापार की रिपोर्ट में कहा गया है कि इसका वित्तीय ब्योरा इतना संवेदनशील है कि कॉन्ट्रैक्ट में इसका कहीं जिक्र तक नहीं है. इसके बजाय एक गोपनीय साइड लेटर में इसकी जानकारी थी, जिस पर उसी दिन हस्ताक्षर हुए थे। ‘यह वह साइड लेटर है, जिसमें दासो द्वारा रिलायंस को उपहार में दी गई धनराशि शामिल है।’
रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग समान भागीदारों के रूप में दोनों कंपनियों ने संयुक्त उपक्रम की पूंजी के लिए एक करोड़ यूरो उपलब्ध कराने की प्रतिबद्धता जताई थी। इस समय तक सब व्यापार के नियमों के मुताबिक ही हुआ था, लेकिन दासो ने शेयर प्रीमियम देने का भी वादा किया, जो दरअसल शेयरों की कीमत पर एक पूरक राशि होती है। यह प्रीमियम अधिकतम 43 मिलियन यूरो का है, साथ में कर्ज का विस्तृत ब्योरा भी है, जिसमें कहा गया है कि 106 मिलियत यूरो से अधिक नहीं।
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बहरहाल इस खबर के सामने आने के बाद ही भारत की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने राफेल डील की जांच की मांग एक बार फिर से दोहराई है। कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने कहा है कि राफेल डील की जांच संयुक्त संसदीय समिति से करवाई जानी चाहिये। इस मामले को लेकर भारत में आगे राजनीतिक पारा चढ़ने की पूरी संभावनाएं बन गई है। मामले में जैसे—जैसे जांच आगे बढ़ती है, मोदी सरकार के सामने कई सवाल खड़े हो सकते हैं।
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