उमेश तिवारी व्यंग्यकार, रंगकर्मी और मान्यताप्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं। अपनी शर्तों पर जीने के ख़तरे उठाते हुए उन्होंने रंगकर्म, पत्रकारिता, लेखन, अध्यापन, राजनीति से होकर गुज़रती ज़िंदगी के रोमांच को जिया है। रंगकर्म के लेखे-जोखे पर 2019 में 'थिएटर इन नैनीताल' नाम से किताब छप चुकी है।
भाई साब मेरे शुभचिंतक हैं। ससुराल वाला कनेक्शन है। उनके इन्वेस्टमेंट एडवाइजर कम बीमा एजेंट कम जन्मपत्री विशेषज्ञ रह चुके हैं। भाई साब का पोर्ट-फोलियो दुनिया भर की ऐसी एजेंसियों, जिनमें गोदाम ज़रूरी न हो, से अटा पड़ा है। मौक़ा मिलने पर वो कैरियर कॉउंसलिंग में भी हाथ आज़मा लेते हैं। हाँ, ये सेवा निशुल्क होती है। अलबत्ता, कभी-कभी अपरोक्ष लाभ दे जाती है। सरकार किसी की आये भाई साब उसके ब्रांड एम्बेसडर बन जाते हैं, तुरन्त।
आजकल गोल्डन कार्ड, आयुष्मान, पीएम शहरी आवास का प्रमोशन चल रहा है। मेरे लिए तय ‘अच्छी’ सलाहें पत्नी के माध्यम से मुझ तक पहुंचा देते हैं। यह सिलसिला हमारे विवाह के बाद से ही चल पड़ा था, इधर कोविड काल में रफ़्तार तेज़ हो गई है। भोली भाग्यवान उनके मार्केटिंग प्रस्तावों को अपना बनाकर मुझ पर आज़माती रहती है पर अधिकांश इतने फट्टू होते हैं कि टिक नहीं पाते। थोड़ी चकल्लस के बाद हथियार डाल देती है; 'आप से अधिक बुद्धिमान दुनिया में कोई हुआ है भला?'
कहने की इच्छा हुई, 'क्यों, भाई साब नहीं रहे क्या?'; परंतु ऐसी लड़ाइयां जो अपनी दुर्लभ जीत पर समाप्त होती हों, उनके सूत्रधार की जड़ों में मट्ठा तो कोई बुद्धू ही डालेगा!
भाई साब की अपनी विशिष्ट मोडस ऑपरेंडी है। सलाहों के फॉलो अप में वो सीधे प्रश्न करने के बजाय, उनका असर ताड़ने के इनडाइरेक्ट मौक़े तलाशते हैं। हाल में उन्होंने संयोगवश या घात लगाकर मुझे घर के बाहर पकड़ लिया। रविवार का दिन था बाल्टी-मग्घा लिए गाड़ी धो रहा था। भागने या टालने की कोई गुंजाइश नहीं थी, 'मोहन जी आजकल शेयर मार्किट ठंडी चल रही सुना..?'; इन दिनों भाई साब मेरी पत्नी को फिक्स्ड डिपाजिट के मुनाफ़े समझा रहे थे। मैं उनका प्रस्ताव ख़ारिज भी कर चुका था।
मौक़े की नज़ाकत देखते हुए त्वरित टिप्पणी चाहिए थी, 'अरे भाई साब, सरकारी कंपनियों में इन्वेस्ट करने का ये बेस्ट टाइम है, आपके मोदी जी एलआईसी को बेचे दे रहे हैं। मैं कहता हूँ एजेंटी की कमाई आप शेयरों में लगा लो।'; फिक्स डिपाजिट पर निशाना चूकते देख उनको दुख तो हुआ ही होगा, ऊपर से उनके मोदी जी लपेटे में आ गए। खिसियाये और मजबूरी में विषयांतर कर गए, 'गाड़ी नई सी लग रही है मोहन जी, है तो सेकिंड हैंड ना?'; बड़ा ग़ुस्सा आया, गाड़ी नई ली थी।
'अरे आपको पता नहीं मारुति वाले स्कीम लाये हैं, पुरानी देकर नई ले ली। आप भी सांटा-बदल कर लो, दहेज में मिला लम्ब्रेटा कब तक घिसोगे। अब तो कार के जितना एवरेज देने लगा होगा और अरब कंट्री वालों ने पेट्रोल भी बहुत मंहगा कर दिया है।'; भाई साब थोड़ा झेंपे तो, पर नहले पर दहला लगाते नहीं चूके, 'नहीं जी, हम ऐटोमैटिक इलेक्ट्रॉनिक कार फाइनेन्स करवा रहे हैं। आपकी भाभी ने आजकल ड्राइविंग स्कूल जॉइन
किया हुआ है, सबेरे ट्रेनिंग लेते दिखती नहीं आपको?'
