गौरव नौड़ियाल ने लंबे समय तक कई नामी मीडिया हाउसेज के लिए काम किया है। खबरों की दुनिया में गोते लगाने के बाद फिलहाल गौरव फिल्में लिख रहे हैं। गौरव अखबार, रेडियो, टीवी और न्यूज वेबसाइट्स में काम करने का लंबा अनुभव रखते हैं।
भारत इस वक्त मनहूस दौर से गुजर रहा है। बाजारों में शाम ढ़लते ही ‘हो-हल्ला’ की जगह सन्नाटा भर गया है। देश के कई हिस्से तो पिछले कई दिनों से ही सन्नाटे के आगोश में हैं। फोन के इनबाॅक्स ‘ख्याल रखना अपना’ के संदेशों की बाढ़ से भरे हुये हैं। सोशल मीडिया टाइमलाइन बदइंतजामी, राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप और शोक-संदेशों से भरे हुये हैं। टीवी की खिड़कियों पर तीमारदारों की रोती हुई शक्लें हैं। जहां महफिलों की रौनक होती थी, वहां बेंच पर आवारा कुत्तों ने अनिश्चितकाल के लिये कब्जा जमा लिया है। ये खौफ कितना गहरा रहा है, इसका आंकलन अस्पतालों के गेट के बाहर से गुजरते ही महसूस हो जा रहा है। घर लौटते हुए रास्ते में कोई श्मसान दिख जाये और वहां लोग जमा हों, तब लोग मास्क नाक पर खींचकर पूछ रहे हैं- ‘कैसे मरे!’ ...और चुपचाप लौट जा रहे हैं, खुद के भीतर खौफ भरकर।
भारत में लगातार तीसरे दिन कोरोना वायरस संक्रमण के तीन लाख से अधिक नए मामले दर्ज किए गए हैं। जिस शहर में बैठकर मैं ‘हो-हल्ला’ की यह कड़ी लिख हूं, वहां के अस्पताल में आईसीयू ही नहीं है। इधर देश में संक्रमण के कुल मामले बढ़कर 16,610,481 हो गए हैं और मरने वालों की संख्या बढ़कर 189,544 हो गई है, लेकिन इस बीच भी सत्तारूढ़ दल का ‘आईटी सेल’ अपने डींग मारने वाले मुखिया को ‘भारत का वीर पुत्र’ घोषित करने की ‘बेदम’ लड़ाई लड़ रहा है।
कितना अच्छा होता गर, ‘आईटी सेल’ भी इस वक्त कोविड के खिलाफ ‘डिजिटल वाॅर रूम’ में तब्दील हो जाता और जो नागरिक मदद की गुहार लगा रहे हैं, उनकी मदद करने के लिए ट्वीट और पोस्टर्स की बाढ़ ला देता! ...लेकिन वो तो इस मुल्क के ‘सबसे असफल प्रधानमंत्री’ के महिमामंडन के लिए ही काम करने के लिए तैयार किया गया है? वो तो ‘दीदी... ओ..दीदी’ के जुमलों को हर शख्स के मोबाइल पर पहुंचा देने को आतुर है! इस बीच चुपचाप ये खबर भी सामने आई कि बंगाल में पिछले आठ दिनों में कोरोना संक्रमितों की संख्या दोगुनी हो गई है। ये संख्या कहां जाकर थमेगी, इसके केवल कयास लगाये जा रहे हैं।
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अस्पतालों के भीतर क्या हाल हैं, इसकी तस्वीरें अगर टीवी चैनलों पर ‘ईमानदारी’ से तैरने लगे, तो पूरा भारत एक साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार से ‘बदइंतजामी’ का हिसाब लेने दिल्ली की दौड़ लगा दे, लेकिन इन्हीं बदइंतजामियों को ढंकने के लिए शायद ‘आईटी सेल’ बनाया गया है। जनता चुपचाप एक असफल सरकार और पीएम का महिमामंडन करती रहे, शायद इसीलिये ‘आईटी सेल’ बनाया गया है? ....और सालों बाद ‘हिंदू राजा की वापसी’ की अफीम जनता चाटती रहे, शायद इसीलिये आईटी सेल बनाया गया है!
