“मुझे साफ पता था कि अगर मैं ऐसा कर सका तो वे ज़िंदा रहेंगी!”

डी/35“मुझे साफ पता था कि अगर मैं ऐसा कर सका तो वे ज़िंदा रहेंगी!”

अशोक पांडे

अशोक पांडे साहब सोशल मीडिया पर बड़े चुटीले अंदाज में लिखते हैं और बेहद रोचक किस्से भी सरका देते हैं. किस्से इतने नायाब कि सहेजने की जरूरत महसूस होने लगे. हमारी कोशिश रहेगी हम हिलांश पर उनके किस्सों को बटोर कर ला सकें. उनके किस्सों की सीरीज को हिलांश डी/35 के नाम से ही छापेगा, जो हिमालय के फुटहिल्स पर 'अशोक दा' के घर का पता है.

“जब आप किसी के बारे में सोचते हैं, आप उसे बचा रहे होते हैं”– अर्जेन्टीना के कवि रोबेर्तो हुआर्रोज़ की एक कविता की पंक्ति है.

सन 1974 की सर्दियों की बात है. छियत्तर साल की लॉटे आइसनर बहुत बीमार थीं. पेरिस के एक अस्पताल में भर्ती कराई गई इस महिला के लेखन ने पिछले तीस सालों के जर्मन सिनेमा की दिशा तय करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी. हिटलर और दूसरे विश्वयुद्ध ने जर्मन सिनेमा को भारी नुकसान पहुंचाया था. इन बीस सालों में संसार भर का सिनेमा बहुत विकसित हो चुका था जबकि जर्मनी के फिल्मकारों ने राख से शुरू करना था. ऐसे में खुद किसी तरह बच गयी इस यहूदी महिला ने अपने लेखों से इस माध्यम की नई परिभाषा गढ़ने की राह तैयार की. दुनिया भर के बड़े फिल्म निर्देशक उसके मुरीद थे. इन मुरीदों मे जर्मनी का एक युवा फिल्मकार भी था जिसकी प्रतिभा को लॉटे आइसनर ने तब सराहा था जब कोई उसका नाम भी नहीं जानता था.

इस युवा का नाम था वेर्नर हर्ज़ोग. पेरिस में रहने वाले एक दोस्त ने 23 नवम्बर 1974 के दिन उसको फोन कर के बताया कि लॉटे आइसनर मृत्युशैय्या पर हैं. इस खबर से गहरे व्यथित हुए हर्ज़ोग ने अपने आप से कहा – “मैं उन्हें मरने की इजाजत नहीं दे सकता. उन्हें जीना होगा. वो अभी नहीं मरेंगी. हमें उनकी जरूरत है.”

उस समय वेर्नर हर्जोग म्यूनिख में था. बाहर बर्फ गिर रही थी और तापमान जीरो से दस डिग्री नीचे था. हर्जोग ने हाल ही में खरीदे गए अपने जूतों को ध्यान से देखा. वे काफी मजबूत लग रहे थे. उसने एक पिठ्ठू निकाला, जरूरत का सामान उसमें भरा और यूरोप का नक्शा उठाकर बिना कुछ सोचे सड़क पर आ गया. उसकी आत्मा उसे बता रही थी कि अगर वह लॉटे आइसनर को देखने पेरिस जाना चाहता है तो उसने किसी रेल या जहाज से नहीं बल्कि अपने पैरों से चलकर, पांच सौ मील दूर पेरिस पहुंचना चाहिए. न जाने कितने साक्षात्कारों में हर्जोग कह चुके हैं – “मुझे साफ़ पता था कि अगर मैं ऐसा कर सका तो वे ज़िंदा रहेंगी.”

तीन सप्ताह तक बर्फीले, सर्द मौसम में पैदल चलते हुए हर्जोग जब 14 दिसम्बर 1974 को पेरिस पहुंचे, लॉटे आइसनर हस्पताल से ठीक होकर अपने घर जा चुकी थीं. इस पूरी यात्रा के दौरान हर्जोग ने हर रात डायरी भी लिखी जो बाद में एक किताब की सूरत में छपी.

आठ साल बाद लॉटे आइसनर ने उन्हें पेरिस बुलवाया और कहा- “देखो मैं तकरीबन अंधी हो चुकी हूँ. जीवन के सबसे अच्छे काम यानी पढ़ना और सिनेमा देख सकना, अब मुझसे नहीं होते. मैं बहुत मुश्किल से चल पाती हूं. वह भी बैसाखियों के सहारे से.”

इसके बाद, ठीक जिस तरह संसार की बुनियाद रखने वाले हजरत नूह ने आठ सौ बीस साल की जिन्दगी जी चुकने के बाद भगवान से कहा होगा, उन्होंने हर्जोग से कहा – “मैं जीवन से पूरी तरह भर चुकी हूँ."

उसके बाद वे मुस्कराईं, "लेकिन मेरे जीवन को तुमने जैसे किसी मन्त्र से बांधा हुआ है. मुझे मुक्त कर सकते हो?”

हर्जोग ने स्वीकृति में सर हिलाया. आठ दिन बाद लॉटे आइसनर चली गईं.

आप वेर्नर हर्जोग का लिखा हुआ पढ़िए, उसकी फ़िल्में देखिये. वह आदमी जैसे किसी दूसरी दुनिया में रहता है. उसके लिए हर चीज, हर घटना किसी महान उद्देश्य की तरफ इशारा कर रही होती हैं. उस इशारे को, उसमें छिपी चुनौती को पूरी तरह समझने का काम उसने पूरी जिन्दगी सिर्फ अपनी इच्छाशक्ति और जिद के बल पर किया है. बेवजह नहीं है कि उसे दुनिया के पिछले सौ सालों के सबसे महत्वपूर्ण सौ लोगों की तकरीबन हर लिस्ट में जगह मिलती है. सिनेमा में दिलचस्पी रखते हैं और वेर्नर हर्ज़ोग की फ़िल्में नहीं देखी हैं तो समझिये आपने कुछ भी नहीं देखा है.

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