दूसरे विश्व युद्ध के अंत से पहले ही हिटलर ने आत्महत्या करके खुद को फ़ासीवादी अपराधों की सजा से बरी कर लिया था. लेकिन, वैश्विक जनगण इतने से ही संतुष्ट नहीं हुआ. उसके बचे खुचे सह-अपराधियों को सज़ा देने के लिये न्यूरेमबर्ग, जर्मनी में एक अदालत बैठायी गई, जहां उनके अपराधों का आखिरी हिसाब किया गया.
इस मुकदमों का दिलचस्प आंखों देखा हाल यूक्रेनी लेखक और पत्रकार यारोस्लाव हलान ने अपनी कई किताबों में किया है. एक प्रमुख किताब है, ‘न्यूरेमबर्ग मुकदमा-एक रिपोर्ट’. किताब के अंत में हलान कहते हैं कि आज जबकि फ़ासीवाद एक बार फिर से अलग-अलग देशों में अपनी कब्र से निकल कर फुंफकार रहा है, ऐसे में फिर से दुनिया को सावधान रहना होगा. हलान कहते हैं, फ़ासीवाद की काली ताक़तें, जिन्होंने एक समय मुसोलिनी और हिटलर को पैदा किया था, अब भी ज़िंदा और सक्रिय है. वो आने वाले समय में लोकतंत्र के रूप में भी विभिन्न देशों में स्थापित हो सकती हैं.
मैं यारोस्लाव हलान की ‘न्यूरेमबर्ग मुकदमा-एक रिपोर्ट’ के शुरूआती तीन मामलों का नीचे संक्षिप्त विवरण दे रहा हूं. उससे एक अंदाज़ा लगाया जा सकता है, कि फ़ासीवाद का चरित्र कैसा हो सकता है.
केस-1
जर्मनी ही नहीं, पॉलैंड, इटली और यूक्रेन में भी आतंक छाया हुआ था. हर तरफ खून के फ़व्वारे फूट रहे थे. पॉलैंड, जर्मनी और ईटली में हिटलरवादियों ने खाकी यूनिफार्म पहन ली थी. इन खाकीधारियों में अधिकांश बेरोजगार और कम पढ़े लिखे लोग थे. ये लोग देश के सभी बुद्धीजीवियों को मौत के घाट उतारना चाहते थे. उनका मानना था कि पढ़े लिखे ही ज्यादा आतंकी है. क्योंकि पढ़े लिखे ही वैज्ञानिक बनते हैं और वो ही क़िताबें भी लिखते हैं. इन ही किताबों का असर मजदूरों और किसानों पर होता है और फिर ये वर्ग हिटलरवाद से दूर हो जाते हैं.
न्यूरेमबर्ग मुकदमों की अपनी एक रिपोर्ट में यारोस्लाव हलान आगे बताते हैं, 1923 में वियना विश्वविद्यालय में मेरा फ़ासीवाद से पहला परिचय हुआ. हम पुस्तकालय में बैठे हुये थे. तभी गुंडों का एक गिरोह लाठियां बांधे खाकी कपड़ों में और सिर पर काली टोपी लगाये हुए वाचनालय में घुस आया. लाठियां उनका परिचय दे रही थी. वे हिटलर के प्रथम ऑस्ट्रियाई समर्थक के चिन्ह, प्रतीक, आभूषण और हथियार थे. ये सभी युवा थे.
गिरोह का सरगना, एक लंबा, लाल बालों वाला व्यक्ति एक नुक़ीला हथियार लिये हुये पूरी ताक़त से लगातार बनावटी आवाज में चिल्लाता है- ‘सभी यहूदी बाहर चले जायें’. चंद मिनटों में पुस्तकालय खाली हो गया. अपने विवि के प्रति ऐसे विधर्मी अत्याचार के विरोध के प्रतिरोध में, लगभग सभी उपस्थित जन बाहर चले गये.
