'26 मई को मोबाइल टावर लगा, 5 जून आते-आते मर गये 12 गौरेया के बच्चे'

'26 मई को मोबाइल टावर लगा, 5 जून आते-आते मर गये 12 गौरेया के बच्चे'

हिमांशु जोशी

हिमांशु जोशी पत्रकारिता शोध छात्र हैं और स्वतंत्र पत्रकारिता करते हैं।

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 5 जून 1974 को अमरीका की मेज़बानी में पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया था। तब से हर साल 5 जून को पर्यावरण दिवस दुनियाभर में मनाया जाता है। हर साल इसकी मेज़बानी एक नए राष्ट्र को दी जाती है और इसका विषय भी अलग होता है। इस साल पर्यावरण दिवस की मेजबानी पाकिस्तान द्वारा की जा रही है, जिसका विषय 'पारिस्थितिकी तंत्र बहाली' है। हालांकि, जमीनी स्तर पर सरकारों की पर्यावरण को लेकर चिंताएं, खासकर तीसरी दुनिया के मुल्कों में जहां अभी विकास की आंधी के नाम पर जंगलों को तबाह किया जा रहा, पर्यावरण दिवस बेमानी ही ज्यादा लगता है। 

पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र को बिगाड़ने में इंसानों की कितनी भूमिका है, ऐसी रिपोर्ट्स मंत्रालयों के ड​स्टबिन में 5 ढूंढिए हजार मिलेंगी। ऐसे दर्जनों संस्थान हैं जो पर्यावरण पर काम करते हैं, लेकिन उनकी रिपोर्ट्स का आखिर उपयोग कितना हो पा रहा है, यह जब किसी रिसर्चर से पूछेंगे, तो जवाब गहरी उदासी से भरने वाले ही सामने आते हैं। मैं यहां ऐसे ही एक शख्स का जिक्र कर रहा हूं, जो खुद गौरैया के संरक्षण पर काम कर रहे हैं।

मोबाइल टॉवर से गौरैया हो रही गायब!
गाज़ियाबाद के प्रताप विहार में रहने वाले निर्मल कुमार शर्मा पिछले बीस वर्षों से गौरैया के संरक्षण का कार्य कर रहे हैं। उन्होंने अपने घर में गौरैया को ठहराने के लिए कृत्रिम घोंसले और पेड़ बनाए हैं। वह गौरेया के लिए दाने-पानी की व्यवस्था भी करते हैं। निर्मल कुमार शर्मा का घर जो अब सैकड़ों गोरैया का घर बन चुका है, वह खासा चर्चित है, लेकिन इधर एक मुश्किल ने निर्मल कुमार को चिंता में डाल दिया है।

असल में 26 मई 2021 को निर्मल के घर के पास ही एक मोबाइल टॉवर शुरू हुआ है। इसके बाद से गौरैया के बच्चे लगतार मर रहे हैं। गौरेया के व्यवहार में भी बदलाव आया है, जिससे निर्मल चिंतित हैं। निर्मल पूरे आत्मविश्वास से कहते हैं कि ये परिवर्तन उसी रोज से देखने को मिला है, जब से उनके घर के नजदीक मोबइल टावर लगा है। वो मोबाइल टॉवर, गौरेया के मरे बच्चों और अर्धविकसित गौरैया के बच्चों की तस्वीर भेजकर इसकी पुष्टि करते हैं। उन्होंने कहा कि इतने कम वक्त में अब तक 12 गौरेया के बच्चों की मौत हो चुकी है। उनकी शिकायत पर गाज़ियाबाद डेवलेपमेंट ऑथोरिटी ने कार्रवाई शुरू कर दी है, लेकिन एक निजी मोबाइल कंपनी से निर्मल कितनी लंबी लड़ाई लड़ सकेंगे, इसका जवाब भविष्य में ही मिल सकेगा। यह भी एक देखने वाला पहलू है कि दावे के बनिस्पत असल वजह कहीं कुछ और तो नहीं..। 

गौरैया का पारिस्थितकी तंत्र में योगदान
गौरया पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण योगदान देती है। वह बाजरा, जामुन व अन्य प्रकार के कई फल खाती है और इस प्रक्रिया में वह इनके बीज़ों को मूल पौधों से दूर ले जाती है। बीज अंकुरण के लिए यह महत्वपूर्ण है, यदि बीज मूल पौधों के करीब रहेंगे, तो वह परिपक्व पौधों की वजह से अपना पोषण नही कर पाएंगे और बीज के अंकुरित होने पर मूल पौधे की वृद्धि भी कम हो जाएगी। बीज़ों को फ़ैलाकर गौरैया कई ऐसे पौधों को जीवित रखती है जो पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण है।

मोबाइल टॉवर के विकीरण का पक्षियों पर प्रभाव

डॉ सीवी रमन विश्वविद्यालय के राजेन्द्र कुमार सिंह का रिसर्चगेट पर उपलब्ध शोधपत्र 'छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में मोबाइल टॉवर के विकीरण का पक्षियों पर प्रभाव' हमें यह बताता है कि मोबाइल टॉवरों का गौरेया सहित अन्य पक्षियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। शोधपत्र के अनुसार वर्ष 2006 में मोबाइल टॉवर लगने से पहले एक निर्धारित स्थान और समय पर पक्षियों की कुल संख्या 475 थी जो वर्ष 2017 में मोबाइल टॉवरों के लगने के बाद मात्र 245 रह गई। शोधपत्र में मोबाइल फोन उद्योग की तुलना धूम्रपान उद्योग से की गई है। ये रेडियेशन कितनी तेजी से हमारे आस-पास की दुनिया को बदल रहा है, इसका अंदाजा तक हम नहीं लगा पा रहे हैं।

हालांकि, गौरैया के कम होने के अन्य कारण भी हैं। मसलन नई इमारतों में घोसलों को बनाने की जगह नहीं होती है। शहरी इलाकों में पैकेजिंग राशन आने के बाद से अब राशन खुला या बोरियों में नहीं आता, जिससे उनसे गिरा दाना अब गौरैयों को नहीं मिल पाता। बिल्लियों और गिलहरियों के शिकार बनने की वज़ह से भी गौरैया की संख्या में कमी देखी गई है।

बहरहाल, अगर हमें गौरैया के कम होने की वज़ह से पारिस्थतिकी तंत्र पर पड़ रहे प्रभाव को ख़त्म करना है, तब हमें उन स्टडीज पर सरकारों के स्तर से काम करने की जरूरत है, जिनमें महत्वपूर्ण सुझाव दिये गये हैं। निर्मल कुमार के चलते हमें केवल गौरैया पर पड़ने वाले संकट का पता चला, इसके अलावा और क्या-क्या प्रभाव पारिस्थिकी तंत्र पर पड़ रहा है, इसे लेकर ठोस जमीनी काम करने की जरूरत है।

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