उमेश तिवारी व्यंग्यकार, रंगकर्मी और मान्यताप्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं। अपनी शर्तों पर जीने के ख़तरे उठाते हुए उन्होंने रंगकर्म, पत्रकारिता, लेखन, अध्यापन, राजनीति से होकर गुज़रती ज़िंदगी के रोमांच को जिया है। रंगकर्म के लेखे-जोखे पर 2019 में 'थिएटर इन नैनीताल' नाम से किताब छप चुकी है।
आपकी पूर्व करोना काल की कुछ यादें ताज़ा करूँ; जब आपके दैनिक जीवन में मज़दूर नाम की कोई चिड़िया नहीं हुआ करती थी। होती होगी कहीं, ऊंचे-ऊंचे टावरों के बेसमेंट या तेरहवें माले के अनफिनिश्ड अपार्टमेंट में, मॉल के आसपास की झुग्गी-झोपड़ियों में या फिर किसी फलाईओवर के नीचे बसते रहे होंगे उनके परिवार। मतलब कि तब वह कम ही दिखाई पड़ता था। गुपचुप तरीक़े से बिल्डिंग बनाता और फिर एक दिन सपरिवार अंतर्ध्यान हो जाता। ड्राइंग-डाइनिंग, मास्टर बेडरूम, मॉड्यूलर किचन में बिखरा अपना सामान कुछ गठरियों में समेटे वो ऑटो में बैठकर सपरिवार वंडरलैंड चला जाता। उड़ते ऑटो से उसके बच्चे शेष दुनिया को हाथ हिलाते। लाल बत्ती पर तैनात पुलिस अंकल की सीटी पर मुग्ध होकर बेटा सीटी ख़रीदने की ज़िद करता।
दूसरी चीज़ों की तरह अंग्रेजी में भी मज़दूर का हाथ तंग रहा है। तथापि, ठगी के त्रिस्तरीय व्यूह में जेबें कटवा कर वह मोबाइल, नेटवर्क, टॉकटाइम, रिचार्ज आदि जैसे शब्द सीख गया है। सच तो ये है उसे 'लॉक-डाउन' का भी मतलब मालूम नहीं था। तालाबंदी बोलते तो शायद नोटबंदी जैसा कुछ समझ कर चौकन्ना हो जाता।
..अभी भारी प्रीमियम देकर उसने लॉकडाउन, क्वारेन्टीन, डिस्टेंसिंग और रजिस्ट्रेशन आदि की प्रमेय समझी ही है। सेवा-कम-शिक्षा केन्द्रों से एकलव्य अंगूठा कटा कर लौट आया है। चेहरे पर मास्क लगाए गुरुओं की भावनाएं पढ़ नहीं पाया, मास्क का फ़ायदा तब भी समझ नहीं आया। बच्चा-मज़दूर पुलिस अंकल के होंठों पर अपनी सीटी खोजता है। वो आज मास्क लगाये हुए, मुँह से गाली और हाथों से डंडे बरसा रहे हैं, जाने क्यों !
सरकार की देखा-देखी मज़दूर ने भी आपदा को परदेस छोड़ने के अवसर में बदल लिया है। चार्टर्ड रेल, बस आदि सुविधाओं को ठुकरा कर वह ख़ुद की बनाई सड़क पर वॉक करते हुए अपने देस जा रहा है। वहाँ उसके स्वागत हेतु नये सेंटर बनाये गए हैं। पिछले टाइम से विकास छलांग मार कर बॉर्डर पर आ गया है! सेंटर की दीवार पर तिरछा मुस्कुराते मुख्यमंत्री की तस्वीर लगी है।
यहां मज़दूर के बचे-खुचे स्वास्थ्य का परीक्षण होगा। कोरोना निगेटिव निकला तो वह फूल वाला मास्क धारण कर आरोग्य सेतु से आगे बढ़ेगा। यदि कोरोना संक्रमित पाया गया तो बचपन में दुर्लभ रहे सरकारी स्कूल की कोने वाली कक्षा 9 के एक गंदेले से कक्ष में क्वारेन्टीन किया जाएगा। यहीं उसके आयुष्मान होने की पात्रता की भी जांच होगी। बच गया तो टी वी वाले उसका इंटरव्यू लेंगे। वो जानना चाहेंगे कि क्या वह पुनः परदेश जाएगा या यहीं मरेगा!