इस वक्त जब दिल्ली और उसके आस-पास के ही शहरों में कोरोना ने लोगों पर आफत बरसाई हुई है, ‘आईटी सेल’ का मुखिया का ट्विटर हैंडल बंगाल इलेक्शन से जूझ रहा है। है ना कमाल की बात... ये हाल तब है जबकि कुछ ही दिनों पहले प्रधानमंत्री कोरोना से निपटने में अपनी सरकार को दुनिया की बाकी सरकारों के मुकाबले सर्वोच्च बताने की डींगे हांकते नहीं थक रहे थे। प्रधानमंत्री की दूरदर्शिता का अंदाजा इसी बात से लगता है कि वो लोगों को कुंभ में आने का न्यौता दे रहे थे, इसे सुरक्षित बता रहे थे। अब हाल यह है कि स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में उत्तराखंड जैसा संसाधन विहीन राज्य, रिकाॅर्ड कोरोना मरीजों को दर्ज कर रहा है।
जब-जब बदइंतजामी या अव्यवस्था पर जनता सवाल उठाना शुरू करती है, तभी ये जादुई ‘आईटी सेल’ सामने आता है और पीएम मोदी और भाजपा के ‘प्रायोजित गुणगान’ में ट्वीट्स की आंधी ले आता है। ये बेहद सतर्क होने वाली बात है, उनके लिए भी जो प्रधानमंत्री से असल में प्यार करते हैं, उन तक अपनी दिक्कतों को पहुंचाना चाहते हैं। लोगों के गुस्से और पीएम के बीच ये ‘आईटी सेल’ क्या कर रहा है, अब ये भारतीय नागरिकों को पूछना शुरू कर देना चाहिये!
शनिवार को बेहद बेशर्मी से ‘आईटी सेल’ फिर उस वक्त अति सक्रिय हो गया, जब जनता अपने पीएम से बदइंतजामियों पर सवाल कर रही थी, आलोचना कर रही थी और जमीन की सच्चाई दिखा रही थी। ठीक उसी दौरान ‘आईटी सेल’ ने एक और झूठी तस्वीर सामने रखी और अफीम चाटे हुए अनजान लोगों ने ‘हो-हल्ला’ मचाना शुरू कर दिया। ये ‘हो-हल्ला’ शुरू तो केजरीवाल को एक्सपोज करने से हुआ, लेकिन फिर ‘भारत का वीर पुत्र मोदी’ पर आकर अटक गया। इस पर 'झांसेबाजों की रानी' यानी कि कंगना ने भी छौंका लगा दिया, वो भला कहां इस स्तुतिगान से पीछे रहती। कंगना ने आईटी सेल की इस मुहिम को गति देते हुए लिखा- ‘जब आपके पास दुनिया का सबसे कुशल नेता होता है, तब आप स्वयं प्रधान मंत्री बनने का नाटक न करें, उसका समर्थन करें, यह हमारा धर्म और कर्म दोनों है।’ इस बयान और 'झांसेबाजों की रानी' दोनों को यहीं पर छोड़कर आगे बढ़ जाना चाहिये। मूर्खताओं को असल में पीछे छोड़ना ही प्रगति है और मैं यहां तो कम से कम प्रगति करना चाहूंगा।
When you have the most efficient leader in the world don’t pretend to be a Prime Minister yourself, support him, that’s our dharma and karma both #भारत_का_वीर_पुत्र_मोदी https://t.co/EtGYT8W3JM
— Kangana Ranaut (@KanganaTeam) April 24, 2021
खैर, यूं तो कोविड 19 की पहली दस्तक ने ही भारत सरकार की दूरदर्शिता, महामारी से निपटने की कार्यप्रणाली और नेतृत्व की बखिया उधेड़ दी थी, लेकिन कोरोना की दूसरी लहर ने भारत सरकार को चैराहे पर नंगा खड़ा कर दिया है, यह कहने में गुरेज नहीं करनी चाहिये। ये वो चैराहा है जहां चारों ओर मुर्दों की गंध और अपनों को खोने की चीत्कार मची हुई है। भोपाल, कानपुर, पटना, मेरठ, मुंबई, बनारस, सूरत जैसे शहरों से भीतर तक हिला देने वाले विजुअल्स सामने आ रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक, देश में 110 दिन में कोविड-19 के मामले एक लाख हुए थे और 59 दिनों में वह 10 लाख के पार चले गए थे।
