अशोक पांडे साहब सोशल मीडिया पर बड़े चुटीले अंदाज में लिखते हैं और बेहद रोचक किस्से भी सरका देते हैं. किस्से इतने नायाब कि सहेजने की जरूरत महसूस होने लगे. हमारी कोशिश रहेगी हम हिलांश पर उनके किस्सों को बटोर कर ला सकें. उनके किस्सों की सीरीज को हिलांश डी/35 के नाम से ही छापेगा, जो हिमालय के फुटहिल्स पर 'अशोक दा' के घर का पता है.
कुल साढ़े चार फीट कद के उस दढ़ियल जीनियस पर पेरिस की सबसे ख़ूबसूरत नर्तकियां और वेश्याएं मरती थीं। कई बार यूं भी होता कि जिस रोज सड़क पर बहुत से लोग उसके कद को लेकर उसका मजाक उड़ाते उस रात के लिए वह छः-आठ सुंदरियों को छांट कर साथ ले जाता और सेक्स, रचनात्मकता और ताकत की अपनी तमाम फंतासियों को जिया करता। उसने उसमें से अनेक स्त्रियों के पोर्ट्रेट्स बनाए और अपने कैनवसों में उन्हें हमेशा के लिए अमर कर दिया।
ऐसा ही एक पोर्ट्रेट है ‘वूमन बिफोर अ मिरर’. खुद को आईने में तटस्थ भाव से देखती उस नग्न स्त्री को देखकर न किसी रूमानी नायिका का ख़याल आता है न किसी तरह की नैतिक वर्जना मुंह उठाती है। रक्त और मांस की बनी वह नग्न स्त्री किसी भी और स्त्री की तरह साधारण है। आईने में दिख रहा उसका ईमानदार चेहरा बताता है कि वह खुशी और गम के बीच डोलते रहने वाले किसी भी दूसरे इंसान जैसी वल्नरेबल और छलहीन है।
इस एक अकेली पेंटिंग में उन्नीसवीं सदी के बड़े फ्रेंच चित्रकार तूलूस लौत्रेक की रचनाओं की महानता का सूत्र खोजा जा सकता है– उसने अपने छोटे से जीवन में आई तमाम औरतों को उदारता और सहानुभूति के साथ देखा और उन्हें उसी तरह संसार को दिखाया भी।
24 नवम्बर 1864 को ऑनरी द तुलूस लौत्रेक एक बेहद अमीर घर में जन्मा था। बचपन से ही अक्सर बीमार रहने वाला ऑनरी जब किशोरावस्था में पहुंचा उसकी दोनों जांघों की हड्डियां फ्रेक्चर हो गईं। इसके बाद उसके स्वास्थ्य के साथ एक से एक बुरी चीज़ें घटती गईं, जिसके नतीजे में वह सामान्य आकार के कूल्हों लेकिन बेहद छोटी टांगों वाले बौने इंसान की तरह विकसित हुआ। बिना छड़ी लिए चलना भी उसके लिए मुश्किल होता थ। बाद के सालों में उसका चेहरा विकृत होता गया जिसकी वजह से वह मृत्युपर्यंत भीषण दांत के दर्द से जूझता रहा।
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जीवन की शुरुआत से ही सामान्य शारीरिक जीवन न बिता पाने को अभिशप्त हो गए तूलूस लौत्रेक ने अपने आप को कला पर वार दिया। बोहेमियनों का स्वर्ग माने जाने वाले पेरिस के मोन्तमार्त्रे इलाके में अपने जीवन का आधे से ज़्यादा हिस्सा बिताते हुए उसने उस इलाके में बहुतायत में पाए जाने वाले नाचघरों और वैश्यालयों की ज़िन्दगी के छुए-अनछुए पहलुओं पर अपनी कूची चलाई और एक से एक शानदार तस्वीरें बनाईं।