उधर उसके ख़ून - पसीने आदि से संक्रमित हो गई सड़कें और हाउसिंग सोसायटी की दीवारें सेनेटाइज़ करवाई जाएंगी। नए मज़दूर लोकली निर्मित पीपीई ओढ़ कर यह काम करेंगे। इनके ठेकेदार इतिहास में कोरोना वारियर्स की तरह दर्ज़ होंगे।
इस बीच सरकार, परंपरा के अनुरूप राहत वग़ैरा का पैकेज लाई है। इसका टीवी पर ख़ूब प्रचार है। स्कूली बच्चों के निठल्ले बैठे मम्मी.पापा टी वी देखते हुए पैकेज में अपना हिस्सा खोज रहे हैं। इस चक्कर में बच्चों ने वो तस्वीरें देख ली हैं, जिनमें मज़दूर पापा अपने कंधे पर और मम्मी लगेज पर बच्चों को जॉय.राइड दे रहे हैं। अंकल.आंटी से इम्प्रेस होकर बिल्डिंग के बच्चे मम्मी-पापा से तरह-तरह के क्वेश्चन कर रहे हैं। जरा इन सवालों पर निगाहें डालिये...
- ‘मम्मा हू इज दिस मजबूर अंकल’
- ‘मजबूर नहीं बेटा, मज़..दूर, मज़दूर वर्कर यू नो !’
- ‘ओके’ उनके बच्चे स्कूल नहीं जाने पड़ते क्या’
- ‘दे गो टु नाइट स्कूल’ सो यू डोंट गेट टु सी देम’
- ‘दैन... वो सोते कब हैं मम्मा’
- ‘डे टाइम बब्बा, नाउ ब्रश एंड चेंज, इट्स बेड टाइम ना !’
- ‘डू दे अल्सो ब्रश बिफोर गोइंग टु बेड, डे टाइम’
- ‘ओह कमऑन, गुड़ हैबिट्स आर फ़ॉर आल’
- ‘मम्मा मुझे पापा के शोल्डर पर बैठना है....’
- ‘ओके, वी विल डू इट ऑन संडे...’
- ‘गिव मी अ राइड ऑन लगेज ट्रॉली प्लीज़ मोम, आई वुड प्रीटेंड स्लीपिंग, यू जस्ट पुल इट अराउंड
- इन अवर कॉरिडोर प्लीज़’
- ‘नाउ शट अप... गो ब्रश !’
मज़दूरों के मरने की ख़बर ब्रेकिंग न्यूज़ वाली पट्टी में चल रही है। बीच स्क्रीन पर दुख व्यक्त किया जा रहा है। सुंदर एंकर स्थितियों को भैंकर बताते हुए किसी प्रकार अपने जज़्बातों पर काबू पा रही है। एक डॉक्टर हॉस्पिटल की ओपीडी बंक कर सुबह से विशेषज्ञों के पैनल पर विराजमान है। जल्दबाज़ी में जो स्थेटेस्कोप गले में लटका रह गया था, शंकर जी के नाग सरीखा उसकी शर्ट में चिपक चुका है। साली बोर होकर उससे उठ आने को कह रही है। वो भी थक चुका है। बता रहा है कि वायरस नया है, उसके पास बताने को कुछ है नहीं, पर सरकार अच्छा काम कर रही है। पुलिस द्वारा कर्तव्यपालन के सवाल पर पैनल में शामिल रिटायर्ड वरिष्ठ पुलिस ऑफिसर के अनुसार, पुलिस पर बहुत दबाव होता है, जिसे घटाने को वह हवा में लाठी आदि चलाते हैं। ऐसे में मज़दूर सहित सभी को बीच में आने से बचना चाहिए। चोटिल होने पर टेटनेस का टीका अवश्य लगवाना चाहिए, क्योंकि लाठियों पर जंक लगा रहता है। सरकारी अस्पतालों में ये टीका फ़्री लगता है।’
पार्टी प्रवक्ता हिन्दू-मुस्लिम डिबेट को तरस गए हैं, पर प्रोग्राम डायरेक्टर को बॉस ने फ़ोन किया है, ‘‘... कांग्रैट्स, दर्शक टेलीविजन पर लौट रहा है। टीआरपी बढ़ रहा है। शो मोर मज़दूर। उसका बीबी.बच्चा दिखाओ। टूटा घर दिखाओ। पाँव का छाला... ब्लड एटसेट्रा दिखाओ। मंत्री जी से बनाना आई मीन केला रिसीव करने का वीडियो, नहीं तो स्टिल ही स्क्रीन पर तैराओ। पैनल पर एक साला एनजीओ वाला बिठाओ। ब्रेक के बाद एंकर नए जोश के साथ दर्शकों को ललकार रही है, ग़ौर से देखिए इस मज़दूर के पेट को। इसके सिक्स पैक पर मत जाइए, इनके पीछे छुपी है सूखी रोटी जो उसकी पत्नी ने शायद धूप में पकाई थी। हमारे साथ अब जुड़ गए हैं उद्योग और कारपोरेट मामलों के मंत्री...’’
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