उमेश तिवारी व्यंग्यकार, रंगकर्मी और मान्यताप्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं। अपनी शर्तों पर जीने के ख़तरे उठाते हुए उन्होंने रंगकर्म, पत्रकारिता, लेखन, अध्यापन, राजनीति से होकर गुज़रती ज़िंदगी के रोमांच को जिया है। रंगकर्म के लेखे-जोखे पर 2019 में 'थिएटर इन नैनीताल' नाम से किताब छप चुकी है।
एजेंसियों की छापेमारी की पूर्व बेला में मंत्री जी उद्योगपति माल्या के तहख़ाने पधारे। माल देखा तो आंखें चुंधिया गई और बरबस ही मुख से फूट पड़ा— "वाह किंग फिशर साब.. वाह! आपने तो ठीक-ठाक बटोर कर रखा है!"
"अरे सर पंछी की चोंच को क्यों बदनाम करते हैं.. ठीक-ठाक बटोरने को तो लंबे हाथ और सबका साथ चाहिए।"
"ही..ही..ही ! ये ठीक कहा श्रीमान..पर आपने सोने की ईंटों के साथ ये पुरानी जेबघड़ी क्यों धर रखी है भला?"
"ये घड़ी समय और गोदाम दोनों की प्रतीक है महोदय। ये सम्पत्ति आज मेरी है कल यही आपकी जेब में जा सकती है।"
"ओह.. तो इसलिए जेबघड़ी ! मगर मुझे इस घड़ी से कोई याद आ गया था श्रीमान।"
"याद तो आपको ठीक ही आया होगा सर परंतु यादों का क्या ! जब भी आपको देखता हूं मुझे अपना स्कूल का वह साथी याद आ जाता है, जो मेरे टिफ़िन का तंदूरी चिकन शेयर किया करता था।"
"हा हा हा ! तो आप स्कूल भी नॉन-वेज ले जाते थे?"
"अरे सर वाटर बोटल में बियर भी होती थी.. कुछ फ़ैन मेरी टीनएज लाइफ़ पर 'किशोर विजय कॉमिक्स' निकाल रहे हैं, समय निकाल कर देखना .. आपको बहुत मज़ा आएगा। आइए हम लोग पहले लंच कर लें।"
"अरे यह क्या किंग साब, आप इतने पुराने तश्तरी-कटोरे में भोजन करेंगे?"
"जी..मैं दो हज़ार नौ से इन्ही में खा रहा हूं। ..आप लीजिए ..बाई द वे, खाने की टेबल पर ये चांदी की कटलरी आपकी एयर लाइन का सोविनियर है।"
"बुरा न मानें तो आपको एक व्यक्तिगत राय देना चाहता हूं किंग साब ..?"
"अरे क्या बात करते हैं सर !..राय क्या, आप अध्यादेश लाएं.. हां, पर हमारा एक उसूल है, हम बिना पेमेंट की एडवाइज नहीं लेते.."
"ही..ही..ही ! आप का सेंस ऑफ ह्यूमर भी कमाल का है, चलिए पेमेंट भी आ जायेगी। छापा पड़ने से पहले आप यहां का आधा सामान हमारे गोदाम में रखवा लीजिए।"
"वाह..! सो नाईस ऑफ यू सर, ताला अपना लगा लें या आप भिजवाएंगे या हम ताला लगाकर एक चाभी आपको भेज दें ?"
"ही.. ही ! अरे श्रीमान हम तो मात्र चौकीदार हैं, ताला आपका, सामान आपका। ...इतने अमीर होने के बाद भी आपकी सादगी देखकर हैरानी ज़रूर होती है.."
"आप मेरे गले से झूलते इस गोल शीशों वाले चश्मे और मेरी पुरानी चप्पलों से हैरान हैं ना? दरअसल ये मेरे राष्ट्रवाद के प्रतीक हैं। बचपन में एम के गांधी का बड्डे मना रहे थे तो हमारे हाउस मास्टर ने उनके पगचिन्हों पर चलने एटसेट्रा कहा था। बड़ा होने पर हमने उनका चश्मा, प्लेट-कटोरी, वाच और ये चप्पलें न्यूयॉर्क की नीलामी में तेरह करोड़ में ख़रीद लिया।"
"ओह तो वो घड़ी, प्लेट-बाउल..?"
"जी सर...! वो सब महात्मा गांधी का ओरिजिनल है। उनका क्या है, अब आपका ही है..."
"अरे साब हम तो आपके सहयोगी मात्र हैं। आप भी बैंकों के क़ायदे-क़ानून से बंघे हैं, हमें अपनी जनता की सेवा करनी है.."
"आप आदेश करें सर, जो सहयोग चाहें, जब और जहां कहें.."
"उसका भरोसा न होता तो ऐसे मौक़े पर हम स्वयं आने का रिस्क नहीं लेते.. हां, गांधी का ये सामान हम आपसे उधार लेकर यूज़ करना चाहें तो.."
"ये भी कोई डिमांड है सर ! एयर लाइन सोविनियर के साथ ये भी पैक करवा देते हैं.."
"नहीं, नहीं इसे अलग से पैक करवा दें। दरअसल, हमारी एक सहयोगी मैडम हैं, उनकी संस्था गांधी जी के पुतले पर गोली चला कर पुण्यतिथि मनाती है...पुतला काफ़ी भद्दा होता है, जिससे मीडिया वालों को पूछना पड़ता है कि पुतला किसका है? आपका कलेक्शन देखकर आईडिया आया कि पुतले को ओरिजिनल बिलोंगिंग से सजा दें तो मीडिया के लिए अच्छा अट्रेक्शन हो जाएगा और संस्था को वाइड कवरेज मिल जाएगी.."
"वाह क्या ख़ूब सोचा सर जी !..आप कहें तो वैसी ही पिस्तौल भी मंगवा दें..?"
"हा..हा.. हा..! आप तो कहीं से ओरिजिनल नत्थू राम भी निकाल देंगे..उन्हें भी थोड़ा-बहुत जुगाड़ने दीजिए, बुक्स में ख़र्चा भी दिखाना होता है..ही ही ही !
काफ़ी देर तक ही..ही..ठी..ठी के बाद मंत्री विदा हुआ तो किंग ने गहरी सांस छोड़ते हुए 'हे राम' बोलकर सिगरेट सुलगा ली।
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