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भारत में खुद जहां हैवी वेट नेताओं की बाढ़ है और प्रधानमंत्री के घर का पता है, वो शहर ऑक्सीजन के अभाव में ही अपने मरीजों को मरने के लिए छोड़ दे रहा है। लोग अस्पतालों के बाहर लाशों को थामें ‘ऑक्सीजन’ को ‘ढूंढ’ रहे हैं! कहां है ऑक्सीजन, इसका जवाब तो सरकार के पास भी नहीं! अस्पतालों की इमरजेंसी बंद हो रही है और अस्पताल प्रबंधन ऑक्सीजन की शाॅर्टेज के चलते मरीजों को लेने से ही इनकार कर रहे हैं। लोग ऑक्सीजन के आधे-अधूरे सिलेंडरों के लिये ही अपनी पूरी जेब खाली करने को तैयार बैठे हैं।
इस बीच प्रधानमंत्री की फौज और अरविंद केजरीवाल के योद्धा ‘शर्मनाक लड़ाई’ लड़ते हुये नजर आ रहे हैं। इधर दिल्ली हाईकोर्ट ने जरूर शानदार और दर्ज किये जाने लायक बात कह दी है। दिल्ली के विभिन्न अस्पतालों द्वारा दायर ऑक्सीजन की कमी संबंधी मामले सुनते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र से महामारी की चरम स्थिति आने पर इंफ्रास्ट्रक्चर, अस्पताल, चिकित्साकर्मियों, दवाई, टीका और ऑक्सीजन के आशय में तैयारियों को लेकर सवाल करते हुए कहा कि हम इसे लहर कह रहे हैं, यह असल में एक सुनामी है। अदालत ने दिल्ली सरकार से केंद्र, राज्य या स्थानीय प्रशासन के किसी भी अधिकारी द्वारा ऑक्सीजन की आपूर्ति को बाधित करने के एक उदाहरण के बारे में बताने को कहा है।
पीठ ने कहा, हम उस व्यक्ति को फांसी पर लटका देंगे, हम किसी को भी नहीं बख्शेंगे। ये शानदार बात है। ऐसे हर शख्स को सजा दी जानी चाहिये जो सांसों पर पहरा बिठाये बैठे हैं। अदालत यहीं नहीं रुकी बल्कि पीठ ने दिल्ली सरकार से कहा कि वह स्थानीय प्रशासन के ऐसे अधिकारियों के बारे में केंद्र को भी बताए ताकि वह उनके खिलाफ कार्रवाई कर सके। उच्च न्यायालय ने केंद्र से भी सवाल किया कि दिल्ली के लिए आवंटित प्रतिदिन 480 मीट्रिक टन ऑक्सीजन उसे कब मिलेगी?
इसका जवाब शायद केन्द्र दे भी दे... ना भी दे तो हम और आप क्या कर सकते हैं! हिसाब तो जनता 'पीएम केयर फंड' का भी मांग ही रही है... वो भी कहां मिला? हां, इस बीच सुधीर चौधरी ने जरूर घोषणा कर दी है कि ‘नेगेटिव खबरों से पाॅजिटिव होने का खतरा है!’ यहां, फिर मैं मूर्खताओं को छोड़ने की ही वकालत करूंगा और मूर्खताओं पर जीत की उम्मीद करूंगा। यूपी में हालत बेकाबू हैं, बिहार की तस्वीरें भी ठीक नहीं हैं।
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दिल्ली चूंकि नेशनल मीडिया का गढ़ है, इसलिये राज्य के हाल कितने बुरे हैं, इसका पता फिलहाल चल जा रहा है, लेकिन बाकी शेष भारत में क्या स्थितियां हैं... इसका ठीक-ठीक पता भी नहीं चल पा रहा है। उत्तराखंड में तो और भी ज्यादा चिंताजनक हालत हैं। यहां सीएम बदलने के चलते कोविड केयर किट्स सिर्फ इसलिये नहीं बांटी जा पा रही, क्योंकि नये मुख्यमंत्री की तस्वीरों वाले डिब्बे ही नहीं आ सके हैं। पहाड़ों पर स्वास्थ्य सेवाएं किस कदर बुरी और बदहाल हैं, इसका हाल राज्य का हर छोटा-बड़ा अखबार साल-भर बताता आया है। इतनी अव्यवस्थाओं को लेकर चलने वाला प्रधानमंत्री आखिर ‘आईटी सेल’ का खोल क्यों न ओढ़े, ये भी सोचनीय है।
बहरहाल, आईटी सेल के खोल से पीएम रहते हुये भले ही नरेन्द्र मोदी बाहर ना निकल पाएं, लेकिन जनता ने अपने पीएम के चारों ओर लिपटे इस 'बदनुमा खोल' को तोड़ना शुरू कर दिया है और इसकी बानगी है, ‘भारत का वीर पुत्र’ के प्रायोजित जवाब में रात गहराते-गहराते ट्विटर पर ‘भारत का क्रूर पुत्र मोदी’ हैशटैग का ट्रेंड होना... ये ‘आईटी सेल’ का खोल हिन्दुस्तान पूरी तरह से कब तोड़ता है, इसका इंतजार कीजिये और तब तक आप भी अपना ख्याल रखिये! रात गहरा रही है...
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