इन उन्मादी युवकों ने ऐसी घटना की आशा नहीं की थी. उनमें से एक ने ज़ोर से नारा लगाया ‘पूरा यूरोप नाज़ीवाद’. उसके बाद कई दर्जन लाठियां हवा में सरसरा उठीं, पागल गुंडों ने किसी को नहीं छोड़ा. तक़रीबन 55 छात्र मारे गये. ये पहली ऑस्ट्रियाई मॉब लिंचिंग थी. इसमें 32 यहूदी मरे और बाक़ी नाज़ी. सरकार ने इस मॉब लिचिंग को जायज ठहराया. विभिन्न मंचों पर राष्ट्रवादियों ने इन युवकों को प्रशस्ति पत्र दिये.
केस- 2
जब अंतर्राष्ट्रीय सैनिक ट्रिब्यूनल के अभियोजक ने उसे लाखों लोगों का हत्यारा बताया, ‘डेर स्टर्मर’ अख़बार के संपादक स्ट्रीचर ने अचरज के साथ अपने कंधे बिचकाये. उसने स्वयं किसी एक भी यहूदी की हत्या नहीं की थी. स्ट्रीचर को हैरत हुई और क्रोध भी आया. उसने उग्र रूप से होठ चबाये. असल में, पिछले बीस सालों में उसने केवल एक ही काम किया था और वो था लिखना और प्रकाशित करना. एक साल के लिये, फिर दूसरे साल के लिये, दस साल के लिये, बीस साल के लिये. एक विक्षिप्त हठधर्मिता के साथ वह एक ही विषय पर धमाचौकड़ी मचाया करता था, वो था, ‘यहूदीवाद का विरोध’.
स्ट्रीचर की ऐसी गतिविधियां हिटलर का ध्यान आकर्षित करने से रोक नहीं सकी, जो बिल्कुल दुरुस्त था, जब उसने स्ट्रीचर को अपना उस्ताद मान लिया. 1935 में जूलियस स्ट्रीचर के जन्म दिवस पर, हिटलर, व्यक्तिगत रूप से अपने उस्ताद जूलियस स्ट्रीचर के दीर्घ जीवन और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करने और राष्ट्रीय समाजवादी जर्मनी के लाभ के लिये उसके अथक कार्य के प्रति धन्यवाद देने के लिये न्यूरेमबर्ग आया.
कई घंटे व्यतीत हो गये और इंटरनेशनल ट्रीब्यूनल में स्ट्रीचर का अभियोजक चालू रहा. स्ट्रीचर के लेखों से अधिकाधिक उदाहरण प्रस्तुत किये गये. अदालत ने तमाम उदाहरण देखकर सिर पकड़ लिया. उसने हिटलर की नाकामी छुपाने के लिये अश्लील लेख तक लिखे थे. उसके लेखों की प्रतिलिपि कोर्ट में पेश की गई, जो उसने लड़कियों के लिये तैयार की थी. कोर्ट ने पढ़कर इतना ही कहा , ‘जर्मनी कितना नीचे गिर गया था?’
केस- 3
वाहीमिया और मोराविया के रक्षक और जल्लदा हाइड्रिच को तात्कालिक रूप से बर्लिन बुलाया गया. उसकी कार सुनसान नगरों गांवों से होकर भागती जा रही थी. यदा कदा गुज़रने वाले पैदल यात्री मौत के काले अग्रदूत की ओर विषादपूर्ण ढंग से देखते थे.
हिटलर हाईड्रिच के राष्ट्रवाद को ख़ूब पसंद करता था. इसलिये उसने उसे सभी यांत्रणा शिविरों का इंचार्ज बनाया. इंचार्ज बनने से पूर्व हाइड्रिच किसी समय एक फौजी अफ़सर रह चुका था. लेकिन वह चोरी करते हुये रंगे हाथों पकड़ा गया था, जिसके बाद उसे सेना छोड़ने के लिए बाध्य कर दिया गया था. सेना छोड़ने के बाद वो राष्ट्रवादी हो गया. जिससे हिटलर प्रभावित हुआ और उसे यांत्रणा शिविरों का इंचार्ज बनाया गया. अपनी मौत से पहले हाईड्रिच एक लाख से ज्यादा यहूदियों को विभिन्न तरीकों से मार चुका था.
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