रूसी सिनेमा का नया अवतार

World Cinemaरूसी सिनेमा का नया अवतार

अजीत राय

अजीत राय को हम सीनियर कल्चर जर्नलिस्ट और आर्ट क्रिटिक बतौर भी जानते हैं और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में मीडिया टीचर के बतौर भी। मुख्यधारा के मीडिया में जब सिनेमा पर सतही रपट नजर आती हैं, तब अजीत हमें सिनेमा की दूसरी दुनिया से परिचित करवाते हैं। वो सही मायनों में सिनेमा को बारीकी से जानते हैं।

कान, बर्लिन, वेनिस, बुशान, टोरंटो, अल गूना जैसे दुनिया भर के फिल्म समारोहों में इधर कुछ सालों से रूसी सिनेमा का नया अवतार देखने को मिल रहा है। अलेक्सी चुपोव और उनकी महिला मित्र नताल्या मरकुलोवा की जोड़ी की इस समय दुनिया भर में धूम मची हुई है। 78 वें वेनिस अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह और पांचवें अल गूना फिल्म समारोह में उनकी नई फिल्म 'कैप्टन वोलकोनोगोव एस्केप्ड' को काफी सराहा गया है। इससे पहले यह जोड़ी 'इंटीमेट पार्ट्स'(2013) और 'द मैन हू सरप्राइज्ड एवरीवन'(2018) जैसी चर्चित फिल्में बना चुकी है। इन दिनों ये लेव तोलस्तोय के मशहूर उपन्यास 'अन्ना केरेनिना' पर एक मेगा प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं।

विश्व सिनेमा में रूस के योगदान पर जब भी बात होती है, तो हम आम तौर पर सर्जेई आइजेंस्टाइन और आंद्रे तारकोवस्की का नाम लेते हैं और हमारी सूची वहीं पर समाप्त हो जाती है। हालांकि हाल के वर्षों में कान फिल्म फेस्टिवल में महत्त्व मिलने के कारण सर्जेई लोजनित्स (डोनबास ,2018) और आंद्रे ज्याग्निशेव (लवलेश, 2017), ब्लादिमीर बीटोकोव (ममा, आई एम होम) तथा 72 वें कान फिल्म समारोह (2019) के अन सर्टेन रिगार्ड खंड में 'बीनपोल' फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार और फिप्रेस्की का बेस्ट फिल्म का पुरस्कार जीतने वाली कंटेमीर बालागोव का नाम भी लिया जाने लगा है। इससे पहले ब्लादिमीर मेनशोव की फिल्म 'मास्को डज नाट बिलीव इन टीयर्स' को 1980 में विदेशी भाषा में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का ऑस्कर अवॉर्ड मिल चुका है।

अलेक्सी चुपोव और नताल्या मरकुलोवा की फिल्म 'कैप्टन वोलकोनोगोव एस्केप्ड' एक राजनैतिक थ्रिलर है, जो हमें 1938 के लेलिनग्राद में स्तालिन युग के उस खौफनाक दौर में ले जाती है, जब झूठे आरोप लगाकर और महान सोवियत क्रांति का गद्दार होने के संदेह में करीब दस लाख निर्दोष नागरिकों को यातना देकर मार डाला गया था। सोवियत संघ की खुफिया एजेंसी केजीबी  यानि कोमिटेट गोसुदार्स्तवेन्वाय बेजोपास्नोस्ती (13 मार्च 1954 से 3 दिसंबर 1991) की स्थापना से पहले एनकेवीडी (10 जुलाई 1934 से 15 मार्च 1946) नामक एजेंसी होती थी जिसने दस लाख निर्दोष लोगों को मारा था। केजीबी के खत्म होने के बाद अब जो सरकारी खुफिया एजेंसी 3 अप्रैल 1995 से रूस में कार्यरत हैं और वहीं सब कारनामे करती है जो कभी केजीबी करती थी, उसे एफएसबी (फेडेरल सेक्युरिटी सर्विस) कहा जाता है। सुखद आश्चर्य है कि इस फिल्म के प्रोड्यूसरों में रुस का संस्कृति मंत्रालय भी है।