देखना क्या! प्रशिक्षण वाहन से हाथ बाहर निकालकर तिराहे पर ऑटो रिक्शे वाले से गाली-ठाली करते मैडम जी का फ़ोटो खेंच चुका था मैं। तपाक्अ से हमने भी कह दिया 'रे कहाँ भाई साब! अपना मॉर्निंग वॉक तो फिलहाल बंद है .. ये अच्छा है कि अब आपको कार में बिना हेल्मेट के बैठे देख पाएंगे लोग।' गंजे सिर पर ठोका गया ये गोला, लगा वो आराम से झेल गए और हँसते हुए पतली गली से निकल लिए।
यहाँ तक तो सब ठीक था। भाई साब की एक हैल्थ पालिसी भी बिकवा दी। पर हाल में पत्नी के मुँह से कुछ ऐसा निकला जो मुझे अचंभित कर गया। बोलीं, 'आपका मोदी जी से क्या बैर है..आप उनके ख़िलाफ़ जाने क्या-क्या लिखते रहते हो।' मेरे दिमाग़ में घंटियां बजने लगी, ये सुझाव भाई साब से तो नहीं आया?
'तुमने कहाँ पढ़ लिया ऐसा?.. या किसीने बताया?'
'मान लो किसी ने बताया.. पर ये झूठ है क्या?'
'मोदी जी कोई मुहल्ले के लौंडे-लबारे हैं जिनसे मेरा बैर हो जाये? वो प्रधानमंत्री हैं.. किसीने तुम्हारा फ़ेसबुक अकॉउंट तो नहीं बना दिया?'
'फ़ेसबुक मैं क्यों बनाऊं ?.. भाई साब के साथ कोई राम मंदिर के लिए चंदा माँगने वाले आये थे..'
'तो क्या हुआ.. तुमने चंदा दिया?'
'मैंने दो सौ पचीस देने चाहे तो धोखे से हज़ार का पुराना नोट पकड़ा दिया..उस समय तो ले गए, बाद में ग़लती समझ आई होगी तो लड़कों को नोट बदलने भेजा। एक लड़का आपका जानने वाला रहा होगा, सीढ़ी चढ़ते बोल रहा था कि ये मोहन पत्रकार का घर है, इसकी औरत ने जानबूझकर नोटबंदी वाला नोट पकड़ाया होगा..ये मोदी जी के
बारे में अंटशंट लिखता रहता है।'
'फिर..?'
'फिर क्या ! मेरे पास दो सौ खुल्ले तो थे नहीं, वो हज़ार का पुराना नोट लेकर चले गए। कह रहे थे आप से ले लेंगे..अब आप जानो, चाहे भाई साब से बात कर लो।'
'तुमने पूछा नहीं कि क्या अंटशंट लिखा है, मैंने मोदी जी के बारे में?'
'अब मैं उनसे क्या पूछती..वो पूजा-पाठ करने वाले लोग हैं, झूठ थोड़ी बोल रहे होंगे। ..भाई साब बता रहे थे आपको कल्चर-फल्चर के बारे में इतना ज्ञान है, उस पर लिखा करो। क्या पड़ी है आपको सरकार के बारे में लिखने की? किसानों ने उनको वैसे ही परेशान किया हुआ है, किसी ने आत्महत्या कर ली तो हमको जो पाप लगेगा।'
भाई साब अपनी गुगली डाल गए थे। लगता है मेरा मज़ाक उनकी गंजी खोपड़ी से फ़िसलने के बजाय दिमाग़ में दाख़िल हो गया। लगता है स्लॉग ओवरों में मुझे रक्षात्मक बैटिंग करनी पड़ेगी। ...शुरुवात में श्रीमती जी की 'गलतफैम्ली' दूर करने को मैंने उनका फ़ेसबुक अकाउंट बनवा दिया है।
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