भतीजे की चिट्ठी!

Hafta Bol!भतीजे की चिट्ठी!

उमेश तिवारी 'विश्वास'

उमेश तिवारी व्यंग्यकार, रंगकर्मी और मान्यताप्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं। अपनी शर्तों पर जीने के ख़तरे उठाते हुए उन्होंने रंगकर्म, पत्रकारिता, लेखन, अध्यापन, राजनीति से होकर गुज़रती ज़िंदगी के रोमांच को जिया है। रंगकर्म के लेखे-जोखे पर 2019 में 'थिएटर इन नैनीताल' नाम से किताब छप चुकी है।

ताऊ जी राम-राम। जै हरयाणा, जै हिन्द। ख़बर है दुनियाभर में करोड़ों कोरोना को प्यारे हो चुके और अब नई लहर आने वाली है। इस मौक़े पर तुमको कुछ याद दिलाने को ये चिट्ठी लिख रहा हूं। जो पहले गल्ती करी सो अब ना करियो। पिछले साल इंडिया टुडे वालों की पंचायत में कोरोना की औकात तुमने पहले इतनी सी बताई कि ये नाक घुस के बैठने वाला मामूली कीड़ा है। जिसका सिंपल इलाज कच्ची घानी का शुद्ध सरसों तेल बताया। 'इसे नाक में डालो और कोरोना का कीड़ा उसमें लिपट कर पेट में चला जायेगा।'

साथ में समझाया के पेट में एक अग्नि हुआ करे जिसे जठराग्नि कहे हैं, वो इसे भस्म कर देगी। करोड़ों कीड़े-मकोड़े हैं जो जब चाहे उड़ते-टहलते छेदों में घुस जाते हैं, पर तुमने मास्क लगाने जैसा सुझाव भी कोई ना दिया। तेल बेचने के चक्कर में तुमको जीन्स बनाने वाली यूनिट में मास्क बनवाने का आईडिया को नहीं आया? पर यो हमारे लिए गर्व की बात है कि स्वास्थ मंत्री की संगत में 'एविडेंस बेस्ड' रिसर्च प्रमाणित कोरोनिल नामी तुरुप का पत्ता जड़ के तहलका मचा दिया। 

तुमने भक्तों को दवा बेच ली और उस बेचारे को एलोपैथी की डॉक्टरी करने लायक भी नहीं छोड़ा। ये तो सब ठीक था पर तेल इतना मंहगा क्यों कर दिया कि नाक में डालने भर को भी कर्ज़ लेना पड़े? कोरोनिल का तो तुम्हीं जानो कोन खा रहा और कोन चंगा हो रहा है। अब कोरोना का नया वैरिएंट आया है तो यो न बोल देना कि रुचि सोया खाने वालोंको किसी कीड़े से ख़तरा नहीं। झटका तो हमको भी लगा ताऊ जब वैक्सीन के ख़िलाफ़ इतनी ढेंचू-ढेंचू के बावजूद सरकार ने तुम्हारी न सुनी पर आईएमए की टर्र-टर्र मौसम के माफ़िक मानी। अब तो हमने भी लगवा ली, तुम भी लगा लेना।

तुम्हारे टोटकों के बाद लाखों तो दूसरी लहर में निकल लिए हैं। हमारी नहीं, उनकी सोचो जो एक सौ तीस करोड़ की कसम खाते न थकें, एक भी कम हुआ तो झूठी कसम तुमको भी लगेगी, उनका तो गया। अभी एक नई चुनौती है तुम्हारे सामने, के यू पी - उत्तराखंड चुनाव में परचार तो करोगे ना? अब चिट्ठी लिख ही रहा हूं तो आईडिया ले लो। तुमको याद होगा कुछ समय पहले उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री ने एक महिला को भारतीय संस्कृति से न्याय की खातिर कटी हुई यानी फटी हुई जीन्स पहने पर उलाहना दिया था। बस वही सूत्र पकड़ना है बाबा जी! 

वो सब तो फुंके हुए कारतूस हैं, तुम कूपमंडूकासन के मध्य जब हिन्दू संस्कृति का बैंड बजाओगे तो राष्ट्रवाद के रास्ते में आने वाली इन लुगाइयों के सर शर्म से झुक जावेंगे। सच्ची बात तो यो है जबसे सरकार कोने बेटी बचाओ का नारा दिया, लड़कियां तो जैसे बावली हुई जा रही हैं। सुबह नौ बजे सकूल-कालेज, तो कहीं दस बजे बण-ठण के दफ़्तर को निकल पड़े हैं!

खासकर गांव-देहात की भतेरी छोरियां तो सूरज ढलने के बाद घर से निकल खेत-खलिहान में हवाखोरी करते सांझ में घर लौटती दिखें। शहरों की लौंडियां बसों, टैम्पू, रेलों में अकेली चढ़ जावें। तन पर कपड़ा अपनी मनमर्जी का, घुटनों से फटी जीन्स, रंगीन चश्मा, हाथ में मुबाइल; इनमें कोई लक्षण दिक्खें आपको हिंदुस्तानी छोरियां के? ताऊजी ये वोट भी अपनी मर्ज़ी से डालने लागी तो तुम्हारी भैंस तो गई पानी में! हां, उधर अफगानिस्तान में तालिबान आ गया है। वो सीमा पार इनके इलाज में लगा है। 

इधर तुम्हारी अगुवाई में कुछ अनुलोम-विलोम हो जाए तो ही बात बनेगी दिक्खे। बताने को तो बहुत कुछ है। लोग तुम्हारे शहद की शिकायत करते रहते हैं। पर जैसा तुमने बोला था उनका बाप भी तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता, बस इसी हठ योग में पड़े रहो। मेरा आखिरी सुझाव है अम्बानी-अडानी से मेल-मुलाकात बातचीत बढ़ाओ, लेकिन भतीजे को न भूल जाना। मोदी जी से भेंट हो तो मेरा सलाम कह देना। थोड़ा कहा बहुत समझना। जै हरयाणा, जै हिन्द।

तुम्हारा भतीजा काम देव्।

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