वहां के सबसे मशहूर नृत्यघर 'मूलां रूज़' का नाम अब इसी महान कलाकार के नाम के साथ जुड़ चुका है। उसमें परफॉर्म करने वाली नर्तकियां और वहां आने वाले तमाम नामी और अमीर ग्राहक उसके चित्रों का विषय बने। इसके अलावा जापानी प्रिंट शैली में बनाए गए उसके बनाए पोस्टरों के ओरिजिनल डिजायनों में आधुनिक विज्ञापन-कला और पॉप-आर्ट की शुरुआत भी निहित है। उसकी ज्यादातर पेंटिंग्स में दिखाई देने वाली वेश्याएं उन क्षणों में कैप्चर की गयी हैं जब वे अपने इरोटिक प्रोजेक्शन से बाहर निकल चुकी होती हैं। थकी हुईं, सिगरेट पीतीं, बाल काढ़तीं, पानी गर्म करतीं या कुछ भी न करती हुईं ये स्त्रियां तूलूस लौत्रेक की अतिविख्यात एल-सीरीज में देखी जा सकती हैं।
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हैनरी द तुलूस लौत्रेक के बिना 1880 के दशक में उभरे और कई दशकों के लिए चित्रकला के संसार की परिभाषा को पूरी तरह बदल देने वाले क्रान्तिकारी इम्प्रैशनिस्ट आन्दोलन की कल्पना तक नहीं की जा सकती - उस आन्दोलन के स्तंभों में विन्सेन्ट वान गॉग, क्लाउद मॉने, मैने, पॉल गोगां, हैनरी रूसो जैसे तमाम महान नामों के साथ तुलूस लौत्रेक के ज़िक्र हमेशा बहुत सम्मान के साथ किया जाता रहेगा। यह बेहद बुद्धिमान और जीनियस कलाकार अपने बेहतरीन सेन्स ऑफ़ ह्यूमर के चलते अपने दोस्तों, जिनमें विन्सेंट वान गॉग और गोगां भी शामिल थे, की तमाम दावतों का केंद्रबिंदु बनता था अलबत्ता गलियों में लोग उसके कद और उसकी आकृति के कारण उसका मज़ाक उड़ाया करते थे। उसके कुलीन और रईस पिता ने पेंटर बनने के अपने बेटे के फैसले को कभी स्वीकार नहीं किया और जीवनभर उससे दूरी बनाए रखी। वेश्याओं से संसर्ग से उसे सिफलिस की बीमारी हो गयी। इतनी सारी जटिल और दुखभरी परिस्थितियों के नतीजे में पच्चीस की उम्र के आते-आते वह भीषण अल्कोहोलिक बन गया। शराब से होने वाले ब्लैकआउट में ही उसे नींद आ पाती थी।
जब उसकी मां ने, जिससे बह सबसे अधिक नजदीकी महसूस करता था, पेरिस छोड़ने का फैसला किया, तुलूस लौत्रेक को नर्वस ब्रेकडाउन हो गया। इसकी वजह से उसे एक सैनेटोरियम में भर्ती कराना पड़ा। कुछ महीनों के बाद उसकी मां उसे अपने साथ ले गई, लेकिन उससे भी कुछ ख़ास फ़ायदा नहीं हुआ। एक रोज 9 सितम्बर 1901 के दिन वह अपने घर में मर गया।
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दुनिया ने जिसका मजाक उड़ाने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी थी, 36 साल के उस त्रासद जीवन का अहसान चुकाने के लिए ऑनरी दे तूलूस लौत्रेक अपने पीछे 700 कैनवस, 350 प्रिंट्स और पोस्टर्स के अलावा 5000 ड्राइंग्स छोड़ गया। 2005 में क्रिस्टी में हुई नीलामी में उसकी एक पेंटिंग 22.2 मिलियन डॉलर में बेचा-खरीदा गया। उसके बारे में और जानना हो तो पियरे ला म्यूर की लिखी उसकी जीवनी 'मूलां रूज़' को पढ़िए या जूलिया फ्रे की ‘तूलूस लौत्रेक - अ लाइफ’ को।
(अशोक पांडे इस लेख के अंत में लिखते हैं- ''पियरे ला म्यूर वाली किताब के कुछ हिस्से मैंने अनुवाद करके दस-पंद्रह बरस पहले ‘कबाड़खाना’ ब्लॉग पर लगाए थे। खोजेंगे तो मिल जाएंगे। वरना इस सूचना को अपने कद्दू पर सजा लें!'' )
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