फिल्म का नायक कैप्टन फ्योदोर वोलकोनोगोव ( यूरी बोरिसोव)  एनकेवीडी का एक ऑफिसर है, जो अपने कमांडर के आदेश पर निर्दोश लोगों को गद्दार होने के संदेह में उठा लेता है और उन्हें अपने ऑफिस मुख्यालय लाकर यातना देकर मार देता है। वह उनसे जबरन कबूलनामें पर दस्तखत करवाना नहीं भूलता। विभाग में उसकी बड़ी इज्जत और रौब है। एक दिन जब वह अपने ऑफिस पहुंचता है, तो देखता है कि उसका कमांडर खिड़की से छलांग लगा कर भाग रहा है। उसे डर है कि उसे भी उसी तरह मार दिया जाएगा, जैसे वह निर्दोष लोगों को मारता था।

इसी बीच कैप्टन वोलकोनोगोव को एक बड़ी सामूहिक कब्र में मृतकों को दफनाने की जिम्मेदारी मिलती है। अचानक उसे लगता है कि उसका सबसे अच्छा दोस्त वेरेतेन्निकोव कब्र से उठकर उसे सावधान करते हुए कहता है, कि निर्दोष लोगों को मारने के अपराध में उसे नरक में सड़ना होगा। इससे मुक्ति का एक ही उपाय है कि जिन लोगों को उसने मारा है, उनमें से वह किसी एक भी व्यक्ति के परिजन को ढूंढें जो उसे माफ कर दें।

यूरी बोरिसोव रूसी आर्टहॉउस सिनेमा के नये सुपर स्टार हैं। ठीक वैसे ही जैसे कभी एशियाई सिनेमा में टोनी लियोंग होते थे। यहां से फिल्म नया मोड़ लेती है। वह अपने ऑफिस से उस गोपनीय फ़ाइल को चुराकर भागता है, जिसमें उन लोगों के नाम और पते हैं, जिन्हें उसने मारा था। वह एक—एक कर उन लोगों के परिजन तक पहु़ंचता है, जिन्हें उसने मारा था और उन्हें बताता है कि वे निर्दोष थे, वे गद्दार नहीं थे। उसे यह देखकर दुखद आश्चर्य होता है कि उन परिजन की जिंदगियां नरक से भी बदतर हो चुकी हैं। एक तरह से पूरा लेनिनग्राड शहर ही नरक में बदल चुका है।

खुफिया एजेंसी का प्रमुख मेजर गोलोव्यना कैप्टन का अंत तक पीछा करता है। यहां से पूरी फिल्म एक पाप मुक्ति की यात्रा पर चलती है, जैसा कि हम महान रूसी लेखक फ्योदोर दोस्तोवस्की की रचनाओं में पाते हैं। निकोलाई गोगोल की ऐबसर्डिटी और मिखाइल बुल्गाकोव के जादुई यथार्थवाद को भी यहां देखा जा सकता है।

रूस के युवा फिल्मकार ब्लादिमीर बीटोकोव भी एक आधुनिक राजनीतिक ड्रामा लेकर आए हैं - 'ममा, आई एम होम।' रूस के कबार्डिनो बल्कारिया इलाके के एक गांव में रहनेवाली तोन्या एक बस ड्राइवर है। तोन्या का इकलौता बेटा उस इलाके के एक प्राइवेट रूसी सेना में भर्ती होकर सीरीया में लड़ते हुए मारा जाता है। तोन्या को इस खबर पर भरोसा नहीं है। उसे विश्वास है कि उसका बेटा जीवित है और एक दिन लौट आएगा। आगे की फिल्म उस बेटे की हृदयविदारक खोज में चलती है। यह वह इलाका है जहां भयानक गरीबी के कारण अधिकतर नौजवान ठेकेदारों की निजी सेनाओं में भर्ती होकर दुनिया भर में लड़ने के लिए भेज दिए जाते हैं। रूसी सरकार आधिकारिक रूप से कभी इस बात को स्वीकार नहीं करती, न ही रिकार्ड पर लाती है। इन नौजवानों के युद्ध में मारे जाने पर कोई इनकी जिम्मेदारी नहीं लेता।

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